माँ का घर

This is the story of Karuna, who is haunted by the guilt of not fulfilling her late mother's last wish. As years pass, she struggles with memories, unresolved family conflicts, and the desire to bring her estranged siblings together. A heart-touching narrative of reconciliation and healing.

Jul 7, 2025 - 18:56
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माँ का घर
mothers-last-wish

mother's house : दीवार पर माँ की लगी तस्वीर को निहारती जा रही थी करुणा। उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि माँ अब इस दुनिया में नहीं है। एक हफ्ते बाद माँ का श्राद्ध है। देखते-देखते पाँच साल गुजर गए, लेकिन माँ की वह आखिरी ख्वाहिश, वह धीमी, थरथर काँपती आवाज़ में कहे गए कुछ शब्द, आज भी जब करुणा को याद आते हैं तो मन बेचैन हो उठता है। दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगता है, आँखों से अनायास आँसू निकल पड़ते हैं और जी करता है कि बस जी भर के रो ले- और सालों से मन में चल रहे तूफ़ान के बोझ से खुद को मुक्त कर दे।
पर कैसे?

हज़ारों सवाल उसके कोमल मन को बार-बार आघात पहुँचा रहे हैं। हाँ, वह खुद भी चाहती है कि सब कुछ पहले की तरह ठीक हो जाए। लेकिन सब कुछ इतना आसान भी तो नहीं है ना! क्या उसकी पीड़ा को उसके भाई-बहन समझ पाएँगे? क्यों इतने साल लग गए उसे यह बात कहने में? क्या उसका अभिमान उस पर हावी हो गया था? या फिर उसमें इतनी हिम्मत ही नहीं थी कि माँ की वह आखिरी इच्छा सबके सामने, अपने भाई-बहनों के सामने रख सके? फिर से ढेरों सवालों के घेरे में घिर गई करुणा। 
‘नहीं, अब और नहीं!' चाहे कुछ भी हो जाए, इस बार माँ के श्राद्ध में माँ की वह आखिरी ख्वाहिश वह ज़रूर पूरी करेगी। नहीं तो खुद को कभी मा़फ नहीं कर पाएगी करुणा।

हाँ, मैं करुणा- बिल्कुल अपने स्वर्गवासी पिता की तरह स्पष्टवादी हूँ। मुझे घुमा-फिराकर बात करनी नहीं आती। अपने विचार, अपनी भावनाएँ और अपनी राय हमेशा साफ़ और खुले दिल से रखती हूँ। लेकिन हाँ, मेरे अंदर प्यार, ममता और अपनापन भी बहुत है। किसी की तकलीफ़ नहीं देखी जाती मुझसे। शायद इसलिए ही माँ-पिताजी ने बड़े प्यार से मेरा नाम ‘करुणा' रखा था।

सात भाई-बहनों में मैं सबसे छोटी थी, इसलिए सबकी लाडली भी थी। हमारा एक छोटा सा घर था, बेहद साधारण जीवनशैली- फिर भी हम बहुत खुश थे। पिताजी ऊँचे और नेक विचारों वाले शिक्षक थे। बचपन से ही हम सब भाई-बहन अनुशासन के दायरे में बड़े हुए। मेरी माँ दुनिया की सबसे प्यारी माँ थीं। 
सुबह से शाम तक मैंने उन्हें सिर्फ़ काम करते हुए ही देखा था, फिर भी उनके चेहरे पर एक संतोष, एक मुस्कुराहट रहती थी- मानो घर, पिताजी और हम भाई-बहनों में ही उनकी पूरी दुनिया बसती थी। पिताजी हम सबको रोज़ पढ़ाते थे। रात का खाना भी हम सब एक साथ बैठकर खाते थे। ना हाथ में मोबाइल था और ना ही इंटरनेट की भागदौड़ वाली ज़िंदगी।

कितने खुश थे हम...
छोटा सा घर, छोटे-छोटे कमरे, दो-तीन जोड़े कपड़े, ज़मीन पर रज़ाई बिछाकर सोना- कितनी सुकून भरी नींद आती थी।
पिताजी के गुजर जाने के बाद माँ की ज़िम्मेदारियाँ और बढ़ गईं थीं, फिर भी वह चट्टान की तरह हमारे हर सुख-दुख में खड़ी रहीं। कभी-कभी सोचकर हैरान रह जाती हूँ- पता नहीं माँ इतनी हिम्मत कहाँ से जुटा पाती थीं। 
अचानक तेज़ बारिश और ज़ोर-ज़ोर की हवा चलने लगी। खिड़की के ज़ोर से बंद होने की आवाज़ से करुणा चौंक पड़ी।
उसकी भावना टूटी। वह अब भी माँ की तस्वीर के सामने खड़ी थी। धीरे से उसने खिड़की बंद की। सिर बहुत भारी लग रहा था। ना जाने आँसुओं के सैलाब ने उसके पूरे चेहरे को लाल कर दिया था।

