एक दुर्घटना
दो चार परिवारों से बहुत निकट का संबंध हो गया था और उन्हीं में से एक परिवार जैन साहब का था। बड़े अच्छे सीधे-सादे लोग थे उनके एक बेटा और दो बेटी थे। बेटा बड़ा था और दोनों बेटियाँ छोटी। जब वो लोग वहाँ आए थे तो बेटा दसवीं कक्षा में पढ़ता था तथा बेटियाँ आठवीं और छठवीं में थीं। हम भी तीन भाई बहन थे, भाई बड़ा और उसके बाद हम दोनों बहनें जिनमें मैं बड़ी थी।

आज भी जब मैं वह दुर्घटना याद करती हूँ तो मेरा मन विचलित हो जाता है पर जहाँ अपना कोई वश नहीं वहाँ हम लाचार हो जाते हैं और बस दृष्टा की तरह सब कुछ देखते रहते हैं।
बात उन दिनों की है जब हमलोग रेलवे कॉलोनी में रहते थे। पापा रेलवे में अच्छी पोस्ट पर थे और अभी कुछ दिन पहले ही कानपुर से इलाहाबाद आए थे, जल्द ही हम लोगों का परिचय हो गया था। सभी एक दूसरे से मिलते-जुलते रहते थे। शाम को अधिकतर सब घर से बाहर निकल आते या ठंड का समय हो तो दिन में सभी महिलाएँ बाहर चारपाई डाल कर बैठती थी। बुनाई सबके हाथ में होती ही थी या अन्य कोई कार्य जो बाहर बैठ कर हो सकता था। मैं उस समय बारह तेरह वर्ष की ही थी।
दो चार परिवारों से बहुत निकट का संबंध हो गया था और उन्हीं में से एक परिवार जैन साहब का था। बड़े अच्छे सीधे-सादे लोग थे उनके एक बेटा और दो बेटी थे। बेटा बड़ा था और दोनों बेटियाँ छोटी। जब वो लोग वहाँ आए थे तो बेटा दसवीं कक्षा में पढ़ता था तथा बेटियाँ आठवीं और छठवीं में थीं। हम भी तीन भाई बहन थे, भाई बड़ा और उसके बाद हम दोनों बहनें जिनमें मैं बड़ी थी। अतः परिवार के सब सदस्यों की दोस्ती उनके परिवार से थी, बाहर भी कहीं पिकनिक या घूमने जाना हो तो साथ-साथ ही दोनों परिवार जाते थे। कभी-कभी वो मज़ाक़ में कहतीं कि आपकी बेटी को बहू बना कर ले जाऊँगी, और हम दोनों संबंधी बन जायेंगे जब कि उन दिनों अन्तर्जातीय विवाह इतना प्रचलित नहीं था।
समय बीतता गया, आशीष जो उनके बेटे का नाम था अब बारहवीं कक्षा में आ गया था, पीईटी की भी तैयारी कर रहा था। आशीष बहुत परिश्रम करता था और सदैव कक्षा में दूसरे तीसरे नंबर पर रहता था। मेरा भाई प्रतीक पीएमटी की परीक्षा की तैयारी कर रहा था। दोनों ही पढ़ने में तेज थे और बहुत मेहनत भी कर रहे थे। नीना-मीना आशीष की बहनों का नाम था तथा हम दोनों बहनें माला और मीता, कमाल की बात ये कि हम लोगों की भी कक्षाएँ एक ही थी, बहुत अच्छा समय बीत रहा था, कुछ लोगों को हमारी दोस्ती बिलकुल नहीं सोहाती थी।
नीना की मम्मी को मैं चाची जी और पापा को चाचा जी कहती थी। पापा तथा चाचा जी का तबादला होता रहता था और अब यहाँ का समय भी पूरा हो चुका था, कभी भी निर्देश आ सकता था। यदि बच्चे बोर्ड की परीक्षा दे रहे हैं तो सत्र के बीच में तबादला नहीं होता था। परीक्षा का समय आया और परीक्षा हो गई, परिणाम भी आ गया और पीईटी और पीएमटी में दोनों अच्छे रैंक पर थे, ख़ुशी का कोई ठिकाना न था। चाची जी ने आशीष से कहा कि मुझे मंदिर जाना है, तेरे पापा आ जाएँ तो दर्शन कर आऊँ।
आशीष बोला मैं ले चलता हूँ, मैं भी मंदिर हो आऊँगा, परिणाम घोषित होने के बाद गया भी नहीं हूँ। दोनों तैयार होकर मंदिर निकल गये, वापस आने में बहुत देर हो रही थी तो लगा कि शायद बाज़ार की तरफ़ निकल गये होंगे। मैं उस समय उनके ही घर में थी जब फ़ोन की घण्टी बजी, पता चला कि अस्पताल से चाची जी का फ़ोन आया है, एक्सीडेंट हो गया है आशीष को काफ़ी चोट लगी है। दोनों घरों में जैसे भूचाल आ गया हो, चाचा जी तथा मम्मी पापा तीनों अस्पताल के लिए निकल गये और घर में हम सब की हालत भी ख़राब हो रही थी, सब जानने को उत्सुक थे कि ज़्यादा चोट तो नहीं लगी। थोड़ी देर बाद पापा आए, उनका चेहरा उतरा हुआ था, बताने लगे कि चोट बहुत अधिक लगी है और डॉक्टर का कहना है कि बचने की संभावना कम ही है जबकि चाची जी को अधिक चोट नहीं लगी। जो लोग एक्सीडेंट के स्थान से इन दोनों को उठा कर अस्पताल लाये थे वे बता रहे थे कि आशीष तो स्कूटर सही चला रहा था लेकिन सामने से आने वाले आटो ने ग़लत मोड़ ले लिया और यह दुर्घटना हो गई। हम लोगों की सारी रात ऐसे बैठे-बैठे बीती, मम्मी-पापा और चाचा-चाची अस्पताल में और हम सब बच्चे घर में। प्रातः मम्मी घर आईं और बताने लगीं कि प्रातः चार बजे आशीष हम सबको छोड़ गया। आज भी जब मैं वह समय याद करती हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उसके बाद मम्मी पापा का अधिकतर समय उन लोगों के साथ ही बीतता, कुछ दिन बाद पापा का तबादला आगरा हो गया और हम लोग आगरा आ गये। चाचा जी और चाची जी की हालत ठीक नहीं थी। चाचा जी ने तो किसी तरह अपने को सम्हाला पर चाची जी यही कहती रहीं कि मैंने क्यों उससे मंदिर जाने के लिए कहा। इस दुर्घटना के बाद वो कभी स्वस्थ नहीं रहीं और साल भर बाद उनका भी देहान्त हो गया। इस प्रकार एक ऑटो वाले की गलती से एक हँसता-खेलता परिवार दुख के सागर में डूब गया।
सरोजिनी चौधरी
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