राष्ट्र भाषा ही देश को भावनात्मक रूप से जोड़ती है

भाषा का राष्ट्र की एकता, अखंडता व विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है। राष्ट्रभाषा देश को भावनात्मक व सांस्कृतिक रूप से संगठित करने में सहायक होती है। प्राचीन काल में कश्मीर से कन्याकुमारी तक, आसाम से लेकर सौराष्ट्र तक समस्त सांस्कृतिक तथा धार्मिक चर्चा व वैचारिक आदान-प्रदान संस्कृत भाषा में होता था । विदेशी आक्रमण व अपनी क्लिष्टता के कारण इसका महत्व क्षीण हुआ और हिंदी वैचारिक अभिव्यक्ति की भाषा बनी। इसका सम्पूर्ण राष्ट्र की एकता, अखंडता व सांस्कृतिक समृद्धि में अमूल्य योगदान है ।

Aug 28, 2024 - 16:18
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राष्ट्र भाषा ही देश को  भावनात्मक रूप से जोड़ती है
National language

भाषा वैचारिक आदान प्रदान का मूल तत्व है। हिंदुस्तान में हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि सहस्र वर्षों से अधिकांश लोगों की दिनचर्या का अंग बनी हुई है। भारत पर मुस्लिम आक्रमण के पूर्व तक इसका गौरव अक्षुण्ण रहा। कालांतर में मुग़ल शासक अकबर ने राज्य के हिंदी कार्यालयों को फ़ारसी में परिवर्तित कर इसका महत्व न्यून कर दिया। अकबर के शासन काल से लेकर औरंगजेब के काल तक कार्यालयों से  हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि को निष्कासित कर फ़ारसी को प्रतिष्ठापित कर दिया गया कालक्रम में ब्रिटिश शासन काल में इसका स्थान अंग्रेजी भाषा ने ले लिया और आज भी यह शीर्ष पर विराजमान है।

भाषा का राष्ट्र की एकता, अखंडता व विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है। राष्ट्रभाषा देश को भावनात्मक व सांस्कृतिक रूप से संगठित करने में सहायक होती है। प्राचीन काल में कश्मीर से कन्याकुमारी तक, आसाम से लेकर सौराष्ट्र तक समस्त सांस्कृतिक तथा धार्मिक चर्चा व वैचारिक आदान-प्रदान संस्कृत भाषा में होता था । विदेशी आक्रमण व अपनी क्लिष्टता के कारण इसका महत्व क्षीण हुआ और हिंदी वैचारिक अभिव्यक्ति की भाषा बनी। इसका सम्पूर्ण राष्ट्र की एकता, अखंडता व सांस्कृतिक समृद्धि में अमूल्य योगदान है ।यह मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश में मुख्य रूप से बोली जाती है। न सिर्फ हिन्दू बल्कि मुस्लिम साहित्यकारों, मालिक मुहम्मद जायसी, रसखान, ताज, रहीम ने भी  इसके संवर्धन में अमूल्य योगदान दिया है। हिंदी के विषय मे अमीर खुसरो जो `तूतिये हिन्द' के नाम से भी विख्यात है, कहते हैं `चूं मत तती हिदं अर रास्त पुरसी, जे मन हिन्दवी पुरस ता नग्ज गोयम।' 

अर्थात मैं हिंदुस्तान की `तूती' हूँ। पुरस ता नग्ज गोयम। अर्थात मैं हिंदुस्तान की `तूती ' हूँ। अगर मुझसे सच पूछते हो तो हिंदी में पूछो जिससे मैं कहीं `अच्छी बातें बता सकूं' वास्तविकता भी यही है अपनी मूल भाषा में ही बेहतर वैचारिक सम्प्रेषण सम्भव है। हिंदी भाषा पढ़ने, लिखने व बोलने में सहज, लसरल माधुर्यपूर्ण है तथा कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास आदि सभी विधाओं में प्रचुर साहित्य उपलब्ध है। यह उदार भाषा है जिसने अन्य भाषाओं के अरबी, फारसी, अंग्रेजी भाषा के शब्दों को उनके मूल रूप में ही आत्मसात कर लिया। देश में ६५ प्रतिशत हिंदी भाषी जनसंख्या है, लगभग हर प्रान्त के लोग हिंदी जानते व समझते हैं । अन्य भाषाओं के समान हिंदी का भी विज्ञान है।  

