पुस्तक समीक्षा

कविता महज जीवन से नहीं बनती बल्कि जीवन को संचालित करने वाले विशाल शब्द भंडारों से निर्मित होती है। कविता मानव जीवन की कला है। कवि इस जीवन का अद्भुत कलाकार होता है। वह समाज में रहते हुए उसके तमाम पक्षों को देखता-परखता और अन्वेषण-विश्लेषण करता चलता है। समाज की परंपराएँ, तीज, त्योहारों को तो वह देखता ही नहीं है बल्कि उसमें घट रही घटनाओं का भी वह साक्षी होता है। कवि इंसान को एक बेहतर इंसान बनाने का मार्ग प्रशस्त करने का हिमायती होता है। उसकी सारी कोशिशें मानव समाज को और अधिक बेहतर बनाने के लिए सक्रिय रहती हैं।

Jun 7, 2025 - 16:09
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पुस्तक समीक्षा
book review
`महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी' द्वारा `शशिभूषण बाजपेई हिंदी लेखक' पुरस्कार २०२०-२१ द्वारा  पुरस्कृत पुस्तक `जय भारत जय हिंदुस्तान' है। यह पुस्तक वर्ष २०१९ में `साहित्य संगम प्रकाशन', मुंबई द्वारा प्रकाशित हुई है जिसे आदरणीय रचनाकार रामसिंह जी ने भारत के उन वीर शहीदों को समर्पित किया है जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी जिनसे आज हमारे देश की सीमाएँ सुरक्षित हैं। आपका यह काव्य संग्रह कुल तीन खंडों में विभक्त है और यह कुल १०४ पृष्ठ का है। प्रथम खंड में ३२ कविताएँ हैं जो अधिकतर देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं। द्वितीय खंड में अवधी भाषा के रचित गीत एवं कविता है जिनकी संख्या १८ है एवं तृतीय खंड में कवि का चिंतन है जो १५ कविताओं से सजा दिखाई देता है। कुल मिलाकर यह काव्य संग्रह ६६ कविताओं को एक माला में पिरोए हैं।
कविता महज जीवन से नहीं बनती बल्कि जीवन को संचालित करने वाले विशाल शब्द भंडारों से निर्मित होती है। कविता मानव जीवन की कला है। कवि इस जीवन का अद्भुत कलाकार होता है। वह समाज में रहते हुए उसके तमाम पक्षों को देखता-परखता और अन्वेषण-विश्लेषण करता चलता है। समाज की परंपराएँ, तीज, त्योहारों को तो वह देखता ही नहीं है बल्कि उसमें घट रही घटनाओं का भी वह साक्षी होता है। कवि इंसान को एक बेहतर इंसान बनाने का मार्ग प्रशस्त करने का हिमायती होता है। उसकी सारी कोशिशें मानव समाज को और अधिक बेहतर बनाने के लिए सक्रिय रहती हैं। अपने जीवन की संगति-असंगति, आशा-निराशा, दुख-सुख आदि की प्रस्तुति के परोक्ष में एक मानव के जीवन की उठा-पटक को प्रस्तुत करना ही उसका उद्देश्य होता है। राम सिंह उन कवियों में से एक है जो कविता और कविता की जीवंतता को बरकरार रखने का उद्गम रचते हैं। इनके यहाँ सृजनात्मकता की उत्कंठा को गहरे अर्थों में महसूस किया जा सकता है। इनकी कविताओं से गुजरते हुए यह बात नि:संकोच कही जा सकती है कि कवि संवेदना का घनत्व कविता की सुंदरता को अधिक प्रभावी बनाता है। इस संदर्भ में डॉ. जगदीश गुप्त का मानना है कि `जो कथन सृजनात्मकता तथा संवेदनहीनता से रहित हो उसे किसी भी स्तर पर कविता नहीं कहा जा सकता।' इस वक्तव्य के आलोक में देखा जाए तो कविता के लिए कवि में सृजनात्मकता और संवेदनशीलता होना अनिवार्य शर्त मानी जा सकती है। यह काव्य संग्रह रामसिंह जी