जिसे देवी रुक्मणी कहा जा रहा क्या वह अंबिका प्रतिमा है?
इस प्रतिमा को रुक्मणी प्रतिमा और अंबिका मंदिर को रुक्मणी मठ बताया जा रहा है। कुण्डलपुर की ही एक और अंबिका प्रतिमा है जो सम्भवतः दमोह संग्रहालय में संरक्षित है। जिस प्रतिमा को श्रीकृष्ण-रुक्मणी की प्रतिमा कहकर कई वर्षों से आन्दोलन चलाया जा रहा था वह प्रतिमा वस्तुतः श्रीकृष्ण-रुक्मणी की प्रतिमा प्रतीत नहीं होती।
दमोह जिले के जैन तीर्थ क्षेत्र कुंडलपुर स्थित माता रुक्मणी देवी के मंदिर में एक बार फिर ऐतिहासिक प्रतिमा विराजमान हुई। यह प्रतिमा साल 2002 में तस्करों ने चुरा ली थी। बाद में यह प्रतिमा राजस्थान के हिंडोला से होते हुए वापस दमोह लाई गई थी। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के प्रयासों इसे पुनः विराजमान कराया गया। यह प्रतिमा राजस्थान के हिंडोला से बरामद हुई थी। बाद में इसे विदिशा जिले के ग्यारसपुर संग्रहालय में रखा गया था। 2019 में यह प्रतिमा दमोह लाई गई थी। तब से यह प्रतिमा दमोह के दमयंती संग्रहालय में सुरक्षित रखी हुई थी।
एक दैनिक अखबार में समाचार देखा था- ‘‘प्रतिमा को जैन तीर्थ क्षेत्र कुंडलपुर से सटे अंबिका देवी मंदिर से 4 फरवरी 2002 को चोरी कर लिया था।’’
इस प्रतिमा को रुक्मणी प्रतिमा और अंबिका मंदिर को रुक्मणी मठ बताया जा रहा है। कुण्डलपुर की ही एक और अंबिका प्रतिमा है जो सम्भवतः दमोह संग्रहालय में संरक्षित है। जिस प्रतिमा को श्रीकृष्ण-रुक्मणी की प्रतिमा कहकर कई वर्षों से आन्दोलन चलाया जा रहा था वह प्रतिमा वस्तुतः श्रीकृष्ण-रुक्मणी की प्रतिमा प्रतीत नहीं होती। वह प्रतिमा तेईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की शासन देव-देवी (यक्ष-यक्षी) की प्रतिमा ज्ञात होती है। इसे किस पुरातत्त्वविद् ने, किस आधार पर श्रीकृष्ण-रुक्मणी की प्रतिमा घोषित कर दिया, उन्हें पुनः सामने आकर इसके मूर्तिशिल्प लक्षणों का विश्लेषण कर वास्तविकता बताना चाहिए, अन्यथा इसकी पूजा-आराधना करने वाली जनता की आस्था के साथ खिलवाड़ होगा। इस प्रतिमा को श्रीकृष्ण-रुक्मणी प्रतिमा कैसे मान लिया गया, यह आश्चर्य जनक है। चूंकि कुण्डलपुर परिक्षेत्र का जैन समाज जैन शासन देवी-देवता की पूजा नहीं करता इस कारण सम्भवतः उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी कि उसकी अन्य समाज किसी रूप में आराधना करे। लेकिन वास्तविकता हमें ज्ञात होना चाहिए। आगे दिये गये विश्लेषण और अन्य प्रतिमाओं को देखें तथा उस आधार पर प्रतिमाविज्ञानियों से ज्ञात कर अपनी आस्था बनाएँ। यह प्रतिमा श्रीकृष्ण-रुक्मणी की नहीं, अपितु गोमेध-अंबिका की प्रतीत होती है। जहां से यह चोरी हुई थी वह स्थान पहले अंबिका मंदिर भी कहा जाता था।
गोमेध-अंबिका -
