Maternity Leave: A Constitutional Right : मातृत्व अवकाश: संवैधानिक अधिकार

The Supreme Court ruled that maternity leave is a constitutional right and cannot be denied even for a third child. This landmark judgment upholds women's reproductive rights, dignity, and equality in the workplace.सर्वोच्च न्यायलय ने हाल ही में मातृत्व अवकाश के संबंध में एक नवीनतम निर्णय सुनाया है जिसके अनुसार न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रसूति के दौरान महिलाओं को मिलने वाला मातृत्व अवकाश केवल सामाजिक न्याय या किसी नीति का विषय ही विषय नहीं है अपितु यह उनका एक संवैधानिक अधिकार है जिसका लाभ वह तीसरे बच्चे के जन्म पर भी उठा सकती है।

Jul 7, 2025 - 14:19
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Maternity Leave: A Constitutional Right : मातृत्व अवकाश: संवैधानिक अधिकार
Maternity Leave: A Constitutional Right :

Maternity Leave: A Constitutional Right : वर्तमान दौर में कार्यबल में महिला भागीदारी के बढ़ते आँकड़ों से यह स्पष्ट है कि महिलाएँ अब केवल घर की चार दीवारी तक ही सीमित न होकर राष्ट्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। कार्यबल में सक्रिय भागीदारी के साथ साथ उन पर सृष्टि सृजन का महती प्राकृतिक उत्तरदायित्व भी है जिसके साथ संतुलन बिठाना किसी भी महिला के लिए करामात से कम नहीं। ऐसा वे अपनी इच्छाशक्ति के बल पर तो करती ही हैं किंतु इसमें समाज और कानून के सहयोग की भी अपनी एक अलग जगह है। मातृत्व अवकाश जैसे कानूनी प्रावधान महिलाओं को कामकाज के साथ-साथ प्रजनन संबंधी उनके अधिकारों का प्रयोग करने और गरिमापूर्ण जीवन जीने की दिशा में बहुत सहायक सिद्ध होते हैं। महिलाओं को सम्मानजनक जीवन प्रदान करने के इस महान यज्ञ में समाज, सरकार और न्यायपालिका समय समय पर आहुति देती रहती है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मातृत्व अवकाश के संबंध में दिया गया नवीनतम निर्णय इसी क्रम में देखा जा सकता है।

 
सर्वोच्च न्यायलय ने हाल ही में मातृत्व अवकाश के संबंध में एक नवीनतम निर्णय सुनाया है जिसके अनुसार न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रसूति के दौरान महिलाओं को मिलने वाला मातृत्व अवकाश केवल सामाजिक न्याय या किसी नीति का विषय ही विषय नहीं है अपितु यह उनका एक संवैधानिक अधिकार है जिसका लाभ वह तीसरे बच्चे के जन्म पर भी उठा सकती है। नियोक्ता ने शिक्षिका को राज्य सरकार की उस नीति के आधार पर मातृत्व अवकाश प्रदान करने से इनकार किया था जिसमें दो से अधिक बच्चों के जन्म पर मातृत्व अवकाश प्रदान करने की इजाजत नहीं दी जाती ताकि जनसंख्या नियंत्रण में मदद मिल सके। किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि यह मामला महिला की दूसरी शादी से जुड़ा है और तीसरे बच्चे का जन्म उसी से हुआ है। मामले में न्यायालय ने कहा कि हर महिला को प्रजनन से जुड़े निर्णय लेने का अधिकार है जिसमें राज्य का अनुचित हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित करना या उसकी शारीरिक व मानसिक स्थिति को अनदेखा करना उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाना है। मामले की सुनवाई के दैरान न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि किसी महिला के मातृत्व को किसी संख्या से नहीं बाँधा जा सकता और मातृत्व अवकाश का अधिकार महिला के जीवन बल्कि गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार साथ ही उसके प्रजनन के अधिकार के दायरे में भी आता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज करते समय सुनाया जिसमें तमिलनाडु के एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका को इस आधार पर मातृत्व अवकाश देने से मना कर दिया गया था कि पिछली शादी से उनके दो बच्चे हैं। मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पिछली शादी से दो बच्चे होने के बावजूद वह लाभ की हकदार है। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए न्यायलय ने कहा कि मातृत्व अवकाश मातृत्व लाभ का अनिवार्य हिस्सा है और यह महिला के प्रजनन अधिकारों के दायरे में भी आता है जिसमें निजता का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, समानता तथा भेदभाव न किये जाने का अधिकार भी शामिल है।