किंतु आज अपने ही देश मे हिंदी उपेक्षित व पिछड़ेपन का दंश सहन कर रही है। औपनिवेशिक काल मे ब्रिटिश सत्ता ने देश को राजनैतिक रूप को गुलाम बनाने के साथ साथ यहाँ की संस्कृति पर भी प्रहार किया। उनकी भाषा अंग्रेजी थी अतः व्यापारिक, राजनीतिक व व्यवहारिक कार्यों के लिए उन्होंने रंग व रक्त से भारतीय परन्तु सोच, रुचि, नैतिकता व बुद्धि से अंग्रेज परस्त वर्ग तैयार किया। थोड़ी सी अंग्रेजी जानने वाले को नौकरी व अन्य तरह की सुविधाएं प्रदान की। यहीं से हिंदी के दुर्दिन प्रारम्भ हो गए। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान जून १९४६ में गांधी जी ने भारत के स्वतंत्र होने के छः माह के बाद सम्पूर्ण देश के कामकाज  हिंदी में होने की बात कही थी, परंतु आजादी के ७१ वर्ष बीत जाने के बाद भी अधिकांश संस्थानों में कामकाज अंग्रेजी में ही होता है । १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा का स्थान देकर इस भाषा को सुधारने का प्रयास किया।

स्वाधीनता आंदोलन के दौरान जून १९४६ में गांधी जी ने भारत के स्वतंत्र होने के छः माह के बाद सम्पूर्ण देश के कामकाज  हिंदी में होने की बात कही थी, परंतु आजादी के ७१ वर्ष बीत जाने के बाद भी अधिकांश संस्थानों में कामकाज अंग्रेजी में ही होता है। १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा का स्थान देकर इस भाषा को सुधारने का प्रयास किया।किंतु १९६० में दक्षिण में हिंदी हटाओ,उत्तर में अंग्रेजी हटाओ अभियान ने हिंदी की क्षति की, साथ ही तकनीकी  विषयों पर हिंदी में शब्दावली व पुस्तकें न होने के कारण भी हिंदी का गौरव न्यून हो रहा है।प्रांतीय संकीर्णतावाद राष्ट्रवाद को क्षति पहुँचा रहा है।क्षेत्रीय भाषा का अपना का अपना भिन्न गौरव है इसी से देश की सांस्कृति समृद्धि है।परंतु उसकी राष्ट्र भाषा से तुलना करना विवेक हीनता है।राष्ट्रीय संस्कृति की पहचान राष्ट्रभाषा से है न कि क्षेत्रीय भाषा से।

कर्नाटक (बंगलूरू) के डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल की शोध रिपोर्ट में हिंदी को विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा बताया गया है तथा विश्व में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिये कार्य कर रहे ग्वालियर के आचार्य राजेन्द्रनाथ मेहरोत्रा ने भी अपने विश्वविख्यात  ग्रन्थ `श्रृंखला' के प्रथम खंड में इसे सही माना है। विश्व की सबसे बड़ी भाषा होने के बावजूद हर जगह अंग्रेजी प्रभावी है। अंग्रेजी भाषा को बोलना व सीखना अपेक्षाकृत कठिन होने के कारण `हिंग्लिश' को प्रश्रय मिल रहा है,जिसमें हिंदी के साथ अंग्रेजी के वाक्य शामिल हैं।

हिंदी के उत्थान के लिये १४ सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस व हिंदी सप्ताह मनाया जाता है। यूनेस्को का भी मानना है भाषा सिर्फ संपर्क, शिक्षा व विकास का माध्यम न होकर व्यक्ति की विाfशष्ट पहचान होती है, तथा उसकी संस्कृति,परंपरा एवं इतिहास का कोष है।

डॉ. कामिनी 

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