लहू है कि तब भी गाता है पाश की पुण्य तिथि पर विशेष आलेख-
पाश विशाल हिन्दी समाज में गैर हिन्दी भाषाओं के सर्वाधिक सर्वप्रिय कवि हैं।' हिन्दी के प्रख्यात आलोचक डॉक्टर नामवर सिंह और मैनेजर पांडेय ने पाश की कविता पर विस्तार से लिखा है। नामवर जी ने उनकी तुलना लोर्का से की है और उन्हें `शापित कवि' करार दिया है।

अवतार सिंह संधु साहित्य जगत में `पाश' उपनाम से विख्यात हैं। प्रख्यात साहित्यकार अनिल कुमार त्रिपाठी लिखते हैं -
`पंजाब के जालंधर जिले के तलवंडी सलेम गाँव में ९ सितंबर १९५० को जन्मे अवतार सिंह `पाश' नब्बे के दशक तक आते-आते पंजाबी कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर बन चुके थे। १५ वर्ष की आयु से काव्य यात्रा शुरू करने वाले पाश के जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद उनकी कविताओं ने पंजाबी साहित्य के साथ ही हिन्दी साहित्य प्रेमियों में भी अपना खास मुकाम बनाया। बेबाक शैली और निर्भीक व्यक्तित्व के मालिक पाश की कविताएं कुछ लोगों को रास नहीं आई और भगत सिंह की शहादत के ठीक ५७ वर्ष बाद २३ मार्च १९८८ को उनकी हत्या हो गई। आज अवतार सिंह `पाश' जीवित भले न हों पर उनकी रचनाएं पंजाबी साहित्य की अमूल्य धरोहर बन चुकी है।' सन् १९८८ तक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके थे तथा इनका अंतिम काव्य संग्रह इनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ था। उन्होंने हाल, सियाड़, हेम-ज्योति और एंटी ४७ हस्तलिखित पत्रिकाओं में संपादकीय टिप्पणियाँ करने के साथ-साथ राजनीतिक- सामाजिक लेख भी लिखे हैं। इन दोनों पत्रिकाओं में खालिस्तानी विचारधारा और तत्कालीन परिस्थितियों पर पैनी लेखनी चलाने के कारण ही ३७ वर्ष की आयु में आतंकवादियों के निशाना बन गए।
पंजाब के वरिष्ठ साहित्यकार और स्वतंत्र पत्रकार अमरीक ने लिखा है-
`पाश विशाल हिन्दी समाज में गैर हिन्दी भाषाओं के सर्वाधिक सर्वप्रिय कवि हैं।' हिन्दी के प्रख्यात आलोचक डॉक्टर नामवर सिंह और मैनेजर पांडेय ने पाश की कविता पर विस्तार से लिखा है। नामवर जी ने उनकी तुलना लोर्का से की है और उन्हें `शापित कवि' करार दिया है। हिन्दी के इस दिग्गज आलोचक का मानना था कि जब भी भारतीय जुझारू और प्रतिरोधी कविता की बात होगी तो पाश को सबसे आगे रखना अनिवार्य होगा। डॉक्टर मैनेजर पांडेय ने पाश को भारत के जनवादी तथा क्रांतिकारी कवियों में पहली कतार का सबसे बड़ा और अहम कवि मानते थे। हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार और बेहद निर्मम आलोचक को पाश खासे पसंद थे।विष्णु खरे के शब्दों में-`सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना-- ' लिखने वाला कवि किसे प्रिय नहीं होगा? दुनिया के किसी कवि के पास ऐसी कविता नहीं है।'
हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित साहित्यकार रत्नेश मिश्र लिखते
हैं- `पाश की कविताओं में जूझते रहने की जिजीविषा उन्हें समय को चुनौती देने वाली कलम का एक कद्दावर किरदार बनाती है। उनकी प्रखर कविताओं से पता चलता है कि वे सपनों और उम्मीदों के किनारे ही पले और बढ़े हैं। यह आम आदमी की उम्मीद ही तो है, जिसे हमेशा पाश जवां बने रहने की ताकीद करते हैं।'
पाश अपनी एक कविता में लिखते हैं-
`मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक्त इसी का नाम है
कि घटनाएं कुचलती हुई चली जाएँ
मस्त हाथी की तरह
एक समूचे मनुष्य की चेतना को।'
