एक अंग्रेज कैप्टन की कलम से
आज अनेकों दिनों बाद जूली मुझसे बोली है। जूली जो मेरी धर्म पत्नी है, कई दिनों से मुझसे नाराज थी। मुझसे बात भी नहीं कर रही थी। मैं उसकी क्रोध भरी निगाहों को देख भी नहीं पा रहा था।" डार्लिंग। अब सोचना बंद भी करो। कब तक यों दुखी रहोगे। हमें जीना होगा। पुरानी बातों को भूलना होगा। बस अब एक काम करो। सेना से त्यागपत्र दे दो। वापस अपने देश चलो। देर या सबेर अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही होगा। अब अपने पापों का पश्चाताप करने का समय है। यीशू हमें माफ करें। दुनिया को प्रेम देने के बजाय हमने खूनी खेल खेला। आतंक फैलाया। बस समझ में आ गया। तो बंद करो। यीशू ने यही तो कहा था। पश्चाताप से बड़े से बड़ा पाप धुल जाता है। "
जैसे तपती धूप में खड़े को वारिश की बूंदे तृप्त कर देती हैं। मैं भी उसी तरह खुश हो गया। जूली ने मेरी तरफ अपनी बांहें फैला दीं। मैं उसके प्रेम पाशु में सिमट गया। काफी समय से मन में दबा रखी आत्मग्लानि आंसुओं के रूप में बहने लगी। जूली के प्रेम की छाया में अब मुझे संतोष हुआ। मुझमें और जूली में कुछ भी समानता न थी। पर न जाने कैसे मुझे उससे प्रेम हो गया। जूली यीशू की उपासक और मैं तलवार का उपासक। जूली प्रेम का गीत सुनाती और मैं तबाही मचाता। फिर भी हम मिल गये।पर फिर हममें मतभेद होते गये। होने ही थे। मैं हिंसा का पुजारी और वह शांति की उपासिका।
एक अरसा बीत गया। मेने आज उसके मुख से मेरे लिये डार्लिंग शव्द सुना है। अन्यथा आवश्यकता होने पर कैप्टन कहकर बुला देती थी। विचार न मिलने पर हम अलग हो जाते हैं। पर मैं और जूली कभी अलग नहीं हुए। मुझे लगता था कि एक दिन मैं जूली को समझा लूंगा कि संसार शक्ति की पूजा करता है। लगता है कि जूली को भी आत्मविश्वास था कि वह अपनी धारणा मुझे समझा देगी।
मैं कैप्टन मेरोज टैलर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना का सेनाध्यक्ष भारत आया। तो जूली भी मेरे साथ आ गयी। एक दूसरे को अपने रास्ते पर लाने की कोशिशें चलती रहीं। जूली यीशू की कहानियाॅ सुनाती । तो मैं भी युद्ध की भीषण कहानियां। फिर दोनों समझ गये कि शायद दोनों एक तरह से नहीं सोच सकते।
हैदराबाद के निजाम से हमारी दोस्ती है। पूरे देश में जंग के से हालात हैं। अनेकों स्थानो पर अंग्रेजी सेना व भारतीय राजाओं मे झड़प हो रही है। पर मैं निश्चिंत हूं। मेरे इलाके में शांति है। हैदराबाद के निजाम हमारा साथ देते हैं।
पर एक दिन... ". यह संभव नहीं है। हैदराबाद के आसपास कोई हमारा विरोधी नहीं है।" संदेशवाहक को मेने फटकार दिया। फिर दुबारा से संदेश के मर्म को समझने लगा। यदि इसमें कुछ सत्यता है तो निश्चित ही यह चिंता की बात है। यदि हैदराबाद में भी हम अपनी पकड़ खो बैठे तो इससे ज्यादा शर्म की क्या बात होगी। तुरंत सालारजंग को मेने बुलबाया।
