एक गीतिका

बाण शब्दों के नुकीले हो गए। कोर नैनों के पनीले हो गए।  चोट अपनों से लगी तो यूं लगा,  फूल भी यारों कँटीले हो गए।  हाय! रिश्तों के विटप भी आजकल,  जो हरे थे सूख पीले हो गए।  लालसा सुख-भोग की थमती नहीं,  मोह के तेवर हठीले हो गए।

Jun 14, 2025 - 16:24
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एक गीतिका
a song

बाण शब्दों के नुकीले हो गए।
कोर नैनों के पनीले हो गए। 

चोट अपनों से लगी तो यूं लगा, 
फूल भी यारों कँटीले हो गए। 

हाय! रिश्तों के विटप भी आजकल, 
जो हरे थे सूख पीले हो गए। 

लालसा सुख-भोग की थमती नहीं, 
मोह के तेवर हठीले हो गए।

मान, मद में आदमी पगला गया, 
लोभ के प्याले नशीले हो गए।

यह पतन घनघोर मानव कौम का, 
शील के बंधन भी ढीले हो गए। 

चाहते हैं, हम शिखर छूना मगर, 
हौसलों के पंख गीले हो गए।

जब कलम व्याकुल हुई है ‘साधना’
व्यंग्य के सुर भी चुटीले हो गए। 

डॉ. साधना जोशी ‘प्रधान’

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