विष्णु प्रभाकर: हिंदी साहित्य के महाकवि एवं जीवन परिचय | Vishnu Prabhakar: Renowned Hindi Writer and His Life Biography

विष्णु प्रभाकर, हिंदी के लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकार, जिन्होंने 'आवारा मसीहा' जैसी कालजयी रचनाएँ दीं। उनकी जीवनगाथा, स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, साहित्यिक यात्रा और पुरस्कारों का संपूर्ण परिचय।

Jul 5, 2025 - 18:52
Jul 5, 2025 - 18:54
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विष्णु प्रभाकर: हिंदी साहित्य के महाकवि एवं जीवन परिचय  | Vishnu Prabhakar: Renowned Hindi Writer and His Life Biography
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Vishnu Prabhakar: Renowned Hindi Writer and His Life Biography : हिंदी के लब्ध प्रतिष्ठित रचनाकारों में विष्णु प्रभाकर का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। विष्णु प्रभाकर का जन्म २१ जून, सन् १९१२ को मीरापुर, ज़िला मुज़़फ्फ़रनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इनको ‘विष्णु दयाल’ के नाम से भी जाना जाता है। इनके पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक विचारधारा वाले व्यक्ति थे। प्रभाकर जी की माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं, जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का घोर विरोध किया था। इनकी पत्नी सुशीला थी। वर्ष १९३८ में सुशीला के साथ विष्णु प्रभाकर का विवाह हुआ था। विष्णु प्रभाकर के दो बेटे अतुल प्रभाकर, अमित प्रभाकर और दो बेटियाँ अर्चना प्रभाकर एवं अनीता प्रभाकर हैं। बेटों ने अपने पिता की इच्छानुसार उनके शरीर को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली को दान करने का फैसला किया। विष्णु प्रभाकर की पत्नी सुशीला प्रभाकर का निधन १९८० में हो गया था। प्रभाकर सत्ताईस वर्ष की आयु तक अपने मामा के परिवार के साथ रहे। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई थी।मीरापुर के प्राथमिक विद्यालय में उनका नाम विष्णु दयाल लिख गया था।  


आर्य समाज के स्कूल में वर्ण पूछने पर उन्होंने वैश्य बताया, इसलिए अध्यापक ने उनका नाम विष्णुगुप्त रख दिया। जब वे सरकारी नौकरी में आए तो अफसरों ने उनका नाम बदलकर विष्णु धर्म दत्त रख दिया क्योंकि दफ्तर में कई गुप्ता थे इससे अफसरों को भ्रम होता था। आगे वे विष्णु उपनाम से लिखते रहे। एक बार एक संपादक ने उनसे पूछा कि, ‘आप इतना छोटा नाम क्यों लिखते हैं? क्या आपने कोई परीक्षा पास की है?’ विष्णु ने बताया कि उन्होंने हिंदी में ‘प्रभाकर’ परीक्षा पास की है। उसके बाद संपादक ने उनके नाम के साथ ‘प्रभाकर’ जोड़कर ‘विष्णु प्रभाकर’ बना दिया। उन्होंने सन् १९२९ में चंदूलाल एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल, हिसार से मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसी दौरान नौकरी करते हुए पंजाब विश्वविद्यालय से ‘भूषण’, ‘प्रज्ञा’, ‘विशारद’ और ‘प्रभाकर’ आदि की हिंदी-संस्कृत परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण कीं। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से ही बी.ए. की  उपाधि भी प्राप्त की थी।
प्रभाकर जी के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। इसीलिए उन्हें काफ़ी कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करना पड़ा था। घर की परेशानियों और ज़िम्मेदारियों ने उनको मज़बूत बना दिया था। किसी तरह उनको चतुर्थ श्रेणी की एक सरकारी नौकरी मिल गई। जिससे उन्हें मात्र १८ रुपये प्रतिमाह का वेतन प्राप्त होता था। सरकारी नौकरी करते हुए उन्होंने कहानी, उपन्यास ,नाटक ,यात्रा वृतांत, बाल साहित्य आदि का लेखन किया। विष्णु प्रभाकर ने किशोरावस्था से ही लिखना प्रारंभ कर दिया था। उनकी पहली कहानी ‘दिवाली की रात’ वर्ष १९३१ में लाहौर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ‘मिलाप’ में छपी थी। उस समय वे सिर्फ १९ वर्ष के थे। उनका यह साहित्यिक सफर छियत्तर वर्ष की आयु तक निरंतर चलता रहा। विष्णु प्रभाकर जी ने अपने घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों को बाखूबी निभाया। 