सालारजंग हैदराबाद के निजाम का दाहिना हाथ व हैदराबाद का सेनापति भी सकते में आ गया। वह कौन है जो हैदराबाद राज्य में अंग्रेजी सेना पर हमला कर सके। जासूसों की टुकड़ी सब तरफ भागती रही। इधर अंग्रेजी सेना ही नहीं बल्कि हैदराबाद की सेना भी उस अज्ञात विरोधी का शिकार बनने लगी। विरोधी अजीब गोरखा पद्यति से युद्ध में दक्ष थे। अचानक हमला कर देते। कम संख्या में होने पर भी अनेकों पर भारी पड़ते।
एक दिन सालारजंग की सूचना मिली। विरोधियों का अगुआ पकड़ा गया। मैं उसे देखने को लालायित था। उसे कड़ी से कड़ी सजा देने की मेरी मंशा थी। पर विरोधी को देखते ही अचानक मैं कमजोर पड़ गया। यह मुझे क्या होने लगा।
एक बारह या तेरह साल का हिंदुस्तानी लड़का जंजीरों से बंधा हुआ था।
" सालारजंग। लगता है कि तुम्हारी अक्ल घास चरने चली गयी है। यह एक बालक। यह वह तो नहीं है। बिल्कुल भी नहीं।"
"ऐसा क्यों कैप्टन। हाथ खोल दो। अभी बच्चे के हाथों की ताकत से परिचित कराता हू।" सालारजंग के बजाय उस लड़के ने उत्तर दिया। लड़के के तेबर कहीं भी लडके जैसे न थे।
हैदराबाद के पास ही जेरापुर बहुत छोटी सी जगह थी। वही की रियायत के राजा कुछ समय पूर्व ही स्वर्गवासी हुए थे। उन्हीं राजा का वीर पुत्र व जेरापुर रियायत का वर्तमान राजा वह लड़का था। पहली बार मैं कमजोर पडने लगा। पर सेनानायक को कमजोर नहीं होना चाहिये। लड़के को कारागार में डाल दिया। उससे सारी जानकारी लेनी थीं। पर अनेकों तरीकों के बाद भी लड़के ने कुछ भी नहीं बताया। लड़के पर पड़ रहे चाबुकों से उसका शरीर छलनी होने लगा। खून के फुब्बारे बहने लगे। और पशुता की मूर्ति मुझे यह सब देखने में कोई तकलीफ न थी। पर न जाने क्यों, मैं जूली को इस बहादुरी की कहानी न सुना पाया। मन में एक अपराध बोध सा था जिसे मैं अपने कुतर्कों से निरुत्तर कर रहा था। पर जानता था कि जूली के तर्कों के समक्ष मेरे सारे कुतर्क धराशायी हो जायेंगें। अपने कुतर्कों की हार मुझे प्रत्यक्ष दिख रही थी।
" कोई नयी कहानी नहीं है कैप्टन।" आज जूली ने बात शुरू कर दी।
" अरे आज तो कुछ नहीं।" मैं भी छिपाता रहा। " कितना छिपाओंगे कैप्टन। आज तो आपने सबसे बड़ी बहादुरी दिखायी है। एक बालक को युद्ध में तो हरा नहीं पाये। उसे धोखे से पकड़ा और उसपर अपनी अमानवीय बहादुरी दिखाकर आये हो ना कैप्टन। नहीं। मैं गलत सोचती थी। मुझे लगता था कि आपके अंदर दिल है। आप बदल सकते हों। गलत थी मैं। आप बदल नहीं सकते। बदलते तो मनुष्य हैं। आप मनुष्य कहाँ हों। आप हैवान हो। "
जूली ने आंखें मोड़ लीं। आज तक जूली के विचारों को खुद पर हावी नहीं होने दिया था। पर अब जूली के विचार हावी होने लगे। कभी जिन बातों की मैं खिल्ली उड़ाता था, वही मुझे परेशान करने लगीं। जूली ने मुझसे बात करना बंद कर दिया। पर हर रोज जूली सपनों में मुझसे यही बोलती कि अरे हैवान। तुझपर गलत विश्वास किया। तुम नहीं बदल सकते।
मैं भी हैवानियत के दाग को धोने निकल गया। लड़के को मेने रिहायत देनी शुरू की। पर सेनापति की भूमिका में कोई कमी न आने दी। लड़का भी मुझसे खुल गया। मुझसे अप्पा कहने लगा। स्थानीय भाषा में इसका अर्थ चाचा बताया जाता है।