की भावनाओं, स्मृतियों, लोक साहित्य और मानव जीवन के प्रति उनकी मार्मिक अनुभूति का प्राकट्य है। आपने अपनी कविताओं में देश-प्रेम, एकता, मानवता और उम्र बढ़ने के साथ भावनाओं की धारा प्रवाहित की है। जो पाठक को भावनात्मक रूप से झकझोरती हैं। प्रथम खंड में आपने देश-प्रेम, शौर्य, एकता, राजनीति को केंद्र में रखकर अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की है जिसमें देश की अखंडता एवं भाईचारे को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
प्रत्येक राष्ट्र में तरह-तरह के लोग रह सकते हैं, उनकी बोलियाँ अलग-अलग हो सकती हैं, उनके धर्म भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, उनकी वेशभूषा अलग-अलग हो सकती है फिर भी जन्मभूमि समान होने के कारण उन्हें एक माना जाता है। अतः ऐसे अलग-अलग संप्रदाय, जाति एवं धर्म वालों में अलगाव की कल्पना करना भी राष्ट्रीयता के विरुद्ध है। हमारे देश में भी अनेक जाति, धर्म एवं संप्रदाय के लोग रहते हैं। राम सिंह जी अपनी रचना `जय भारत जय जय हिंदुस्तान' में उन सबकी एकता पर सर्वत्र बल देते कहते  हैं कि-
हिंदू मुस्लिम, सिख ईसाई, सभी हैं एक समान।
जय भारत जय भारती, गाएँ जय-जय हिंदुस्तान।
एकता की भावना को राष्ट्रीयता का एक आवश्यक अंग माना जाता है कवि रामसिंह चाहते हैं कि देश के निवासी अपने सारे भेद-भाव मिटाकर राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाएँ तथा स्नेह प्रेम एवं आपसी भाईचारे को मजबूत करते हुए राष्ट्र के लिए समर्पण का भाव रखें। कवि भारत की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, विश्व पटल पर भारत को विश्व गुरु के रूप में देखना चाहते हैं जिसकी कल्पना करते हुए वह लिखते हैं कि-
ठगा हुआ जग तुम्हें देखता, तेज रूप महान।
विश्व पटल पर चमके भारत, बढ़ता रहे सम्मान।
इस प्रकार हम देखते हैं कि राम सिंह की रचनाओं में राष्ट्रीयता एक काव्य शक्ति बनकर उभरी है। इससे उनके काव्य का सौंदर्य बड़ा है और उसमें  देश-प्रेम, संस्कृत प्रेम और चेतना अभिव्यक्ति हुई है। उनकी चाहत है कि राष्ट्र सुरक्षित रहें और हर प्रकार से संपन्न हो। ना उसमें गरीबी हो, ना अज्ञान। सभी में मेल-मिलाप हो और सब उदार मानव-मूल्यों से संपन्न एवं कर्म सिद्ध हो। 
कवि भारत की प्राकृतिक सुंदरता एवं महानता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत खड़ा है जो हमें रक्षा का संदेश देता है अर्थात सैन्य दृष्टि से हिमालय एक पहरेदार की भाँति दिखाई देता है। मुझे लगता है कवि रामसिंह जी पर `दिनकर' जी का भी प्रभाव है क्योंकि उन्होंने भी ठीक इसी प्रकार से कुछ ऐसी ही बात `हिमालय' कविता में कही हैं-
जिसके द्वारों पर खड़ा क्रांत, सीमापति तूने की पुकार,
पद दलित करना इसे पीछे, पहले ले मेरा सिर उतार।
रचनाकार राम सिंह जी भारत को आगे बढ़ाना चाहते हैं आपका मानना है कि अतीत के बल पर कब तक जिएँगे या गुणगान करेंगे। अक्सर देखा जाता है कि लोग बीती बातों की बात करते हुए अपने शौर्य गाथा गाते हैं किंतु कवि कहते हैं कि-
 पुरखों की बहादुरी गाथा, कब तक हम गाएँ,
आओ सब मिलकर के, भारत को आगे बढ़ाएँ।
