श्रद्धा सुमन चढ़ाएं।
ट्ठारह सौ सत्तावन की पहली जो चिंगारी थी, आज़ादी हासिल करने की छोटी सी तैयारी थी।
राष्ट्र है निर्मित बलिदानों से
और लहू के धारो से,
बर्फ़ीली ठिठुरन से होकर...
और तप के अंगारों से।
एक एक बलिदान के आगे
नतमस्तक हो जाएं,
आओ अमर शहीदों को हम
श्रद्धा सुमन चढ़ाएं।
अट्ठारह सौ सत्तावन की
पहली जो चिंगारी थी,
आज़ादी हासिल करने की
छोटी सी तैयारी थी।
यह तैयारी पहला कदम
बनी मंजिल की राह में,
जुड़ता गया कारवां फिर तो
आज़ादी की चाह में।
गली गली और गाँव गाँव से
कण कण फिर हुंकार उठा,
हो स्वतंत्रता मात्र लक्ष्य
बच्चा बच्चा ये पुकार उठा।
यह पुकार बन गूंज चली फिर
साहस और बल बनकर,
कुछ ऐसा संग्राम छिड़ा जो
था विकराल भयंकर।
इस संग्राम में लाखों प्राणों
की आहुति आई थी,
और आहुति में राष्ट्रप्रेम था,
त्याग व सच्चाई थी।
महायज्ञ में सर्वसमर्पण
आज़ादी का लक्ष्य लिए,
और नियति भी ना रह पाई
फिर वीरों का पक्ष लिए।
पक्ष वीरता, पक्ष था साहस
पक्ष में सच्चाई थी,
इसीलिए तो मेहनत वीरों
की अब रंग लाई थी।
बार बार हो चोट तो
पर्वत पस्त भी हो सकता है,
हो मजबूत किला कितना
वो ध्वस्त भी हो सकता है।
था सन सैंतालीस ध्वस्त
साम्राज्य जो कर पाया था,
और अगस्त पन्द्रह भारत का
नया सवेरा लाया था।
नई उम्मीदों नई आस का
नया सूर्य फिर आया,
नई ऊर्जा नई शक्ति से
कदम बढ़ाने लाया।
आगे कदम बढ़ें पर कुर्बानी
हम भूल न पाएं,
सत्य और सम्मान हेतु
हर बाधा से टकराएं।
एक एक बलिदान के आगे
नतमस्तक हो जाएं,
आओ अमर शहीदों को हम
श्रद्धा सुमन चढ़ाएं।
आओ अमर शहीदों को हम
श्रद्धा सुमन चढ़ाएं।
मुकेश जोशी 'भारद्वाज'
जिला पिथौरागढ़, उत्तराखंड
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