करुणा ने अपना मुँह धोया और अपने लिए एक कप चाय बनाई और फिर से माँ की फोटो के सामने कुर्सी पर आकर बैठ गई।
माँ के चेहरे पर वही मुस्कान अब भी वैसी ही थी।
अपना आँसू पोंछकर मुस्कुराने की कोशिश की करुणा ने। उसे लगा जैसे माँ ने अपने आँचल से आकर आँसू पोंछे हों और धीरे से कह रही हों-
‘तू तो मेरी करुणा है। तेरे अंदर हर घाव भरने की मरहम है। बस और इंतज़ार मत करवा मुझे। इस बार मैं अपने सारे बच्चों को एक साथ गले मिलते हुए, फिर से एक होते हुए, मेरे कमरे में, मेरे बिस्तर पर बैठकर हँसते हुए बातें करते देखना चाहती हूँ। मेरा घर सूना है मेरे बच्चों के बिना। वह आँगन अब भी तुम सब भाई-बहनों की कदमों की आहट और हँसी-ठिठोली सुनने को तरस रहा है। जिस रोज़ तुम सब भाई-बहन सब कुछ भूलकर फिर से मेरे उस घर में एक हो जाओगे, उस दिन मैं मुक्त हो जाऊँगी- और मेरी श्राद्ध भी उस दिन परिपूर्ण होगी।'
क्या मेरी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं करेगी मेरी करुणा?'

‘माँ!'- मैं ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। मानो मेरे अंदर के तूफ़ान का बाँध टूट गया हो। लगा जैसे माँ अभी-अभी मुझसे यही कह रही हों।
करुणा को याद आया वो पल जब वो माँ से अंतिम बार मिली थी। माँ की आँखों में आँसू थे, हाथ काँप रहे थे, होंठ थरथरा रहे थे, लेकिन चेहरे पर उम्मीद की रोशनी भी थी- जैसे उनकी ये अधूरी इच्छा एक दिन ज़रूर पूरी होगी। बहुत भारी मन से उस दिन माँ से विदा लेकर मैं अपने घर लौट आई थी। मुझे याद है, माँ ने उस दिन रातभर मुझसे धीमी-धीमी आवाज़ में ढेरों बातें कीं।
मैं उनके पाँव दबा रही थी। माँ कह रही थीं-

‘मुझे ना एक रोशनी दिख रही है... बहुत तेज़... और एक सुरंग है। मैं जा रही हूँ... और सुरंग के उस पार तुम्हारे पिताजी, मेरी माँ, मेरी दादी, तुम्हारी बड़ी दीदी... सब खड़े हैं। उनके हाथों में फूल हैं... और वो सब मुझे लेने आए हैं। सब बहुत खुश हैं। कोई दुख, कोई पछतावा, कोई ग़म नहीं। अब मेरा समय भी आ गया है, मुझे भी जाना है। पर तुम रोना नहीं। मुझे पता है तुम सब भाई-बहन ज़्यादा दिन एक-दूसरे से नाराज़ नहीं रह सकते। एक दिन सब अपना अहंकार भूलकर फिर से एक हो जाओगे...'

‘पर माँ, सब एक-दूसरे से नाराज़ हैं। ठीक से बात भी नहीं कर रहे। मुझे मालूम भी नहीं मेरी गलती क्या है... मैं कैसे समझाऊँ माँ? पैसों का इतना घमंड क्यों है माँ?'
मुझे याद है माँ ने धीरे से मेरे हाथ पकड़ कर कहा-
‘करुणा, मुझे मालूम है पैसा मुझे नहीं बचा पाएगा। इतनी चिंता क्यों करती है? तेरा मन साफ है और तेरे दिल में किसी के लिए कोई बैर नहीं है। सब होगा... पर सही समय पर। मुझे यक़ीन है एक दिन मेरा घर फिर से चमक उठेगा- तुम सबकी मुस्कुराहट की रोशनी से...'
‘दीदी...'
मेरी भावना टूटी- चित्रा की आवाज़ से। 
चित्रा सालों से मेरे घर में काम करती है और सच कहूँ तो मेरे परिवार का एक अहम हिस्सा बन चुकी है।
‘क्या हुआ दीदी? सब ठीक है? क्या सोच रही हो? माँ की याद आ रही है ना?
इस बार माँ की बरसी में घर हो आओ दीदी। सब भाई-बहनों से भी मिल लेना। अच्छा लगेगा- और आपकी माँ की आत्मा को कितनी शांति मिलेगी जब आप सब एक साथ फिर से मिलेंगे... है ना दीदी?'
‘हाँ, ठीक कह रही हो चित्रा। इस बार ज़रूर जाऊँगी। माँ के जाने के बाद हम भाई-बहन अजनबी से बन गए। सालों से चल रहे मनभेद को मिटाने का समय अब शायद आ गया है। मैं टिकट बुक करती हूँ।'
मेरे चेहरे पर एक सुकून था। मेरा मन हल्का था।

मेरी आँखों में सब भाई-बहनों के लिए असीम प्रेम था- और दिल में हिम्मत भी। क्योंकि मेरी माँ का मुझ पर जो भरोसा था...
क्या पता, मेरी तरह मेरे भाई-बहनों को भी माँ का वो छोटा-सा घर, वो छोटा सा कमरा, वो छोटा सा आँगन और माँ की खुशबू फिर से खींच लाए उन्हें उस घर में- और हम सब भाई-बहन फिर से मिल जाएँ, गिले-शिकवे भूल जाएँ, एक-दूसरे को गले लगाएँ, जी भर कर रो लें...
माँ की आखिरी इच्छा भी पूरी हो जाएगी- और माँ की श्राद्ध में हम सबकी यह सबसे अनमोल श्रद्धांजलि होगी अपनी प्यारी माँ के लिए.  

श्रीमती तनीमा मिश्रा
पश्चिम बारिशा, कोलकाता 

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