15 नवम्बर 1875 को जन्मा,
क्रांतिकारी उलिहातू गांव में।
नाम पड़ा इनका बिरसा मुंडा,
पला करमी मुंडा के छांव में।।
इनका पिता सुगना पुर्तीमुंडा,
वे खेतिहर गरीब किसान था।
महाजनों को टैक्स देता देख,
वह बड़ा हैरान-परेशान था।।
उलगुलान का धरती आबा,
उनके कांधे तीर कमान था।
वे डरा नहीं कभी अंग्रेजों से,
निडर और स्वाभिमान था।।
जल, जंगल, जमीन ख़ातिर,
हाथों तीर धनुष संभाला था।
उलगुलान बसा था रग-रग में,
वह जलता हुआ ज्वाला था।।
सन् 1894 के बिरसा विद्रोह में,
स्वतंत्रता का बिगुल बजा दिया।
वे अपनी वीरता से छोटे उम्र में,
अंग्रेजों का छक्का छुड़ा दिया।।
आदिवासियों का महापुरुष थे,
वे भगवान बिरसा कहलाता है।
इसकी वीर गाथा सुनने मात्र से,
रग-रग में साहस भर जाता है।।
हक न्याय के विरुद्ध ज़ुल्म जब,
चारों तरफ बहुत बढ़ जाता है।
बिरसा जैसा महापुरुष तब तब,
क्रांति से ज़ुल्म मिटाने आता है।।
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राजेश कु. वर्मा 'मृदुल'
शहरपुरा गिरिडीह (झारखण्ड)