जैन आगम के विक्रम संवत् 233 के प्राकृत ग्रन्थ तिलोयपण्णत्ती और उसके बाद के हरिवंशपुराण आदि ग्रन्थों में चौबीस तीर्थंकरों के अलग अलग, एक-एक शासन देव-देवी युगल निरूपित हैं। उन्हें यक्ष-यक्षी भी कहा जाता है। ये यक्ष-यक्षी जिनों के सेवक देव के रूप में संघ की रक्षा करते हैं। जैन प्रतिमा विज्ञान में भी इनका सूक्ष्मता से वर्णन किया गया है। प्राचीन प्रतिमाओं के चिह्न नहीं पाये जाने पर इन्हीं यक्ष-यक्षी को देख-पहचान कर ही निर्धारित किया गया और किया जाता है कि यह किस तीर्थंकर की प्रतिमा है। कुण्डलपुर के बड़े बाबा के सिंहासन के सिंहों को देख कर पहले इसे भगवान महावीर की प्रतिमा माना जाता है, कुछ लोग अभी भी यही जानते हैं, किन्तु इस प्रतिमा के पादपीठ पर गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी यक्षी को देेखकर ही प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रतिमा माना गया।
गोमेध- तीर्थंकर नेमिनाथ के यक्ष ‘गोमेध’ का नाम कहीं कहीं ‘गोमेद’ भी मिलता है। इसका श्याम वर्ण कहा गया है। इसे द्विभुज से षड्भुज तक कहा गया है। अलग अलग ग्रन्थों के अनुसार गोमेध के आयुध- अक्षसूत्र, यष्टि, फल मातुलिंग, परशु, चक्र, सनालपद्म, नकुल, शूल और शक्ति आयुध कहे गये हैं, जिन्हें शिल्पकार स्थान, देश-काल, और तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार शिल्पित करते रहे हैं। इसका वाहन नृ-वाहन अर्थात् मनुष्य वाहन और पुष्प या पुष्पमाल वाहन कहा गया है। कहीं कहीं सिंह वाहन भी है। गोमेध के एकल प्रतिमांकन हमने कहीं नहीं देखे हैं, अंबिका के साथ युगल प्रतिमांकन बहुधा हुए हैं और तीर्थंकर नेमिनाथ की प्रतिमा के साथ उनके परिकर में तो अनेकों स्थानों पर शिल्पांकन पाये जाते हैं। इसकी एकल या युगल प्रतिमाओं के शिरोभाग पर उनके आराध्य तीर्थंकर की लघु पद्मासन प्रतिमा का अंकन अनिवार्य रूप से होता है।
अंबिका- अंबिका 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षी है। इस यक्षी के अम्बिका, अम्बा, आम्रा, आम्रकूष्माण्डी, कूष्माण्डनी, अंबिला, तारा, गौरी, वज्रा, आदि नाम मिलते हैं। अंबिका नाम अधिक प्रसिद्ध है। इस यक्षी के दो भुजाएं वर्णित हैं, किसी किसी ग्रन्थ में चतुर्भुजा भी बताया गया है। आम्र वृक्ष के नीचे उसकी छाय में आम्र लुंबी, आम की डाली पकड़े हुए, आम्र गुच्छक पकड़े हुए आम की डाली ने नीचे आदि प्रकार से इसे शिल्पित किया जाता है। इस देवी के आयुधों में- शंख, चक्र, तोमर, पास, आम्र फल, वरद मुद्रा इनमें से स्थान और भुजाओं अनुसार उत्कीर्णित किया जाता है।
इसके दोनों ओर एक एक बालक प्रियंकर और शुभंकर अंकित किए जाते हैं। उन्हीं के नाम सिद्ध और बुध भी मिलते हैं। कहीं-कहीं एक बालक ही अंकित किया जाता है, और किसी प्रतिमा में दोनों बालकों का बाम पार्श्व में दर्शाया गया है। द्विभंगासन में खड़े हुए होने पर एक छोटे बालक को बाम कटि पर लिये हुए अंकित किये जाने की परम्परा है और यदि यक्षी ललितान में बैठी उत्कीर्णित की जाती है तो उसकी गोद में, बल्कि वायें टखने या जंघा पर छोटे बालक को बैठा दर्शाया जाता है। दांयी ओर का बालक पास में खड़ा नग्न किन्तु मौज्जी, कड़ा आदि से अलंकृत रहता है। वह प्रायः अंबिका माता के हाथ की उंगली पकड़े दिखाया गया है। यह अपेक्षाकृत बड़ा होता है।
