Feminine Sensitivity in Nagarjun's Poetry: A Modern Interpretation of Mythological Women : नागार्जुन के काव्यों मे व्यक्त नारी के पौराणिक संदर्भ एंव नारी संवेदना

In Nagarjun's poetry, women are not idealized but humanized — portrayed as resilient and emotional beings. His reinterpretation of mythological women reflects a progressive and empathetic feminist vision. बाबा नागार्जुन की कविताओं में नारी केवल एक पूज्या नहीं, बल्कि एक संघर्षशील और जीवंत पात्र के रूप में चित्रित है। उन्होंने पौराणिक स्त्री पात्रों को आधुनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हुए नारी-सशक्तिकरण की पक्षधरता दिखाई है।

Jul 7, 2025 - 14:09
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Feminine Sensitivity in Nagarjun's Poetry: A Modern Interpretation of Mythological Women : नागार्जुन के काव्यों मे व्यक्त नारी के  पौराणिक संदर्भ एंव नारी संवेदना
Nagarjun's Poetry

Feminine Sensitivity in Nagarjun's Poetry: A Modern Interpretation of Mythological Women : नागार्जुन एक प्रसिद्ध हिन्दी व मैथली भाषा के जनवादी कवि थे वे प्रसिद्ध उपन्यास कार एंव लेखक भी थे उनकी दो प्रसिद्ध रचनाएं ‘अकाल और उसके बाद में’ और ‘रति राम की चाची’ नागार्जुन जनवादी कवि थे उनकी रचनाओं में समाजिक विषमता को उजागर किया है समाज मे व्याप्त भष्टाचार अन्याय शोषण गरीबी अकाल जातिवाद को उजागर करते हैं। 
उनकी रचनाओं में व्यंग्य व मार्मिकता दोनों का बोध होता है। उनकी रचनाओं में ग्रामीण जीवन संस्कृति को विशेष रुप से चित्रित किया है। वे प्रगतिशील दृष्टिकोण के कवि भी थे उनकी रचना ‘पत्रहीन गाछ’ को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ है। उन्होंने अपने अनेकों काव्य संग्रह में पौराणिक प्रतीको को आधुनिक सन्दर्भ में प्रस्तुत किया है। प्राचीन भारतीय संस्कृत में पौराणिक इतिहास व अपने जीवन मूल्यों व सनातन परम्परागत धर्म पालन में अत्यधिक समृद्ध रहा है। जहां नारी सदैव पूज्यनीय रही है। कन्याओं का पूजन परन्मराओं में जीवंत उदाहरण है।  
विश्व की सभी सभ्यताओ में प्राचीनकाल से नारी, पुरुष की प्रेरणा स्रोत एवं उसके जीवन को सुखमय मधुमय बनाने वाली रही है।  
नारी `गंगा' और गीता ये तीनों भारतीय संस्कृति के मेरुदंड है। वास्तव में नारी परिवार और समाज की आधारशिला है। शरीर का सौंदर्य एवं ह्रदय की मधुरता व स्नेहपूर्ण व्यवहार को पुरुष पर न्योछावर करने वाली  माना जाता रहा, यही उसका धर्म है यही मान्यता भी रही है। पंरन्तु इसका श्याह पहलू यह भी है की वह युगों-युगों से पद दलित एवं तिरष्कृत उपेछित रही है। कभी श्रद्धावान तो कभी अबला बन कर वह अनेक कार्यों रुपों में  अवतरित होती रही है। जनवादी कवि नागार्जुन ने ना तो नारी के वैभव रूप की कल्पना की, ना ही नारी के रूप सौंदर्य के माधुर्य के स्वार्गिंक जादू माना है। 
उनका विश्वास नारी पूजा में भी नहीं था। ‘उनके लिए नारी केवल नारी है। जो पुरष की भांति स्थूल सृष्टि का एक अभिभाज्य अंग है। (१)  
नागार्जुन ने अपनी कविताओं में नारी के पौराणिक संदर्भ को आधुनिक संवेदनाओ में ढाला है, जिसमें उनका नारी के प्रति उदार वादी व प्रगतिशील दृष्टिकोण उजागर होता है। उनके उपन्यासों में के नारी पात्र अपने अधिकारों के प्रति सचेत है,परन्तु काव्यों में नारी को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए नहीं दिखाया है कविताओं में। पौराणिक संदर्भ को आधुनिक संवेदनाओं में ढाला है, जिसमें उनका ‘युगधारा’ काव्य संकलन है जिसमें शीर्षक ‘भिक्षुणी’ कविता में भिक्षुणी समाज में अवश्य आदर सम्मान प्राप्त करना चाहती हैं। एक आलम्बन की आकांक्षी हैं। क्यूंकि नरभक्षी  भेड़ियों के मध्य एक युवती कैसे सुरक्षित रहे, यह एक बड़ा प्रश्न है। क्योंकि  लोलुपता भरी दृष्टि क्या उसे जीने देगी? इन भावनाओं को उन्होंने इस  प्रकार व्यक्त किया है-

