संतुलन बनाकर

डोर किसी के हाथ सधी, हम बने हुए कठपुतली। नाच रहे ज्यों हम ख़ुद हों,

Mar 19, 2024 - 16:26
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संतुलन बनाकर
by balancing

इतना सरल नहीं होता,
जग के साँचे में ढलना।
कर्तव्यों की डोरी पर,
संतुलन बनाकर चलना।

डोर किसी के हाथ सधी,
हम बने हुए कठपुतली।
नाच रहे ज्यों हम ख़ुद हों,
मन बजा रहा है ढपली।

इन हालातों में लगता,
मुश्किल है स्वयं सँभलना।

संबंधों की हठी तुला,
संतुलित न है रह पाती।
पासंगों में स्वार्थ निहित,
हर तोल छलक ही जाती।

आहत हो उठता है मन,
जब की जाती है तुलना।

हालातों से लड़-भिड़कर,
हैं हाथ लगे जब घाटे।
उहापोह की स्थिति में,
ढोने होंगे सन्नाटे।

फिर भी उसका स्वागत है, 
जो मुझसे चाहे मिलना। 

ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

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