मजदूर

दिनभर का हांफता हुआ मजदूर  इन्तजार करता है शाम का पैरों की बिवाई साफ करने के लिए  पीठ की जकड़न ठीक करने के लिए  सोचता है रोटी के साथ गुड़ ले लूंगा नमक की जगह

Jun 5, 2025 - 14:00
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मजदूर
laborer

दिनभर का हांफता हुआ मजदूर 
इन्तजार करता है शाम का
पैरों की बिवाई साफ करने के लिए 
पीठ की जकड़न ठीक करने के लिए 
सोचता है रोटी के साथ गुड़ ले लूंगा
नमक की जगह
सोचता है मजूरी के पैसे में कितना बचा लूं
ब्याहूत बेटी का जीवन संवर जाए 

सोचने की अवस्था में निरंतर सोचता है
दिन की ढलान तक
उम्र की ढलान तक
सोचते हुए शरीर के साथ मन को भी
पसीने से भर देता है

पसीने में सिर्फ दर्द इकट्ठा कर पाता है
शाम तक सर का पगड़ी खोलकर
बिखरे भाग्य बटोरने घर आता है

चाहता तो है शब्दों के कुछ टिकोले
परिवार में बांटकर हंस ले
चाहता तो है भाषा में थकान के बजाय 
उन्मुक्त सरसता हो जीवन का संचय लिए 

मजदूर मिट्टी में जन्म लेकर 
मिट्टी को ही तरसता
दुर्भाग्य के सिरहाने पसर जाता है

रात विरहन-सी शरीर से लिपटी रहती है
दुःख उसके बर्तन में खेलता रहता है

सुबह सोचता है बेवजह सोचता हूं
सोचने से शब्दों का भार देह पर गिरता है
देह पर तो मालिक का असर होता है

रमेश श्रीवास्तव

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