सितारों से आगे...
मुख़्तसर सी ज़िंदगीr है और बातें हजार चलो, कुछ बात करते हैं इस बात के आगे....

मुख़्तसर सी ज़िंदगीr है
और बातें हजार
चलो, कुछ बात करते हैं
इस बात के आगे....
बचपन में उतावले थे
बड़े होने के लिए
चलो, एक बार बचपन जीते हैं
बुढ़ापे के आगे....
पेड़ होते हैं कविता
बनता है उससे कागज
चलो एक पेड़ बन जाएं
इस कविता के आगे...
चांद माथे पर और
चांदनी रात है
ओढ़ लेते हम खुद को
इस सहर के आगे....
बिना चेहरे वाली भीड़ में
सफर है तनहा
चलो हम निकल जाते हैं
इस तनहाई के आगे....
डॉ. नेत्रा रावणकर,
उज्जैन
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