अभी तो तरुणी हूँ, चौंकते युवा जन 
भिक्षा पात्र लेकर, जब मैं निकलती। 
मेरा यह काषाय वस्त्र!
जाने किस किसको उन्मादित करता’।। (२)  
‘भिक्षुणी निः संकोच कहती है। भूख मातृत्व की मेरी  
मिटा देता सतीत्व का सुफल पाकर, अनायास धन्य होती मैं।‘(३)  
भिक्षुणी के उपर्युक्त शब्द `मेरा यह काषाय' समाज में नारी के प्रति पुरुष के दृष्टिकोण को उजागर किया है। ‘भिक्षुणी’ कविता में नारी कामुकता से ऊपर उठकर नारी सुलभ भावनओं की सहज मार्मिकता के साथ वात्सल्य ममता से लवरेज होती हैं। कवि नारी की प्राकृतिक जन्य मनः स्थित दर्शाते हुए जीवन की ग्रंथि सुलझाने की चेष्टा करता है। उनकी दृष्टि में नारी दुर्दशा का प्रमुख कारण आर्थिक परधीनता है। आर्थिक रूप से वह पुरुष पर आश्रित रही है। विवाह पूर्व पिता व  भाई पर फिर विवाह पश्चात पति और पुत्र पर अगर विधवा हो गई तो, पुत्र का पूर्ण अनुशासन। कवि ने इसे `प्यासी पथराई आखे’ शीर्षक कविता में इन पंक्तियो में व्यक्त किया है। रेणुका अपने पति और पुत्र दोनों के ही खराब आचरण की शिकार है।  

