सपनों का विज्ञान और सपनों की फिल्मकारी (नए वैज्ञानिक आयाम और आविष्कार)
सपनों के वैज्ञानिक अध्ययन को ओनेरोलॉजी कहा जाता है। अधिकांश आधुनिक स्वप्न अध्ययन सपनों के न्यूरोफिज़ियोलॉजी पर और स्वप्न कार्य के बारे में परिकल्पनाओं को प्रस्तावित करने और परीक्षण करने पर केंद्रित है।

आप सबने सपने जरुर देखे हैं। बहुत बार ऐसा होता है कि हमें यह तो याद होता है कि हमने सपना देखा लेकिन क्या देखा यह भूल जाते हैं। सपनों की अपनी एक रहस्यमयी दुनिया है जिसके बारे में सदा से जानने की इच्छा रही है और बहुत से लोगों ने इस पर काम भी किया है। सपने उन्हें भी आते हैं जो देख नहीं सकते और उन्हें भी जो देख सुन सकते हैं।
सपने मानसिक कल्पना की गतिविधि हैं जो सोते समय होती है। आप नींद के किसी भी चरण में सपने देख सकते हैं, लेकिन आपके सबसे ज्वलंत सपने आमतौर पर रैपिड आई मूवमेंट स्लीप या REश् स्लीप में होते हैं। यह नींद की वह अवधि है जब आपका मस्तिष्क अत्यधिक सक्रिय होता है, आपकी आँखें, आपकी बंद आँखों के पीछे तेज़ी से चलती हैं और आपकी मांसपेशियों की टोन अस्थायी रूप से कम हो जाती है। कल्पना कीजिए। आप गहरी, आरामदायक नींद का आनंद ले रहे हैं, तभी अचानक आप चौंककर जाग जाते हैं। हालाँकि, यह बाहर के शोर से नहीं, बल्कि एक ज्वलंत सपने से होता है। यह जरूरी नहीं कि यह असामान्य हो। लेकिन आप सोच रहे होंगे कि आपके सपने इतने वास्तविक क्यों हैं और जब आप किसी के बारे में सपने देखते हैं तो इसका क्या मतलब होता है?
सिगमंड प्रâायड और कार्ल जंग जैसे मनोवैज्ञानिकों ने सपनों का मतलब समझाने के लिए सिद्धांत विकसित किए। प्रâायड का मानना था कि सपने दमित विषय-वस्तु, विचार या विषय होते हैं। लेकिन चिकित्सा के नज़रिए से सपनों की व्याख्या अभी भी एक रहस्य है। कोई वास्तविक सुसंगत, वैज्ञानिक रूप से सिद्ध सिद्धांत नहीं है जो किसी सपने के अर्थ से जुड़ी किसी विशिष्ट सामग्री को जोड़ता हो।
सपनों के वैज्ञानिक अध्ययन को ओनेरोलॉजी कहा जाता है। अधिकांश आधुनिक स्वप्न अध्ययन सपनों के न्यूरोफिज़ियोलॉजी पर और स्वप्न कार्य के बारे में परिकल्पनाओं को प्रस्तावित करने और परीक्षण करने पर केंद्रित है। यह ज्ञात नहीं है कि मस्तिष्क में सपने कहां से उत्पन्न होते हैं, क्या सपनों के लिए एक ही उत्पत्ति है या मस्तिष्क के कई क्षेत्र शामिल हैं, या शरीर या मन के लिए सपने देखने का उद्देश्य क्या है।
हम दिन भर जो काम करते हैं, जो बातें करते हैं वो सब हमारे दिमाग़ की किसी अलमारी में जमा होती रहती हैं फिर जब हम सो जाते हैं तब हमारा दिमाग़ उन बातों की जांच-परख करता है। हमारे अवचेतन मन और दिमाग़ के बीच बात-मुलाक़ात होती है। ये दोनों जैसी बातें करते हैं, उसकी एक तस्वीर हमारे सामने बनती चली जाती है। इन्हें ही हम ख्वाब कहते हैं. दुनिया में ऐसा कोई शख्स नहीं जिसे सपने ना आते हों। कुछ ख्वाब हमें लंबे वक्त तक याद रहते हैं, तो कुछ आंख खुलने के साथ ही ख़त्म हो जाते हैं। ख्वाबों को शब्दों का अमली जामा पहनाने का विचार इंसान को तब से आया, जब से हमारे पुरखों ने अपने खयालात और सोच को ज़बान देना सीखा। उससे पहले ख्वाब का नज़र आना बेमानी था।
