दुश्मन ने आज हमें फिर है ललकारा
दुश्मन ने आज हमें फिर पहलगांव से है ललकारा घूमने गए निर्दोष लोगों को बहुत बेदर्दी से है मारा अनजान थे सभी से किसी से न थी दुश्मनी उनकी उन निर्दोष लोगों ने तो किसी का नहीं था कुछ बिगाड़ा

दुश्मन ने आज हमें फिर पहलगांव से है ललकारा
घूमने गए निर्दोष लोगों को बहुत बेदर्दी से है मारा
अनजान थे सभी से किसी से न थी दुश्मनी उनकी
उन निर्दोष लोगों ने तो किसी का नहीं था कुछ बिगाड़ा
भाग दौड़ की ज़िंदगी से कुछ हसीन पल चुराकर
जन्नत की सैर करने जा रहे गए थे घर में यह बताकर
किसे मालूम था जन्नत बन जाएगी कब्रगाह उनकी
चले गए रोता बिलखता छोड़कर सबको गम में डुबोकर
सात जन्मों का साथ निभाएंगे चले थे यह वायदा करके
जा रहे थे कहीं और किस्मत ले गई कश्मीर छल करके
सात जन्मों का साथ, सात दिन में ही छोड़ कर चल दिये
अब तो जीना पड़ेगा तेरे बगैर जीवन भर यूँ ही मर मर के
रहम की भीख मांगना भी किसी काम न आई
मजहब का नाम पूछ कर सीधी गोली चलाई
देख रहा ऊपर बैठ कर तुम्हारे सब अनैतिक काम
सुहागन की लाल लाल चूड़ियां तुम्हें नज़र क्यों नहीं आई
लगा दो लाशों के ढेर आज मांग रहा है हिंदुस्तान
मिटा दो इस धरा से ऐसे जालिमों के नामों निशान
क्यों पैदा किया था मैंने ऐसा जालिम बेगैरत इंसान
सोच रहा होगा आज कहीं बैठ कर भगवान
रवींद्र कुमार शर्मा
बिलासपुर, हि प्र
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