भारत में स्थिति

मातृत्व लाभ अधिनियम, १९६१ तथा मातृत्व संशोधन विधेयक, २०१७ भारत में मातृत्व अवकाश से संबंधित कानून हैं। मातृत्व लाभ अधिनियम, १९६१ महिलाओं को उनके मातृत्व के दौरान रोज़गार संबंधी लाभ प्रदान करने का प्रावधान करता है। यह महिला कर्मचारियों हेतु मातृत्व लाभ सुनिश्चित करता है, जिससे कार्य से अनुपस्थिति के दौरान नवजात बच्चे की देखभाल के लिए उन्हें वेतन का भुगतान किया जाता है। यह प्रावधान १० से अधिक कर्मचारियों को रोज़गार देने वाले किसी भी संस्थान पर लागू हेता है। इस अधिनियम में मातृत्व संशोधन विधेयक, २०१७ के माध्यम से संशोधन किया गया था। मातृत्व संशोधन अधिनियम, २०१७ मातृत्व की गरिमा की रक्षा करने वाला एक महत्वपूर्ण कानून है। 
उक्त कानून के अनुसार कामकाजी महिलाओं को प्रसूति अवकाश पूर्व के १२ सप्ताह से बढ़ाकर २६ सप्ताह (पहले २ बच्चों के जन्म पर) कर दिया गया। किंतु दो बच्चों के बाद यदि कोई बच्चा होता है तो उस स्थिति में यह अवकाश १२ सप्ताह का ही होगा। इतना ही नहीं बच्चे को गोद लेने वाली माताओं को भी १२ सप्ताह का अवकाश प्रदान करने का प्रावधान है। अधिनियम के प्रावधान सरकारी व निजी क्षेत्र (संगठित क्षेत्र) में कार्यरत महिलाओं पर समान रूप से लागू होते हैं। जिस संगठन में ५० से अधिक कर्मचारी कार्यरत हों वहाँ के नियोक्ता द्वारा महिला कर्मचारियों के बच्चों के लिए क्रेच की सुविधा उपलब्ध करवाए जाने का प्रावधान भी इस अधिनियम में है। इतना ही नहीं माँ को कार्य समय के दौरान क्रेच में ४ बार जाने की अनुमति भी होगी ताकि वह बच्चे की देखभाल कर सके व उसे दूध भी पिला सके।


शीर्ष अदालत ने इस मामले में कहा कि पूरी दुनिया में माँ बनने के अधिकारों को मान्यता दी गई है, जिसमें मातृत्व लाभ शामिल हैं तथा मातृत्व अवकाश मातृत्व लाभ का अभिन्न अंग है। निर्णय सुनाते समय अदालत ने संविधान के अनुच्छेद २१ के व्यापक दायरे पर बल दिया जो जीवन के अधिकार की गारंटी देता है। इस मामले में न्यायालय ने कहा की जीवन का अर्थ जीवन के पूर्ण और व्याप्क अर्थों से संबंधित है। संविधान द्वारा दिए गए जीवन जीने के अधिकार में स्वास्थ्य का अधिकार, निजता का अधिकार, गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी सम्मिलित है। न्यायालय द्वारा अनुच्छेद २१ की व्याख्या में पहले ही स्पष्ट किए जा चुके यह तीनों ही अधिकार मातृत्व अवकाश व लाभ से जुड़े मामलों के लिए महत्वपूर्ण व्याख्या प्रदान करते हैं और इसके अंतर्गत ही मातृत्व अवकाश के अधिकार को भी शामिल किया जाता है। इस मामले में न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद ४२ (जो कि राज्य के नीति निर्देशक त्तवों के अंतर्गत आता है) का भी उल्लेख किया। जो यह प्रावधान करता है कि कार्य की न्यायपूर्ण व मानवोचित दशाएँ उपलब्ध करवाई जाएँगी और साथ ही साथ मातृत्व लाभ का भी इसी अनुच्छेद में प्रावधान किया गया है। यद्यपि नीति निर्देशक तत्व होने के कारण यह बाध्यकारी तो नहीं है किंतु यह राज्य की नीतिगत बाध्यता के दायरे में तो आता ही है। इस प्रकार मातृत्व अवकाश महिलाओं का संवैधानिक अधिकार है और यह महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की आधारशिला है जिससे उन्हें किसी हालत में वंचित नहीं रखा जा सकता।मातृत्व लाभ संशोधन अधिनियम, २०१७ की स्पष्ट व्याख्या करते हुए न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यह कानून किसी भी परिस्थिति में दो जीवित बच्चों वाली महिलाओं को उनकी आगामी संतान के जन्म के दौरान मातृत्व अवकाश के उनके अधिकार से वंचित नहीं करता है बशर्ते इस कानून में यह प्रावधान अवश्य है कि दो जीवित बच्चों तक यह अवकाश २६ सप्ताह तक होगा और दो से अधिक बच्चों की स्थिति में यह अवधि १२ सप्ताह की होगी। अत: अधिनियम में अवधि कम जरूर की गई है किंतु अवकाश देने से मना नहीं किया गया है।