‘शक्की और सनकी पतिदेव, पितृ भक्त सहज क्रोधित पुत्र।
शहीद हुई बेचारी रेणुका सच सच बोल के क्या किया था उसने। (४) परशुराम की माँ तथा जन्मदग्नि की पत्नी रेणुका की यह पुराण कथा यह एक स्त्री की कथा नहीं बल्कि उन सभी स्त्रियों की कहानी है, जो पुरुष के अत्याचार से पीड़ित है। स्नान कर विलम्ब से लौटने का कारण सत्य बतलाने वाली नारी के शहीद होने पर जनकवि नागाबाबा हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं। `विवशता की इन सजीव प्रतिमाओं के पल्ले में केवल कर्तव्य ही आ पाते हैं। अधिकार नहीं। कठोर कर्तव्यों की वेदी पर स्वयं को अर्पित करने पर उसे अन्याय एवं अपमान के अतिरिक्त कुछ नहीं मिल पाता। रेणुका जैसी स्थिति कालिदास की शकुंतला की भी हैं। पुरुष को अपने प्रेम रस से सरोवर करने वाली अपने परिवार को समृद्ध करने वाली अपना सब कुछ अपने परिवार पर न्योछावर कर देने वाली नारी को उसकी छोटी-सी गलती के लिए क्या मिलता है। मात्र संत्रास पीड़ा। उदारता प्रेम सरलता की प्रतिमूर्ति शकुंतला की करुण गाथा से कवि की संवेदना कैसे अछूती रह सकती थी। जिसने चंद क्षणों के प्रेम प्रदर्शन पर अपना सर्वस्त्र न्योछावर कर दिया। शकुंतला के साथ हुए छल से आहत कवि का मन कह उठा। 
अंगूठी! सोने की अंगूठी!  
क्या हुआ लेकर , सोने की अंगूठी! प्रीति का प्रतीक , 
मूर्ख थी शकुंतला! शोहदे की अंगूठी पर किया था भरोसा। (५)  
इसी प्रकार पुराण कथा अनुसार गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या की कथा तुलसी काव्य में राम की महत्वा का प्रतिपादन करती है। किन्तु आधुनिक समय में नारी की विवशता एवं पुरुष के अन्याय की कथा है। सौंदर्य के वरदान से अभिशापित वह नारी पतिपरायण होने पर भी, पति शाप के निर्मम दंड को भुगतने को विवश होती है।
रूप लोलुप इंद्र द्वारा छली गयी अहिल्या एक निर्वासित जीवन जीने को विवश है। निर्दोष होते हुए भी कलंकित कहलाई। तथा क्रुद्ध पति के शाप से पाषाण जैसा जीवन जीने को बाध्य हुई। ‘नाहक ही /इतना अधिक रूप दिया विधाता ने।  
गौतम की शक्ल बनाकर, सच मुच् क्या इंद्र ही आया था?  
समान आकृति वाले/ दो पुरुषो की छाया में/ ‘पथरा’ गयी बेचारी!'(६) 
शापित अहिल्या के प्रति कवि ने अपनी समस्त दया करुणा सहानुभूति उड़ेल दी हैं। धरा का निर्माण करने वाली नारी प्राणेश्वरी एवं प्रियतमा होकर भी संसार सिंधु में निरलंबन रहती हैं। रेणुका, शकुंतला अहिल्या जैसी नारियों के प्रति ही नहीं बल्कि रावण की बहन सूपर्नखा के प्रति भी कवि का दृष्टिकोण उदार वादी हैं। ‘वह भी एक नारी है, उसमें भी नारी सुलभ भावनाएं हैं।‘(७) वह भाई की आज्ञा मान कर ही वह राम के पास गयी थी। श्री राम से उसे तिरस्कार मिलता है। जिससे सीता पर सूपर्नखा का क्रोधित होना स्वाभाविक ही था। क्योंकी उसने नदी के जल में अपना बिम्ब देख कर सीता के सौंदर्य से तुलना की थी। जिसके कारण उसमें क्रोध उत्पन्न हुआ था। अतः उसके प्रति ईर्ष्या सुलभ सहज प्रवृति थी। राम काव्य में घृणित पात्र के रूप में वर्णित ‘सूपर्नखा’ नागार्जुन के लिए एक सामान्य नारी है- 
`भाई ने लगाया था / दुश्मन के पीछे
रिझा नहीं पायी वनवासी राम को।
नाक कटवा के आ गयी वापस'(८)
 