गुलामी के दौर में संपूर्ण भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन हो रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम में विष्णु प्रभाकर ने भी भाग लिया और अपनी रचनाओं के माध्यम से आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजनीतिक गतिविधियों से जुड़े रहने के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था। विष्णु प्रभाकर जी महात्मा गाँधी से काफी प्रभावित थे। गाँधी जी के जीवन आदर्शों से प्रेम के कारण प्रभाकर जी का रुझान कांग्रेस की तरफ़ हो गया। आज़ादी के दौर में उन्होंने अपनी लेखनी को संबल बनाया। आजादी के समय वे प्रेमचंद, यशपाल और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री भी रहे, किन्तु रचना के क्षेत्र में उनकी अपनी एक अलग पहचान बन चुकी थी। १९३१ में ‘हिन्दी मिलाप’ में पहली कहानी ‘दिवाली की रात’ छपने के साथ ही उनके लेखन का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह जीवनपर्यंत निरंतर चलता रहा। नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने से वे शरतचन्द्र की जीवनी ‘आवारा मसीहा’ लिखने के लिए प्रेरित हुए, जिसके लिए वे शरतचन्द्र को जानने के लिये लगभग सभी स्रोतों और जगहों तक गए। उन्होंने बांग्ला भाषा भी सीखी और जब यह जीवनी छपी, तो साहित्य में विष्णु जी की धूम मच गयी। विष्णु प्रभाकर की कालजयी रचना ‘आवारा मसीहा’ बांग्ला भाषा के सुप्रसिद्ध रचनाकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के जीवन पर आधारित जीवनी है। इस रचना के लिए उन्होंने अपने जीवन के १४ वर्ष खर्च किए थे। इस रचना के कारण ही वह अखिल भारतीय रचनाकार के रूप में विख्यात हुए। इस कृति के बारे में पूरे स्वयं कहते हैं- ‘चौदह वर्ष जीया था मैं उस ‘आवारा मसीहा’ के साथ जिसे मैंने कभी देखा नहीं था।’ विष्णु प्रभाकर हिंदी साहित्य के उन लेखकों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं जिन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी विधाओं में प्रचुर साहित्य लिखने के बावजूद ‘आवारा मसीहा’ शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय की जीवनी है जो साहित्य जगत में प्रभाकर जी को अलग पहचान दिलाती है। इसके बाद में ‘अर्द्धनारीश्वर’ पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ, लेकिन ‘आवारा मसीहा’ ने साहित्य में उनकी एक अलग ही पहचान बना दी।
विष्णु प्रभाकर जी ने अपना पहला नाटक ‘हत्या के बाद’ लिखा और हिसार में एक नाटक मंडली के साथ भी कार्यरत हो गये। इसके पश्चात् प्रभाकर जी ने लेखन को ही अपनी जीविका बना लिया। आज़ादी के बाद वे नई दिल्ली आ गये और सितम्बर १९५५ में आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक नियुक्त हो गये, जहाँ उन्होंने १९५७ तक अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं। इसके बाद वे तब सुर्खियों में आए, जब राष्ट्रपति भवन में दुर्व्यवहार के विरोधस्वरूप उन्होंने ‘पद्मभूषण’ की उपाधि वापस करने की घोषणा कर दी। विष्णु प्रभाकर जी आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबंधी मीडिया के विविध क्षेत्रों में पर्याप्त लोकप्रिय रहे। देश-विदेश की अनेक यात्राएँ करने वाले विष्णुजी जीवनपर्यंत साहित्य की साधना में लगे रहे। विष्णु प्रभाकर ने अपनी नौकरी के दौरान नाटक मंडली में काम किया। शासनादेश के कारण वे सपरिवार पंजाब छोड़कर दिल्ली में रहने लगे थे। दिल्ली आने के बाद दो वर्षों तक ‘अखिल भारतीय आयुर्वेद महामंडल’ में लेखाकार के रूप में भी कार्य किया। यहाँ से त्यागपत्र देने के बाद वे स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य करने लगे ।
आधुनिक हिंदी साहित्य जगत में विष्णु प्रभाकर अपनी कालजयी रचनाओं के लिए जाने जाते हैं। साहित्य जगत में विशेष योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, पाब्लो नेरुदा सम्मान, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय मानव पुरस्कार, राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार एवं अन्य कई सरकारी, गैर सरकारी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनकी कई रचनाएँ जिनमें से आवारा मसीहा, (जीवनी) फ़र्क (लघुकथा), अर्धनारीश्वर, स्वप्नमयी, तट के बंधन (उपन्यास) हत्या के बाद, डॉक्टर, सीमा रेखा(नाटक), प्रकाश और परछाइयां, संघर्ष के बाद, सांप और सीढ़ी (एकांकी) आदि को बी.ए., एम.ए. के पाठ्यक्रमों में कई वश्विविद्यालय में पढ़ाया जाता है। बहुत से शोधार्थियों ने विष्णु प्रभाकर के साहित्य पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। इसी के साथ यू.जी.सी./नेट में हिंदी विषय  से परीक्षा देने वाले छात्रों के लिए विष्णु प्रभाकर का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।

 
विष्णु प्रभाकर जी की रचनाओं में प्रारम्भ से ही स्वदेश-प्रेम, राष्ट्रीय चेतना और समाज-सुधार का स्वर प्रमुख रहा है। इसके कारण उन्हें ब्रिटिश सरकार का कोप-भजन भी बनना पड़ा। अतः उन्होंने सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया और स्वतन्त्र लेखन को अपनी जीविका का साधन बना लिया। विष्णु प्रभाकर जी ने एकांकी और रेडियो रूपक के अतिरिक्त कहानी, उपन्यास, रिपोर्ताज आदि विधाओं में भी पर्याप्त मात्रा में लिखा है। रंग एवं शिल्प की दृष्टि से विष्णु प्रभाकर जी के अधिकांश एकांकी रेडियो रूपक हैं। प्रेमचन्द की कहानियों की भाँति विष्णुजी के एकांकी भी प्रभावपूर्ण तथा जीवन के प्रति आस्था से भरपूर हैं। कथानक गतिशील हैं, एकरूप हैं, सपाट हैं तथा घटनापरक हैं। संवाद योजना सन्तुलित है। उनमें न अतिभावुकता है तथा न अतिबौद्धिकता की कटु नीरसता।
विष्णु प्रभाकर जी हृदय की समस्या और मूत्र मार्ग के संक्रमण से पीड़ित थे। ९६ वर्ष की आयु में ११अप्रैल २००९ को नई दिल्ली में संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हो गया।

प्रो. डॉ. दिनेशकुमार
कांदीवली, मुंबई

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