महिलाओं के लिए इसके निहितार्थ


विकसित भारत के अपने लक्ष्य को हासिल करने की दौड़ में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में, कार्यबल में महिलाओं की समान भागीदारी एक अनिवार्य शर्त है। वर्तमान स्थिति के अनुसार औपचारिक व अनौपचारिक क्षेत्र में क्रमश २.१ मिलियन व १.२ मिलियन महिलाओं की भागीदारी प्रतिबिम्बित होती है। इस निर्णय के बाद औपचारिक क्षेत्र की सभी महिलाएँ इस अधिकार का लाभ उठा सकेंगीं और अनौपचारिक क्षेत्र में भी अब कई महिलाओं को इस अधिकार का पात्र माना जाएगा और वे भी इसका लाभ उठा सकेंगी। इसके साथ ही नियोक्ता के लिए यह अनिवार्य होगा कि वे महिला कर्मचारियों को प्रसूति के संबंध में सुविधाएँ प्रदान करे। उक्त मामलों में किसी भी प्रकार की कोताही के मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग जैसा बड़ा व कारगर निगरानी तंत्र भी मौजूद है। 
इसके अतिरिक्त यौन उत्पीड़न अधिनियम, २०१३ के तहत भी यह स्पष्ट किया गया है कि मातृत्व अवकाश दिए जाने से मना करने को उत्पीड़न ही माना जाएगा, और इसकी जाँच के लिए एक आंतरिक समिति का गठन किया जाएगा और किसी भी प्रकार की समस्या होने पर नियोक्ता उत्तरदायी माना जाएगा। इसके अतिरिक्त समान पारिश्रमिक अधिनियम, १९७६ समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान करता है। मातृत्व अवकाश के संबंध में अवकाश की अवधि के दौरान समान नियोक्ता द्वारा समान वेतन प्रदान न किए जाने अर्थात् उसमें निरंतरता न रहने या कोई कटौती किए जाने की दशा में यह इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन माना जाएगा। गौरतलब है कि यह अधिनियम सभी प्रकार की महिला कर्मचारियों पर लागू होता है जिसमें स्थायी, अस्थायी, अनुबंध, आउटसोर्स या दैनिक वेतन पर नियुक्त सभी महिला कर्मचारी भी शामिल हैं। देशभर की कामकाजी महिलाओं के लिए यह एक राहत भरा फैसला है। न्यायालय ने अपने इस फैसले से स्पष्ट कर दिया कि मातृत्व अवकाश केवल सामाजिक न्याय एवम् सद्भावना का ही विषय नहीं है बल्कि महिलाओं का संवैधानिक अधिकार भी है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि मातृत्व अधिकार का उद्देश्य महिला कर्मचारियों को सामाजिक न्याय दिलाना है ताकि वे बच्चे को जन्म देने के बाद न केवल जीवित रह सके बल्कि अपनी ऊर्जा पुन: प्राप्त कर सकें, शिशु का पालन पोषण कर सकें और अपना कार्य कौशल बनाए रख सकें। महिलाएँ अब कार्यबल का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उन्हें सम्मान से कार्य करने का पूरा अधिकार है। इस फैसले को महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है जो आने वाले समय में लाखों कामकाजी महिलाओं को राहत देगा। अब तीसरे बच्चे के जन्म पर भी महिलाएँ मातृत्व अवकाश का लाभ ले सकेंगीं।

नेहा राठी

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