छोटा बालक प्रियंकर जिसे अंबिका गोद में बैठाये या लिये हुए दर्शायी जाती है वह माता की मौक्तिक माला को पकड़े हुए होता है। कहीं-कहीं स्वाभाविक रूप दर्शाने कि लिए बालक माता की स्तनमाला पकड़े हुए और खींचने से टूट गई है, टूटी हुई माला उसको पकड़े हुए दर्शाया गया है।
अंबिका का शिल्पांकन दक्षिण भारत और उत्तर भारत में समान रूप से हुआ है। इसका अंकन छठी शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक अनवरत हुआ है। अंबिका अलग कारणों से बहुत प्रतिद्धि है, इसलिए इसकी एकल प्रतिमाएँ भी बहुतायत में हैं। कहीं कहीं तो अंबिका के परिकर में चौबीस तीर्थकरों की प्रतिमाएँ हैं। अंबिका की एकल या युगल प्रतिमा के शिरोभाग पर कम से कम एक पद्मासन जिन प्रतिमा अवश्य शिल्पित किये जाने की परम्परा है।
घोषित रुक्मणी प्रतिमा में गोमेध- उल्लिखित श्रीकृष्ण/गोमेध के पादपीठ पर हाथ जोड़े हुए मनुष्य है, एक और आकृति भंग है। आभरण देवोचित हैं जो अधिकतर सभी देवों के होते हैं। दो भुजाएं हैं, दक्षिण भुजा भंग है, इस कारण अस्त्र क्या है, कहा नहीं जा सकता। बायीं भुजा में सनाल द्विदलयुक्त कमल स्पष्ट है। मुकुट में शंख बना है, जो तीर्थंकर नेमिनाथ का चिन्ह है। शिर पर आम्रपत्र की एक डाल आच्छादित है। युगल के मध्य वितान में पद्मासनस्थ जिन की लघु प्रतिमा है।
घोषित रुक्मणी प्रतिमा में अम्बिका- रुक्मणी/अम्बिका द्विभंगासन में है। इसके पादपीठ पर मनुष्य-आराधकों की चार आकृतियां हैं, जो अंजलिबद्ध दर्शायीं गई हैं। बायीं ओर पादासन की बरावरी पर एक भक्त अंजलिबद्ध है, जो भग्न है। दायीं ओर एक बालक (अनुमानित-प्रियंर) आम्र-पेड़ पर चढ़ते हुए सा दर्शाया गया है। कुछ खंडित होने से पूर्ण स्पष्ट नहीं है। देवी की दायीं भुजा में कोई फल है, किन्तु हथेली नीचे की ओर की हुई है, बायें हाथ से एक छोटे बालक (अनुमानित-शुभंकर) को कटि पर सम्भाले हुए है। बालक का ऊपर का भाग खण्डित है किन्तु उसके पैरों से उदर के ऊपर तक का भाग स्पष्ट है तथा देवी के हाथ की अंगुलिकाएं स्पष्ट हैं। सभी आभरण देवोचित हैं। शिरोभाग पर आम्रपत्र की एक डाल आच्छादित है। ऊपर आम्रपत्र की साख के आगे पद्मासनस्थ लघु जिन प्रतिमा शिल्पित है।
इस कही गई रुक्मणी प्रतिमा के सभी लक्षण अम्बिका के ही प्रतीत होते हैं। रुक्मणी मठ को पहले अंबिका मंदिर कहा जाता था। इस मठ/मंदिर में अभी भी मूल स्थान पर एक सपरिकर पद्मासन जिन प्रतिमा का खंडित अधोभाग स्थापित है, इसके शेष बचे परिकर में पूर्ण लघु जिन प्रतिमाएं देखीं जा सकती हैं।
डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
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