प्रतिशोध

गाँव में पावनी चचेरी बहन की शादी में आई हुई थी तो उधर मेजर नीतेश भी उस शादी में लड़के वाले की तरफ से शामिल हुआ था। जूते चुराने की रस्म में नीतेश और पावनी में नोक झोंक शुरू हो गया था। यहीं से नीतेश और पावनी एक दूसरे को पहचानने लगे थे। घर जाकर मेजर नीतेश ने अपनी माँ से कहा,`माँ, मैंने शादी के लिए लड़की पसंद कर ली है, मुझे पावनी पसंद है, तुम रिश्ते लेकर जाओ,शायद पावनी को भी यह रिश्ता मंजूर होगा।'

May 29, 2025 - 18:26
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    पावनी शहर की पढ़ी लिखी और फर्राटे दार अंग्रेजी बोलने वाली लड़की थी। देश प्रेम की भावना तो उसमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। इधर नीतेश हिंदी माध्यम से पढ़ा लिखा गाँव का युवक था। नीतेश में भी देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा था। बचपन से ही नीतेश के मन में सैनिक बनने की तमन्ना थी। उसने बड़ी ही तल्लीनता से एनडीए की तैयारी की और उसमें उसका चुनाव भी हो गया। गाँव में पावनी चचेरी बहन की शादी में आई हुई थी तो उधर मेजर नीतेश भी उस शादी में लड़के वाले की तरफ से शामिल हुआ था। जूते चुराने की रस्म में नीतेश और पावनी में नोक झोंक शुरू हो गया था। यहीं से नीतेश और पावनी एक दूसरे को पहचानने लगे थे। घर जाकर मेजर नीतेश ने अपनी माँ से कहा,`माँ, मैंने शादी के लिए लड़की पसंद कर ली है, मुझे पावनी पसंद है, तुम रिश्ते लेकर जाओ,शायद पावनी को भी यह रिश्ता मंजूर होगा।'
नीतेश की माँ पावनी के घर रिश्ता लेकर गई। पावनी के माँ-बाप इतनी जल्दी रिश्ते स्वीकार करने को तैयार नहीं थे लेकिन मेजर नीतेश के रिश्ते को पावनी ने स्वीकार कर लिया। पावनी अपने पिता से बोली,' पापा सैनिक प्रत्यक्ष रूप से देश की सेवा करते हैं, और शुरू से मेरा सपना था कि मैं किसी सैनिक से ही शादी करूँगी।' पावनी की बात से पिता निरुत्तर हो गए, कहा भी गया है कि मियां बीबी राजी तो क्या करेंगे काजी। मेजर नीतेश और पावनी में चट मंगनी पट विवाह हो गया। 
             मेजर नीतेश अपनी पत्नी पावनी को लेकर कश्मीर की उस जगह पर आ गया जहाँ पर उसकी पोस्टिंग थी। मेजर नीतेश कश्मीर में आतंकवादियों के सफाया करने के एक मिशन में शामिल था। उस गाँव के सरपंच से नीतेश आतंकवादियों के बारे में जानकारी प्राप्त करता था। एक दिन अकेले नीतेश ने पाँच आतंकवादियों को मार गिराया था। सेना में उसका बड़ा ही रुतबा बढ़ गया था और पावनी के नजर में तो वह सबसे बड़ा हीरो बन गया था। एक दिन नीतेश पावनी को घर में छोड़कर एक खुफिया मिशन में अपने पाँच साथियों के साथ गया। गाँव का वही सरपंच ने नीतेश को धोखा देकर आतंकवादियों को उस मिशन के बारे में बता दिया था। धोखेबाजी की वजह से आतंकवादियों के द्वारा नीतेश और उसके साथी मारे गए। पावनी अब शहीद मेजर नीतेश की विधवा बन गई थी। पावनी कमजोर नारी नहीं थी,वह सरपंच के धोखे को भूल नही पा रही थी। वह अपने पति की मृत्यु का प्रतिशोध लेना चाहती थी। पावनी नीतेश की टुकड़ी के सीओ के पास गई और बोली,' जब तक मैं अपने पति की मृत्यु का प्रतिशोध नहीं लूँगी तब तक मैं यहाँ से नहीं जाऊँगी,आप मेरी मदद कीजिए।' नीतेश की टुकड़ी पावनी को मदद देने के लिए तैयार ही गई।
इसके बाद पावनी ने बुद्धिमानी से सरपंच को अपने जाल में घेरा। इसके साथ-साथ पच्चास खूँखार आतंकवादियों के बारे में भी उसे जानकारी मिली। फिर सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक से सभी आतंकवादियो का सफाया कर दिया गया और सरपंच को भी मार गिराया गया। पावनी ने जब आतंकवादी और सरपंच की लाशों को देखी तब उसके मन के प्रतिशोध की अग्नि शांत हुई। प्रतिशोध की ज्वाला शांत होने के बाद ही उस रात पावनी को अच्छी नींद आई थी।

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