पिछली एक सदी में मानव जीव विज्ञान पर हमारी समझ काफी बढ़ी है परन्तु सपनों को समझने में प्रगति काफी धीमी रही है। सपनों की जैविक प्रणाली हमारे लिए अस्पष्ट सी है। एकमात्र निश्चित बात यह है कि अधिकांश मनुष्य सपने देखते हैं। नींद मुख्य रूप से दो तरह की होती है: नॉन-रैपिड आई मूवमेंट (र्REश्) नींद, रैपिड आई मूवमेंट (REश्) नींद। नींद के चक्र में र्REश् नींद के तीन चरण होते हैं (र्१, र्२, और र्३)। इनके बाद REश् नींद का एक छोटा सा अंतराल आता है। REश् नींद के दौरान ही सबसे ज़्यादा सपने आते हैं। ज़्यादातर लोगों में हर ९० मिनट में REश् नींद आती है। पहला REश् काल ५ मिनट तक, दूसरा १० मिनट तक, तीसरा १५ मिनट तक, और आखिरी REश् काल ३० से ६० मिनट तक रहता है। नींद की जो अवस्था यादगार सपने देखने से जुड़ी है, उसे रैपिड आई मूवमेंट (REश्) नींद कहा जाता है। इस चरण में व्यक्ति की आंखें तेज़ी से हरकत करती रहती हैं। नींद के इस चरण में जाग जाएं, तो लोग अक्सर बताते हैं कि वे इस वक्त सपना देख रहे थे। शोधकर्ताओं के लिए REश् एक पहेली है क्योंकि इसे मापना मुश्किल है।
१९५२ में REश् नींद की खोज हुई और इसने सपनों को मनोविश्लेषण से अलग दिशा में आगे बढ़ाया। REश् नींद में मस्तिष्क उतना ही सक्रिय पाया गया जितना कि पूरी तरह से जागृत अवस्था में होता है। लेकिन शरीर निष्क्रिय था, सो रहा था। REश् नींद सभी स्तनधारियों और पक्षियों में देखी गई है। मिशेल जौवे ने दर्शाया है कि बिल्ली के ब्रेन स्टेम में क्षति पहुंचाने से वह स्वप्नावस्था की शारीरिक गतिहीनता से मुक्त हो जाती है। सपने में तो वह बिल्ली अन्य बिल्लियों के साथ आवाज़ें निकालते हुए लड़ती-भिड़ती है, लेकिन जागने पर लड़ना बंद कर देती है।
मस्तिष्क तरंगों की रिकॉर्डिंग (ईईजी) से इस बारे में नई समझ मिली है। इन रिकॉर्डिंग ने बताया है कि REश् नींद और जागृत अवस्था के बीच बहुत कम अंतर है। एक दिलचस्प प्रयोग में तंत्रिका वैज्ञानिक मैथ्यू विल्सन ने भूलभुलैया से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढते हुए एक जागृत चूहे के मस्तिष्क की गतिविधि को रिकॉर्ड किया। कुछ ही समय बाद जब चूहा REश् नींद में था तब उन्हें उसके मस्तिष्क में उसी तरह की मस्तिष्क तंरगें दिखीं – तो क्या वह सपने में भी भूलभुलैया से निकलने का रास्ता खोज रहा था? सपनों वâा अध्ययन करने का एक अन्य तरीका रहा सपनों का वृहत डैटाबेस संकलित करना। सपनों के संग्राहक केल्विन हॉल ने ५०,००० सपनों के विश्लेषण से निष्कर्ष निकाला था कि अधिकांश सपने असंगत-यथार्थवादी पेंटिंग जैसे नहीं होते और उनका काफी हद तक पूर्वानुमान किया जा सकता है। हो सकता है कि सपने देखते समय बच्चे मुस्कराएं क्योंकि बच्चों के सपनों में जानवरों को देखने की अधिक संभावना होती है, लेकिन वयस्कों के सपने बहुत सुखद नहीं होते और अक्सर उनमें चिंता के क्षण होते हैं।
साइंटिस्ट्स ने रिसर्च में शामिल वॉलंटियर्स के दिमाग स्कैन करने और खास ब्रेन पैटर्न से जुड़ी इमेजेस को एनालाइज किया, तो सपनों की बतायी गई कहानी ६० प्रतिशत तक एक्यूरेट निकली। खास विजुअल ऑब्जेक्ट्स की वजह से यह एक्यूरेसी ७० प्रतिशत से अधिक तक बढ़ गई. रिसर्च टीम का दावा है कि यह इंस्ट्रूमेंट ह्यूमन ब्रेन को अच्छी तरह समझ सकता है और सपने देखने के महत्व को समझने में न्यूरोसाइंटिस्ट्स, साइकोलॉजिस्ट्स और रिसर्चर्स के लिए मददगार है।