` अच्छा लड़के। तेरा नाम क्या है। "
मैं पूछता। " अप्पा। क्या करोगे जानकर समझ लो वीर है। भारत माता का वीर सैनानी। भारत माता को आजाद करने की इच्छा रखने बाला छोटा सा सिपाही। "
लड़के की ज्यादातर बातें मेरी समझ से परे थी। उसे बहुत लोभ दिया। लालच दिया।
" लड़के। हम जानते हैं कि तुम्हें किसी ने बहकाया है। गद्दारों का पता बता दो। हम तुम्हें कुछ नहीं होने देंगें। हमारा विश्वास करो। "
पर लड़का उत्तर न देता।
". अप्पा। गीता पढी है कभी।"
" मेने तो बाइबिल भी नहीं पढी।"
मेरा संक्षिप्त उत्तर।
" पता था मुझको। " बालक हस देता।
" अच्छा अप्पा। बता देता हूं। कुछ जरूरी बातें। "
मुझे लगा कि काम बना। लड़का साथियों के राज बताने जा रहा है।
पर लड़का कुछ अलग बोल देता।
".अप्पा। शरीर मर जाता है। आत्मा नहीं। आत्मा अजर और अमर है। मेरी समझ में कुछ न आता। मुझपर दबाव था कि लड़के का उत्पीडन कर राज निकलबाऊं। पर मैं मना करता रहा। अब मुझपर जूली के विचार हावी होने लगे।वह दिन अलग ही था। जब मेरे सभी साथी उस लड़के के प्राणदंड की मांग कर रहे थे। ताकि भारतीयों को सबक मिल जाये कि बगाबत का क्या परिणाम होता है। और अकेला मैं अपने ही साथियों से उलझ रहा था। आखिर में उसे प्राणदंड से मेने बचा लिया। पर उसे जो दंड मिला, उसे सुनकर मेरे प्राण ही निकल गये। बेतहाशा उत्पीडन की दास्तान काला पानी की सजा लड़के को दी गयी।
" अप्पा। यह सब क्या है। मैं राजा हूं। यह कालापानी क्यों। मुझे तो मौत दो। जो एक शहीद का गहना है। मुझे तो मृत्यु दो जिसकी चाहत हर सेनानी को होती है। मुझे तो वह मृत्यु चाहिये जिसे पाकर एक देशभक्त अपने भाग्य पर इतराता है। मुझे तो वह मृत्यु चाहिये, जिसे देखकर दूसरे देशभक्तों का मन जोश से भर जाये। "
मैं हालात से मारा, उसकी मदद नहीं कर सकता था। पर उसने देखा। तुरंत मेरी पिस्तौल छीनकर खुद मृत्यु को वरण कर लिया। थोड़ी देर शांति रही। अचानक अंग्रेजी सेना के भारतीय सैनिक भी बगाबत पर आमादा थे। पर उन्होंने मुझे कुछ नहीं बोला। मेरी रक्षा शायद जूली की विचारधारा ने ही की।
बहुत देर हो गयी। जूली की भुजाओं में मैं रो रहा हूं। जूली के कपड़े भी मेरे आंसुओं से भीग चुके हैं। एक साहसी भारतीय लड़के की गाथा मन में लेकर अब हम वापस लंदन जा रहे हैं। अब पूरा जीवन खुशियां बांटने में लगाऊंगा। जूली के बताये रास्ते पर चलूंगा। और एक बात। सभी को उस बहादुर लड़के की कहानी जरूर सुनाऊंगा। यदि लोग उसे भुला देंगें तो फिर से दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत' जैसे किसी लेखक के विचारों में आकर कहानी बनाकर सुनाऊंगा।
ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित। कुछ बातों को कल्पना से जोड़ा है।
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'
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