part sky : हिस्से का आसमान
This heartwarming story of a mother reflects on her daughter's academic performance and the societal pressure of marks. She challenges the traditional definition of success and emphasizes the importance of creativity, confidence, and emotional intelligence. A must-read for every parent and educator. इस प्रेरणादायक लेख में एक माँ ने अपनी बेटी के कम नंबरों को लेकर समाज की सोच पर सवाल उठाए हैं। वह दिखाती हैं कि नंबर ही सब कुछ नहीं होते — आत्मविश्वास, कला, भाषा और स्वतंत्र सोच भी बच्चे की असली ताकत होती है। यह लेख हर माता-पिता को पढ़ना चाहिए जो बच्चों पर नंबरों का बोझ डाल रहे हैं।

part sky : मेरी १० साल की बिटिया ने इस बार पांचवी की परीक्षा उत्तीर्ण की है ५०ज्ञ् मार्क्स के साथ ,बस इतने से नंबर्स लायी है? जान पहचान वाले यही बात पूछ रहे थे, जब स्कूल से रिजल्ट लाने गये तो वहां भी हमे यही बोला गया कि थोड़ा ध्यान दीजिये इसकी पढ़ाई पर बहुत कम स्कोर बना पाई है इस बार! आजकल बच्चों के औसतन ९०ज्ञ् मार्क्स आ रहे हो वहां ५० प्रतिशत बहुत कम लगते हैं, पर मैं खुश हूँ उसके परिणाम से क्या हुआ जो नंबर कम आये हैं, वो पढ़ाई के अलावा बहुत कुछ सीखती है, आर्ट में निपुण है, रंगों से केनवास पर सजीव चित्रण कर सकती है, घर की दीवारें उसकी बनाई तस्वीरों से खिल रही हैं, भाषा में बहुत अच्छी पकड़ है उसकी, आत्मविश्वास से भरपुर है, किसी से दबती नहीं, अपनी बात को बेबाकी से रखती है, अच्छे-बुरे का ज्ञान है उसे और अभी बहुत कुछ सीखना है उसे, मुझे विश्वास है उस पर अपना कमा कर खा लेगी! जब बिटिया ने मुझे आकर बताया मेरी बोल रही थी कि अगर इतने कम मार्क्स मुझे आते तो मेरी माँ मुझसे बहुत नाराज होती, और डांट लगाती!
Trijata, daughter of Vibhishana : विभीषण की पुत्री त्रिजटा
मुझ सोचने पर मजबूर कर देती है ऐसी बातें। क्या सच में अच्छे मार्क्स लाने वाले बच्चे ही बुद्धिमान होते हैं? क्या गारन्टी है कि यह बच्चे आगे जीवन में सफ़ल होंगे, सभी टॉपर ही ऊंचे पद पर कार्यरत होते हैं क्या? बहुत से ऐसे उदाहरण हैं हमारे समाज में, देश में जो पढ़ाई में औसत रहे हैं उन्होंने भी बहुत बड़ा मुकाम हासिल किया है! यह नंबर ज्यादा लाना, एक-दूसरे बच्चे से कॉम्पिटिशन करना, फलाने के इतने नंबर आए, तुम्हें उससे ज्यादा लाने है ऐसी सोच से बच्चे रटंत होकर नम्बर तो ले आएंगे ज्यादा पर जीवन में और भी बहुत से टास्क होगे, परीक्षाएं होंगी जो सिर्फ किताबी पढ़ाई से अलग होगी, इसलिए बच्चों को बेशक टॉपर बनाए पर बिना किसी दबाब के, उन्हें वो सब करने दीजिये जिसमें उनकी रुचि हो! उनके बचपन को खूबसूरत बनाये, बेवजह का दबाव और कठोरता बच्चे को जिंदगी भर के लिए तनावग्रस्त बना सकती है! खेलने दो, महकते रहने दो यूँही पंख फैलाने दो खुले गगन में एक दिन सभी ढूंढ लेंगे अपने अपने हिस्से का आसमान!!
सरोज पारीक
सिबसागर, असम
What's Your Reaction?






