न्यू ईयर रेसोल्यूशन (व्यंग्य)
३१ दिसंबर की रात को जमकर मादक पदार्थों के पैग पर पैग खींचकर और लेग पीसों की हड्डियों तक को पीस पीस कर खाने के बाद, १ जनवरी को हैंगओवर से भरा माथा लेकर कोई मॉर्निंग वॉक पर निकलता है तो कोई जिम जाकर डोले और एब्स बनाने की कोशिशें शुरू कर देता है। कोई सुबह सुबह स्नान कर के भक्ति में डूबा हुआ मिलता है तो कोई किताबों से घिरा हुआ सीरियस पढ़ाई शुरू कर देता है, कोई सोमरस और धूम्रदण्डिका का त्याग कर चुका होता है तो कोई मांसाहार का।

१ जनवरी, यानी साल का पहला दिन, यानी साल के लिए तैयार संकल्प को अमल में लाने का पहला दिन, यानी अनमने ढंग से वो चीज करने का पहला दिन जो हम खुशी से करना ही नहीं चाहते। जो ना तो हमारी आदतों से मेल खाता है और ना ही पर्सनालिटी से। जो हमें खुद भी पता है कि चार दिन से ज्यादा चलेगा नहीं। चीन के सामान के लिए कहा जाता है कि चले तो चाँद तक नहीं तो शाम तक। पर लोगों के द्वारा लिए गए न्यू ईयर रेसोल्यूशन के साथ इतना कन्फ्यूजन है ही नहीं। सबको पता है चलेगा ही नहीं इसलिए विद्वानों द्वारा इसे चाँद तक या शाम तक वाली कहावत से जोड़ने की ज़हमत ही नहीं उठाई गई।
न्यू ईयर रेसोल्यूशन इतनी झूठी चीज़ है कि एक बार को आप भारतीय नेताओं के भाषणों-वादों पर यकीन कर सकते हैं पर नववर्ष संकल्प पर यकीन करना मतलब खुद की आंखों में धूल झोंकना।
३१ दिसंबर की रात को जमकर मादक पदार्थों के पैग पर पैग खींचकर और लेग पीसों की हड्डियों तक को पीस पीस कर खाने के बाद, १ जनवरी को हैंगओवर से भरा माथा लेकर कोई मॉर्निंग वॉक पर निकलता है तो कोई जिम जाकर डोले और एब्स बनाने की कोशिशें शुरू कर देता है। कोई सुबह सुबह स्नान कर के भक्ति में डूबा हुआ मिलता है तो कोई किताबों से घिरा हुआ सीरियस पढ़ाई शुरू कर देता है, कोई सोमरस और धूम्रदण्डिका का त्याग कर चुका होता है तो कोई मांसाहार का।
३-४ जनवरी आते आते इन सभी रणबाकुरों के जोश, संकल्प, कसम, लक्ष्य इत्यादि पर नींद और जिह्वा में स्थित स्वाद कणिकाएं विजय प्राप्त कर लेती है और इनकी समझ में भी ये बात आ जाती है कि जनवरी की सर्दियों में गर्मागर्म रज़ाई में सोने और लज़ीज़ भोजन से बढ़कर कोई संकल्प नहीं कोई लक्ष्य नहीं।
'रेसोल्यूशन का क्या है अगले साल फिर से ले लेंगे। तब तक अपनी बॉडी को इस तरफ ढालेंगे। धीरे धीरे उन आदतों को कम करेंगे जिन्हें छोड़ना है या बदलना है और फिर अगली जनवरी आसानी से नववर्ष का संकल्प पूरा कर पाएंगे।' ये पंक्तियां खुद की तसल्ली के लिए खुद से ही कही जाती हैं। बाक़ी मियां ग़ालिब तो पहले ही कह गए हैं 'कि दिल बहलाने को ग़ालिब ख़्याल अच्छा है।'
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