कवि नारी जीवन की इस विंडम्बना को विस्मृत नहीं कर सका। `उनकी दृढ़ आस्था थी की लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नारियों में वर्तमान स्थितियों में पर्याप्त बदलाव लाने की आवश्यक्ता हैं। (९) आपेक्षित बदलाव नारी शिक्षा  नारी समानता नारी स्वतंत्रता, राजनीति में नारी की सक्रिय एवं रचनात्मक भूमिका तथा नारी को यह स्वतंत्र अधिकार मिलने पर ही यह घटित हो सकता हैं। ‘(१०) नारी मुक्ति के लिए तथा उसकी स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए कवि ने अथक प्रयास किया हैं। भगवान महावीर जैसे महा पुरुषों के द्वारा नारी को गौरवमयि स्थान प्रदान किया। महावीर आराध्य हैं। आराध्य ही अगर नारी को सम्मान देता है तो उसकी अवहेलना करने की सामर्थ किसमें हो सकती हैं।  कविता के माध्यम से कवि ने इसे इस प्रकार व्यक्त किया है। 
`दीन- हीन उपेक्षित पददलित /अश्रुमुख क्रयकीर्त दासी के हाथ, होगा यदि भिक्षा लाभ।  
करुणा आहार तभी! अन्यथा खाली लौट आऊंगा /'(११)  
भगवान राम ने अहिल्या देवी को माता जैसे शब्दों से सम्बोधित करके आदर एवं सम्मान प्रदान किया। तथा उन्होंने भावशून्य हो पाषाण-सी बनी अहिल्या का उद्धार किया- 
‘रोवे मत देवी! अब न आपको होगा कोई कष्ट’(१२)   
इतना ही नहीं शाप से मुक्त करके उन्हें पूर्णतः पवित्र मानते हुए श्री राम कहते हैं-
`कैसे छुए किसी को कोई शाप किया नहीं जब सपने में भी पाप? था न कलुष-लवलेश, शुद्ध थी आप!! (१३) 
शाप से त्रस्त हुई यह अहिल्या का ही उद्धार है। अपितु उन सभी नारियों के उद्धार का मार्ग है। जो पुरुषों के अत्या चारों से पीड़ित हैं। पावन होते हुए भी शंका की दृष्टि से देखी जाती हैं। और दुखियारी भावना शून्य हो पाषाण-सी बन कर सब कष्टों को झेलती हैं कवि ने राम के श्री मुख से यह शब्द कहलवाना `रोवे मत देवी' कवि का नारी को दिया गया सम्मान है। भीतर ही भीतर नारी की पीड़ा उन्हें उद्धेलित कर रही थी। अतः कवि ने नारी के आंसू पोछने एवं दासता की बेड़ियाँ काटकर पुरुष के समान, समानता का अधिकार दिलाने का संकल्प ले लिया। नागार्जुन का विश्वास था की समाज एवं राष्ट के समुचित विकास में नारी ही अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। जनवादी कवि बाबा नागार्जुन ने अपनी कविताओं में पौराणिक नारी प्रतीकों को आधुनिक सन्दर्भ में स्थापित कर नारी संवेदनाओं को बहुत ही मार्मिक अभिवक्ति दी है। और उन नारियों को कविता के माध्यम से उनके प्रति अपनी प्रगतिशील विचार धरा को समाज में सभी नारियों के प्रति सम्मान प्रेशित किया है। जो की बहुत ही प्रेरणा दायी है। उनका उद्देश्य नारी को सशक्त सबल बनाना था। जिससे समाज राष्ट्र स्वस्थ सबल मजबूत बने।
सन्दर्भ ग्रन्थ : १. बाबू राम गुप्त उपन्यासकार `नागार्जुन' झ्aुा ८६  
२. नागार्जुन युगधारा झ्aुा १८  
३. ----------वही------------------ 
४. नागार्जुन प्यासी पथराई आँखें झ्aुा ६३  
५. डॉ. सावित्री डागा- आधुनिक हिंदी मुक्तक काव्य में नारी झ्aुा ३६०  
६. प्यासी पथराई आँखें झ्aुा ६४  
७. डॉ. सावित्री डागा - आधुनिक हिंदी मुक्तक काव्य में नारी झ्aुा ३६०  
८. प्यासी पथराई आँखें झ्aुा ६२  
९. ----------वही------------------ 
१०. बाबू राम गुप्त-  उपन्यास कार नागार्जुन झ्aुा ८७  
११. नागार्जुन युग धरा झ्aुा २६

डॉ. सीमा  शेखर  
मयलापुर, चेन्नई 

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