सपनों की दुनिया बेहद रहस्यमयी है। अच्छे-बुरे सपनों को लेकर अक्सर कई तरह की मान्यताएं भी होती हैं। लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि हम सपनों को भूल जाते हैं, पर अब ऐसा नहीं होगा। अब जल्दी ही ऐसी टेक्नोलॉजी आ सकती है, जहां सपनों को आप दोबारा देख सकेंगे। जापानी साइंटिस्ट्स ऐसी मशीन बना चुके हैं जो आपके सपनों को रिकॉर्ड करेगी। जापानी साइंटिस्ट्स की टीम दुनिया के इस सबसे रोचक और रहस्यमयी विषय पर करीब १० सालों से काम कर रही है। एक साइंस फिल्म में दिखाए गए सीन को साइंटिस्ट्स असलियत में बदलने में लगे हुए हैं। कुछ सालों पहले ऐसी मशीन बनाई गई थी जो दिमाग से मिले सिग्नल से बता सकती थी कि व्यक्ति सपने में क्या देख रहा है और इसपर लगातार काम जारी है।
जब भी हम कोई सपने देखते हैं, तब हमारे दिमाग में न्यूरल पैटर्न तैयार होते हैं। ये सब न्यूरॉन्स की हरकत की वजह से होता है। जब दिमाग एक्टिव होता है तब न्यूरॉन्स मस्तिष्क को संदेश भेजने में मदद करते हैं। माना जाता है कि सपनों के दौरान भी कुछ न्यूरॉन्स हरकत में रहते हैं। एक कम्प्यूटर एल्गोरिथम की मदद से दिमाग में बने इन न्यूरल पैटर्न को समझा जा सकता है। रिसर्च के मुताबिक जब भी हम कोई वस्तु या कोई दृश्य देखते हैं, तब दिमाग में एक खास तरह का पैर्टन बनता है। उदाहरण के तौर पर हम जितनी बार सपने में घर देखेंगे, दिमाग ठीक उसी तरह का न्यूरल पैर्टन बनेगा। इस पैर्टन से ये समझा जा सकता है कि व्यक्ति सपने में क्या देख रहा है। वहीं साइंटिस्ट्स द्वारा बनाई गई `ड्रीम रीडर' मशीन इस एल्गोरिथम की मदद से ठीक वैसे ही दृश्य बनाकर रिकॉर्ड कर सकती है। हालांकि, इसकी सटीकता के लिए लगातार रिसर्च जारी है।
क्योटो, जापान की एटीआर कंप्यूटेशनल न्यूरोसाइंस लैबोरेटरीज में हुयी शोधों ने ऐसे यंत्र को बनाने में सफलता प्राप्त की है जो हमारे सपनों को रिकॉर्ड करके हमें बाद में अपनी इच्छानुसार दिखा सकता है। प्रोफेसर यूकीयासु कामिटानी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेन्स (श्Rघ्) का उपयोग करते हुए सपने देखते समय मस्तिष्क में हो रही न्यूरल सक्रियता को विस्तार से रिकॉर्ड किया। न्यूरल सक्रियता की इमेजिंग को कृत्रिम बुद्धि की मदद से ऑडियो विजुअल रूप में बदल दिया गया। इस प्रकार हम मस्तिष्क में हो रही स्वप्न की घटना को देख और सुन सके। हम स्वप्न के दृश्यों और उन आवाजों को कंप्यूटर के पर्दे पर देख और सुन सके।
इस कार्य के लिए बनाए गए यंत्र द्वारा मस्तिष्क के न्यूरल नेटवर्क और उसकी क्रियाविधि के ज्ञान को उपयोग में लाते हुए स्वप्नदृष्टा के व्यक्तिगत अनुभव (सब्जेक्टिव एक्सपीरियंस) को अन्य लोगों द्वारा देखने (ऑब्जेक्टिव रिप्रेजेंटेशन) के योग्य बनाया गया। इस तकनीक की बहुत सी संभावनाएं हैं। यह हमारे मस्तिष्क की क्रियाविधि को समझने में बहुत सहायक है। यह चेतना की प्रकृति को समझने में भी सहायक है, और यह न्यूरोसाइंटिस्ट्स, मनोवैज्ञानिकों को और शोधार्थियों के लिए सपनों के महत्व और क्रियाविधि को समझाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
कल्पना कीजिए कि अगर आपके सपनों को रिकॉर्ड करना एक वास्तविकता बन गया। यह कितना रोमांचकारी होगा? यह आपके अवचेतन की एक फिल्म देखने जैसा महसूस होगा, जहां हर सपने को पकड़ लिया जाता है और फिर से चलाया जाता है। देखते हैं कब तक जापानी वैज्ञानिकों के सपनों को रिकॉर्ड करने और उन्हें देखने के लिए वापस खेलने में सक्षम उपकरण बाज़ार में उपलब्ध हो जाते हैं और तब हम भी अपने सपनों की फ़िल्मकारी करेंगे और सब को दिखायेंगे कि यह रहा आज का मेरा सपना।
डॉ. रवीन्द्र दीक्षित
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