मन सुन्दर तो सब सुन्दर
केवल क्षण भर की सुंदरता है नहीं मुझे स्वीकार। सारा जग हो, आलोकित यही प्रण है इस बार। लिए गोद मर रही मानवता , नृतनकरते लोग।।
केवल क्षण भर की सुंदरता है नहीं मुझे स्वीकार।
सारा जग हो, आलोकित यही प्रण है इस बार।
लिए गोद मर रही मानवता , नृतनकरते लोग।।
दबा पुरुषार्थ मिट्टी में, क्यो अंधरे करते जोग।।
सुधरे साहित्य से दुनिया, हो सुखद सौम्य संसार।।
नई धुन और नया तराना, बस सबको है अपनाना।
रंग रूप का भेद भुलाकर , समवेत स्वरों में चिल्लाना।
काल-तिमिर के नागपाश से सभी बेड़ियां कट जाए।
कंक कण क्षण क्षण मुस्काए। रुके मरू का पतझार
पथ के साथी जो बिछड़े मिलजुल वापस आ जाना।
शतपथ पर , निर्भय होके, मधुमय देश बना जाना
सभी दिलों में हरदम हो, एका का त्यौहार।
तब झूम-झूम पंछी गाए, और धरती करे सिंगार।।
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