कवि पाश का जीवन एवं काव्य भगत सिंह के साथ-साथ कार्लमार्क्स के वर्ग संघर्ष, लेनिन, त्रोत्सकी, स्टालिन, जर्मन कवि ब्रेख्त तथा स्पेनिश कवि पाब्लो नेरुदा आदि से प्रभावित रहा है। कवि पाश की अधिकांश कविताएँ सत्यता और क्रांति की कविताएँ हैं। ये कविताएं शोषक वर्गों की पराजय तथा शोषितों की विजय निश्चित करने हेतु क्रांति का आह्वान करती हैं। वे लिखते हैं-
`हम लड़ेंगे साथी
उदास मौसम से
हम लड़ेंगे साथी
गुलाम इच्छाओं से
हम चुनेंगे साथी
जिंदगी के सपने।'
देश की मेहनतकश जनता के प्रति सहानुभूति कवि पाश के काव्य का मुख्य ध्येय रहा है। वे लिखते हैं-
`तेल बगैर जलती फसलें,
बैंक की फाइलों के जाल में कड़कड़ाते गाँव
और शांति के लिए फैली बाहें
हमारे युग का सबसे कमीना चुटकुला है।'
पाश आन्दोलन के कवि थे। एक क्रांतिकारी कवि के खतरे उठाने वाले पाश ने अपनी कलात्मक चेतना के लिए जरूरी बुनियादी आत्मसंघर्ष भी किया जो उनकी कविताओं का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है। पाशकी गिनती उन थोड़े कवियों में होती है जो आपके भीतर के उन प्रश्नों को आपके सामने उठाकर रख देती है जिनसे आप बचते हैं। जिनके उत्तर आपको भी बेचैन करते हैं। इसका एक उदाहरण उनकी एक प्रसिद्ध कविता की इन पंक्तियों में देखिए-
`युद्ध हमारे बच्चों के लिए गेंद बनकर आयेगा
क्रांति कोई दावत नहीं
नुमाइश नहीं
मैदान में बहता दरिया नहीं
वर्गों का, रूचियों का दरिन्दाना भिड़ना है
मरना है, मारना है
और मौत को खत्म करना है।'
पाश ने अपनी छोटी-सी जिन्दगी में क्रान्तिकारी कविताओं से न केवल पंजाब में बल्कि पूरे भारत में क्रान्ति की अलख जगाई। उनकी सबसे अधिक चर्चित कविता `सबसे खतरनाक' के कुछ अंश-
`मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी - लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
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सबसे खतरनाक होता है, मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का, सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर, और काम से लौटकर घर आना
सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना
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सबसे खतरनाक वह चाँद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वे वीरान हुए आँगनों में चढ़ता है
पर आपकी आँखों को मिर्चों की तरह नहीं गढ़ता है।
सबसे खतरनाक वह दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए।'
वरिष्ठ साहित्यकार अनिल कुमार
त्रिपाठी पुनः लिखते हैं कि
`इस कवि का नश्वर शरीर छीन लिया गया, इस कवि की लेखनी रोक दी गई, लेकिन यह कवि अपने लाजवाब हर्फों की वजह से लाखों, करोड़ों के दिमाग को झकझोर चुका था। यह कवि यह बता चुका था कि बंदूकें शब्दों के आगे कितनी बौनी है, यह कवि बता चुका था कि आतंक के धुएँ शब्दों की चमक को नहीं गायब कर सकते। पाश की लोकप्रियता अपने तेवर और श्रम से मिली। पंजाब में अमन-चैन देखना उसकी अदम्य लालसा थी। जहाँ उसे संगरूर और बरनाला जैसी जगहों से बेपनाह मुहब्बत थी वहीं पंजाब के खेतों में फैली गेहूँ की बालियाँ और कुएं उसे अपनी ओर आकर्षित करते थे। युद्ध और शांति से अच्छी तरह से परिचित पाश जीवन की सुंदरता से भी परिचित था। जीवन की अर्थवत्ता और जीवन के प्रति उनका अनुराग भी उसकी कविताओं से झलकता है।'
पंजाब के हालात से वे क्षुब्ध तो थे पर जीवन जीने की अदम्य लालसा अपने में संजोए हुए उसे पंजाब के लोगों में भी देखना चाहता थे, तभी तो वे अग्रणी भूमिका निभाने वाले की तरह संवाद करते हुए `युग पलट' में कह पड़ते हैं-
`युग को पलटने वाले लोग
बुखार से नहीं मरते
मेरा खून और पसीना मिट्टी में मिल गया है
मैं मिट्टी में दब जाने पर भी उग आउँगा। '
