जिम्मेदार नागरिक
मैडम- ‘हाँ ! कल मतदान का दिन है। साहब के ऑफिस में भी अवकाश है। बच्चों के कॉलेज की छुट्टी है। सो हम लोग पिकनिक मनाने के लिए मुंह अंधेरे मांडव निकल जाएंगे।’ राधा पूड़ी बेलते-बेलते ही सोचने लगी। ठंड का समय है, रात जल्दी गहरा जाती है। अभी दो घरों में काम बाकी है।

मैडम शुक्ला- ‘राधा, आज शाम के खाने के साथ ही जल्दी से नमकीन पूड़ी और आलू की सूखी मसालेदार सब्जी भी बना देना।’
राधा- ‘जी, मैडम ! क्या आप बाहर जा रही हैं?’
मैडम- ‘हाँ ! कल मतदान का दिन है। साहब के ऑफिस में भी अवकाश है। बच्चों के कॉलेज की छुट्टी है। सो हम लोग पिकनिक मनाने के लिए मुंह अंधेरे मांडव निकल जाएंगे।’
राधा पूड़ी बेलते-बेलते ही सोचने लगी। ठंड का समय है, रात जल्दी गहरा जाती है। अभी दो घरों में काम बाकी है। उसका पति किशन, कोरोना में समुचित इलाज नहीं मिलने से नहीं रहा। उसकी अंतिम इच्छा थी कि उसका बेटा किशोर पढ़-लिखकर एक अच्छा नागरिक बने। किशोर ने भी १२वीं बोर्ड की परीक्षा जैविक विज्ञान लेकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उससे अपनी माँ का दिन-दिन भर भूखा-प्यासा रहकर दूसरों के घर पर काम करना देखा नहीं जाता था। उसके गाँव में टेक्नीशियन की पढ़ाई के लिए कॉलेज नहीं था इसलिए पास ही के एक कस्बेनुमा छोटे से शहर में उसने प्रवेश ले लिया।
अभी यह सब राधा सोच ही रही थी कि उसके फोन की घंटी बजी। पूड़ी बेलते-बेलते ही उसने स्पीकर पर फोन रख दिया।
किशोर- मैं कल घर आ रहा हूं। अब मैं १८ साल का हो गया हूं और पहली बार मतदान करना चाहता हूं। चूँकि यह मेरा अधिकार भी है और कर्तव्य भी है। आने-जाने में करीब डेढ़-दो सौ का अतिरिक्त व्यय अवश्य होगा, पर इसके लिए मैं एक-दो दिन के लिए एक वक्त का खाना खाकर अपने खर्चों में कटौती कर लूंगा। राधा अपने बेटे की मतदान के प्रति भावना के बारे में सोचने लगी। इतने में मैडम की बड़ी बेटी अनन्या रसोई घर में पानी पीने के लिए आई। राधा और किशोर के बीच हो रही बातचीत उसने सुनी। और वहीं से अपनी माँ को ज़ोर से आवाज देकर कहा- ‘माँ! कल सुबह हम मांडव नहीं जा रहे हैं। अगली बार किसी छुट्टी में चले जाएंगे। कल मैं भी मतदान करने जाऊँगी। आखिर मैं भी तो देश की एक जिम्मेदार नागरिक हूँ।
श्रद्धा जलज घाटे
रतलाम (म.प्र.)
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