`आओ हम जय गान करें' नामक शीर्षक कविता में कवि बिहारी जी की तरह गागर में सागर भरते हुए नजर आते हैं। अपनी कविता में वह शहीदों के बलिदान, महाराणा की वीरता, पन्ना धाय का बलिदान, पद्मिनियों का जौहर, वीर शिवाजी की तलवार, बाजीराव प्रभु की बाजी, मंगल पांडे का प्रथम गोली चलाना, लक्ष्मीबाई की तलवार, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक, चंद्रशेखर का गोली दागना, भगत सिंह का फाँसी के फंदे पर हँसते हुए चढ़ जाना तथा राजगुरु एवं वटुकेश्वर का साथ निभाना आदि को समाहित कर हमें उनका जयगान करने के लिए कहते हैं।
कहते हैं न कि जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि, जब रामसिंह अपनी कलम उठाते हैं तो कोई भी क्षेत्र उनसे भला अछूता कैसे रह सकता है। भारत के खेल क्षेत्र का वर्णन करते हुए हॉकी के जादूगर ध्यानचंद, क्रिकेट के सितारे युवराज और धोनी पर भी लेखनी चलाते हैं। हमारे यहाँ पुरानी कहावत थी पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब। मगर अब समय बदल गया है अब यह चरितार्थ न रही। जिसे आपकी कविता में देखा जा सकता है-
ध्यानचंद सा जादूगर बन, ओलंपिक हम जीतेंगे। 
युवराज सा विश्वकप में, चलो छह-छह छक्के लगाए।
चल लेकर बल्ला लल्ली औ लल्ला, 
धोनी-सा धो दे, बन न निठल्ला।
फुटबॉल खेलो चाहे कबड्डी, हर खेल देता नोटों की गड्डी।
मानव ब्रह्मांड का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा विवेक बुद्धि संपन्न प्राणी है वह अपने चिंतन मनन से असंभव को संभव कर सकता है और अपने तथा अपनी जाति के विकास के लिए नए-नए मार्गों का अन्वेषण कर सकता है। राम सिंह जी भी समाज के गिरते मूल्यों को लेकर सतत चिंतित हैं। भारतीय संस्कृति अपने मूल रूप में सुरक्षित रहें यह कवि की आंतरिक कामना है। वह नारी के प्रति सजग हैं उसकी सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हैं तभी तो लिखते हैं-
सबसे पहले सीता को रावण से बचाइए, 
न बच्चियां सुरक्षित, न यौवना सुरक्षित,
न वृद्धाएं सुरक्षित, न दिव्यांगाएं सुरक्षित।
`अनाड़ी और खिलाड़ी' तथा `काश मैं मंत्री होता' जैसी कविताओं में कवि राजनेताओं पर व्यंग्य करते हुए नजर आते हैं-
काश अगर मैं मंत्री होता, दरवाजे पर संतरी होता,
लंच असेंबली में होता, डिनर बीयर बार में होता,
इतनी व्यस्तता होती, कभी-कभी विमान में सोता,
अरबों का गमन मैं करता, फिर भी कॉलर टाइट होता,
बेटे विदेश में पढ़ने जाते, स्विस बैंक में पैसा होता।
प्रकृति का मनुष्य अनादि काल से संबंध है कवि भी उसकी ओर आकर्षित होता रहा है। उसके विभिन्न उपादानों का कविता में प्रयोग करता रहा है। प्रकृति सौंदर्य अनेक-अनेक रूप प्रकट करता रहा है। कवि गाँव में जन्मे और पले हैं। गाँव छोड़ देने के बाद भी वह शहर का नहीं हो पाते ऐसा उनकी कविताओं से लगता है। ग्राम सौंदर्य उनकी नस-नस में रचा बसा है। `सबसे न्यारा बसंत' में वह गेहूँ की बाली आने और गोरी के फोन के साथ यौवन पर चित्र खींचता है।
गेहूँ लेने लगा बाली, गोरी हो गई मतवाली,
किया बार-बार फोन, फिर भी आए नहीं कंत,
सबसे प्यारा बसंत, सबसे प्यारा बसंत।
  मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है, कोई इसे अमीरों का शहर कहता है तो कोई झोपड़पट्टियों का। यहाँ किसी की छत पर हवाई जहाज की लैंडिंग होती है तो वह श्रमजीवी का एक बड़ा वर्ग आसमाँ को फिर छत मानकर अपनी रातें बिता लेता है। एक तरफ करोड़ों की गाड़ियों से झांकते कुत्ते देखे जाते हैं तो दूसरी तरफ लोकल ट्रेन की भीड़ में हर साँस के लिए नाक की दिशा बदलते लाखों लोग, निवास और नौकरी के स्थानों के बीच आवागमन में ज्यादा समय बिता देते हैं। एक ऐसा शहर है जहाँ कोई भूखा नहीं सोता यहाँ सभी के रोजी-रोटी का जुगाड़ हो ही जाता है। जिसे रामसिंह अपनी कविता में कहते हैं-
माया नगरी महामुंबई, मुंबा देवी धाम जहाँ,
सब प्रदेश के लोग यहाँ हैं, मिलता सबको काम यहाँ,
महालक्ष्मी की माया से, यहाँ लक्ष्मी महती है।
इसी खंड की और कविताएँ जैसे- `सावधान पाकिस्तान', `साक्षरता', `इक्कीसवीं सदीं का युवक', `शेष जीवन बड़ा तूफानी है' आदि कोई न कोई संदेश लिए हुए हैं।
द्वितीय खंड में कवि अपनी भाषा, अवधी भाषा और अपनी माटी उत्तर प्रदेश के प्रति प्रेम दर्शाते हैं। जिस पर आधारित रचना कर वह अपना कर्तव्य निभाते हैं। `केहू के फुरसत नाहीं बा' में अपनी भाषा में लिखते हैं-
रामसिंह का कविता करब, केहू के फुरसत नाही बा,
सभी चतुर ह, सबही वक्ता, केहू श्रोता नाहीं बा,
आगे कहते हैं कि -
सारे लड़का बाप होई गए, कोऊ नाती-पोता नाही बा।
`बुढ़वा बरगद सूखि गवा’
कविता में वह तकनीकी के आ जाने से बेरोजगारी की समस्या और प्रकृति के प्रति अर्थात पेड़ों की समस्या के प्रति भी सजग दिखाई देते हैं। भला देश की ज्वलंत समस्याओं से वह कैसे दूर रह सकते हैं तभी तो `प्रदूषण को जड़ से मिटाना है', `जनसंख्या विस्फोट बचाओ' एवं `भ्रूण हत्या' जैसी रचनाओं के माध्यम से वह जन-जन में जागरूकता फैलाकर कर्तव्यों के प्रति सचेत करते हैं।
तृतीय खंड में मानव जीवन की भावनाआें को केंद्र में रखकर रचनाएँ की गई हैं। यह खंड पूर्णत: चिंतन के लिए समर्पित है। ईश्वर के प्रति आशावादी तो दिखाई देते हैं, मगर बार-बार वह ईश्वर, अल्लाह, गॉड को ढूंढ़ते नजर आते हैं। वह ईश्वर से कहते हैं- 
सब घृत, कपूर, रोरी, चंदन, पुष्प, माला, प्रसाद, लाते हैं।
मेरी पूजा अर्चना स्वीकार करो, तेरे दर पर खाली हाथ आया हूँ।
अपनी आखिरी कविता में अपने नाम के अनुरूप ही वह हम सबसे राम-राम करने का आग्रह करते हैं,और सही ही है क्योंकि अयोध्या भूमि के कारण आज समूचा भारत राममय हो गया है। अपनी कविता मे कहते है कि -
एक ही काम सुबह शाम कीजिए, जो भी मिले उसे राम-राम कीजिए।
कवि राम सिंह का निजी अनुभव को परखने की सूक्ष्म दृष्टि समाज के प्रति गहरी सकारात्मक सोच के अलावा इन कविताओं में बहुत कुछ अनकही सी बातें भी हैं। शिल्प की दृष्टि से काव्य में विचार तत्व और कला तत्व का सुंदर समन्वय मिलता है। छंद, भाषा, अलंकार, प्रतीक और बिंब के नवीन प्रयोग का सुंदर समायोजन आपकी रचनाओं को प्रभावशाली बना दिया है। शब्दों पर आपका असाधारण अधिकार है, आपने बहुतायत देशज शब्दों का भी प्रयोग किया है।


'जय भारत - जय हिंदुस्तान'
लेखक: राम सिंह 
पूर्व प्रधानाध्यापक,लेखक, 
समीक्षक, समाजसेवी 

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