छोटी-मोटी समस्याएँ पंजाब को डिगा नहीं सकती और पंजाब का नव निर्माण होगा। पाश का यह दृढ़ विश्वास कालांतर में फलीभूत हुआ। पाश को अपने लोगों की श्रम-शक्ति पर अटूट विश्वास था। वे निराश होने वाले लोगों में से नहीं थे। अपनी एक कविता में वे लिखते हैं,
`माँ तुम गम न करो, हम एक बार फिर उन्हीं दिनों की ओर लौटेंगे, जहाँ शहर का रास्ता, एक बहुत बड़े जंगल से होकर जाता है।' पंजाब आतंक के बीहड़ जंगलों से गुजर कर एक आधुनिक राज्य की तरफ विकासोन्मुख है, यह पंजाब के नौजवानों और वहाँ की जनता पर अटूट विश्वास से ही संभव हुआ है। वे अपने समय का भीषण चित्र तो खींचते हैं पर भविष्य के प्रति आशान्वित भी हैं। वे लिखते हैं-
`मसलों की बात दोस्तों कुछ ऐसी होती है, कि कविता बिल्कुल नाकाफी होती है, और आप बड़ी दूर निकल जाते हैं, तीखी चीजों की तलाश में, मसलों की बात कुछ ऐसी होती है कि, आपका सब्र थप्पड़ मार देता है/ आपके कायर मुँह पर और आप उस जगह से शुरू करते हैं/ जहाँ कविता खत्म होती है' कविता कहाँ से शुरू होती है, कविता कहाँ पर खत्म होती हैयह तो विशद् शास्त्रीय विवेचन का विषय है, पर पाश जैसे जागरूक कवि मसलों की मार से पीड़ित होकर सब्र खो देते हैं और वे सब कुछ कर बैठते हैं जो व्यवस्था से जार-जार पीड़ित साधारण आदमी नहीं कह पाता है और उसका इस दुनिया में दम घुट जाता है। लेकिन समाज में पाश जैसे कवि/व्यक्ति कहाँ दबने-झुकने के लिए बने हैं? गोलियाँ उसका सीना चाक तो कर सकती है पर शब्द नहीं। क्योंकि उसके-
`लहू को आदत है कि वह मौसम नहीं देखता, महफ़िल नहीं देखता, जिन्दगी के जश्न शुरू कर देता है, सूली के गीत छेड़ लेता है शब्द हैं कि पत्थरों पर बह-बह कर घिस जाते हैं, लहू है कि तब भी गाता है।'
जीवन के गीत गाने वाले लोग निराशा में डूबकर अकर्मण्य नहीं होते, वे अपनी तरह से चीजों को सँवारने में लगे रहते हैं। जेठ की गर्मी से झुलसा प्राणी जगत सावन की फुहारों से शीतल हो सकता है, आतंकवाद और साम्प्रदायिकता से झुलसे शहर भाईचारे और मानवता की फसल से पुनर्जीवन पा जाते हैं, इसलिए वे चुनौती देने के स्वर में कहते हैं कि आदमी मौत के भी गीत गा सकता है। घोर झंझावात के क्षणों के क्षणों में भी पुनः उठकर खड़े होना और जीवन को भरपूर जीने की जो अदम्य लालसा पाश में है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। उसे बात होकर जीना गंवारा नहीं है-
`लौटा दो मेरे पंख यह तो मौत जैसी बात है
बुत होकर रह जाना और चौकों में गड़े जाना
मैं धुर से सिरजनहार हूँ
मैं जब भी जन्मता हूँ
जीने की सौगंध लेकर जन्मता हूँ।'
पाश विखंडनकारियों को राष्ट्र की
अदम्य शक्ति से परिचित कराते हैं-
`धूल में मिला दो लुधियाना का जिला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी।
मैं घास हूँ, अपना काम करूँगा
मैं आपके हर किए धरे पर उग आउँगा।'
कवि पाश की प्रमुख रचनाएं जिनमें कविता संग्रह और कविताएं शामिल हैं। वे हैं- लौह कथा, उड्ड्दे बाजाँ मगर, साडे, समियाँ विच, लड़ेंगे साथी, खिल्लरे होए, सबसे खतरनाक, सपने, मैं अब विदा लेता हूँ, हमारे समयों मे और अपनी असुरक्षा से। मिट्टी की महक बिखेरने वाले श्रम की गाथा को महान गाथा बताने वाले पाश अपने समानधर्माओं से एक अनुरोध भी करते चलते हैं-
`मेरे पास कोई चेहरा
संबोधन नहीं कोई धरती का पागल इश्क शायद मेरा है
और इसलिए जान पड़ता है
मैं हर चीज पर से हवा की तरह सरसरा कर गुजर जाउँगा
सज्जनों
मेरे गुजर जाने के बाद भी
मेरे सरोकारों की बाजू पकड़े रहना।'
अरुण कुमार यादव
मुंगेर, बिहार
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