अज्ञेय' का प्रयोगवाद
प्रयोगवाद जैसा कि नाम से स्पष्ट है नवीन प्रयोगों पर आधारित एक साहित्यिक आंदोलन है। यह साहित्यिक क्रांति छायावाद, आदर्शवाद और रहस्यवाद के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया के रूप में उभरी। प्रयोगवाद का मूल उद्देश्य साहित्य को जीवन के ठोस यथार्थ से जोड़ना था। अज्ञेय ने इसे व्यक्तिगत अनुभूतियों की स्वतंत्रऔर स्वाभाविकअभिव्यक्ति का माध्यम माना। उन्होंने कहा,

हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद एक महत्वपूर्ण साहित्यिक आंदोलन के रूप में उभर कर आया, २०वीं शताब्दी में जब हिंदी कविता छायावाद की कोमल भावुकता से भरी हुई थी तब अज्ञेय ने एक नए दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया। उन्होंने साहित्य में नवीनता और प्रयोगशीलता को महत्व देते हुए जीवन के यथार्थ और जटिलताओं को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया, उनका प्रयोगवाद न केवल कविता तक सीमित रहा बल्कि उन्होंने गद्य, नाटक और निबंधों में भी अपने विचारों को मूर्त रूप दिया।
प्रयोगवाद जैसा कि नाम से स्पष्ट है नवीन प्रयोगों पर आधारित एक साहित्यिक आंदोलन है।
यह साहित्यिक क्रांति छायावाद, आदर्शवाद और रहस्यवाद के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया के रूप में उभरी। प्रयोगवाद का मूल उद्देश्य साहित्य को जीवन के ठोस यथार्थ से जोड़ना था। अज्ञेय ने इसे व्यक्तिगत अनुभूतियों की स्वतंत्रऔर स्वाभाविकअभिव्यक्ति का माध्यम माना। उन्होंने कहा,
`प्रयोग किसी पथ का अनुगमन नहीं, वरन् पथ का अन्वेषण है।'
इस प्रकार प्रयोगवाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आत्मानुभूति और आत्म सजगता का साहित्यिक रूप है।
अज्ञेय जिनका वास्तविक नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन था, हिंदी साहित्य के प्रयोगवादी आंदोलन के प्रमुख प्रवर्तक थे। उनका जन्म ७ मार्च १९११ को यूपी के कसया (कुशीनगर) में हुआ था। उनके पिता हीरानंद शास्त्री एक पुरातत्व विद् थे जिसके कारण अज्ञेय को बचपन में देश के विभिन्न हिस्सों में घूमने का अवसर मिला। आगे की शिक्षा-दीक्षा विभिन्न स्थानों पर हुई उन्होंने विज्ञान विषय में स्नातक किया, लेकिन उनका रुझान साहित्य और समाजशास्त्र की ओर अधिक था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और जेल भी गए।
अज्ञेय न केवल एक कवि थे, बल्कि उपन्यास, निबंधकार, नाटककार और पत्रकार भी थे।
उन्होंने `दिनमान' और `नया प्रतीक' जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया। जिससे हिंदी को नई दिशा मिली।
नीलम पाठक
ग्रेटर नोएडा UP
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