नियति

सभी संसाधनों के बावजूद  उलझ गयी थी मेरी जिंदगी  बेकार थी सारी कोशिशें सुलझाने की   क्योंकि नियति की गांठें ही  कुछ ऐसी थी।

Jun 5, 2025 - 13:42
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नियति
destiny


तुम थे 
परंतु 
होकर भी नहीं थे
तुम मेरे लिए।

सभी संसाधनों के बावजूद 
उलझ गयी थी मेरी जिंदगी 
बेकार थी सारी कोशिशें
सुलझाने की  
क्योंकि नियति की गांठें ही 
कुछ ऐसी थी।

अरमान बिखरे पड़े थे 
चाहतें एक-एक कर 
धराशायी हो रही थी 
यह जानते हुए भी 
कि विधि का लेखा है 
मैं किसी चमत्कार के 
इंतज़ार में जी रहा था।

बदलाव की आस थी 
परंतु बदला कुछ नहीं 
बदलाव सिर्फ इतना ही आया 
कि मेरा इंतज़ार ज़मींदोज़ हो गया था 
और नियति के सामने 
मैं घुटने टेक चुका था।

नवीन कुमार गुप्ता 
दुमका, झारखंड

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