Microtia: A Congenital Ear Deformity and a New Life through 3D Bioprinting : अपने टिश्यू से बायो 3D प्रिंटिंग द्वारा बना कान (चिकित्सा विज्ञान में प्रगति)

Microtia is a congenital ear deformity that affects both hearing and confidence. Learn about traditional treatments and how 3D bioprinting is revolutionizing ear reconstruction by creating lifelike, symmetric ears. अगर आपके बच्चे को माइक्रोटिया है, तो उसकी सुनने की क्षमता की जांच करवाना ज़रूरी है। सुनने की हल्की-फुल्की कमी भी बोलने के विकास को प्रभावित कर सकती है। कुछ मामलों में, माइक्रोटिया वंशानुगत होता है। इसका मतलब है कि जैविक माता-पिता अपने बच्चों को यह बीमारी दे सकते हैं। हालाँकि, कई मामलों में, माइक्रोटिया एक अनियमित रूप से होने वाली घटना है।

Jul 7, 2025 - 13:02
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Microtia: A Congenital Ear Deformity and a New Life through 3D Bioprinting : अपने टिश्यू से बायो 3D प्रिंटिंग द्वारा बना कान  (चिकित्सा विज्ञान में प्रगति)

  Microtia: A Congenital Ear Deformity and a New Life through 3D Bioprinting : यहाँ बात कर रहे हैं एक बीमारी की जिसका नाम है माइक्रोटिया जो बाहरी कान की जन्मजात असामान्यता है। `माइक्रोटिया' शब्द लैटिन शब्द `माइक्रो' से आया है, जिसका अर्थ है छोटा और `ओटिया', जिसका अर्थ है कान। `जन्मजात' का अर्थ है कि आप इस स्थिति के साथ पैदा हुए हैं। यह असामान्यता हल्की संरचनात्मक समस्याओं से लेकर बाहरी कान के पूरी तरह से गायब होने तक हो सकती है। जब कान की नली गायब हो जाती है, तो यह सुनने की समस्या भी पैदा कर सकती है और यह बताने में कठिनाई हो सकती है कि ध्वनि किस दिशा से आ रही है। माइक्रोटिया आमतौर पर एक कान को प्रभावित करता है लेकिन दोनों कानों में भी हो सकता है। यह आमतौर पर गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान कान के असामान्य विकास के कारण होता है। यह स्थिति पुरुषों में अधिक बार होती है। यह बाएं कान की तुलना में दाएं कान को अधिक प्रभावित करता है। माइक्रोटिया वाले लोगों के प्रभावित कान में कुछ हद तक सुनने की क्षमता कम हो सकती है, खासकर अगर मध्य कान या कान की नली के विकास में समस्या हो। लेकिन आपके आंतरिक कान की संरचनाओं में ध्वनि का संचालन करने की क्षमता हो सकती है, भले ही आपका कान की नली पूरी तरह से बंद हो। इसलिए, आपके कान की नली को खोलने के लिए सर्जरी से सुनने की क्षमता में सुधार हो सकता है। अगर आपके बच्चे को माइक्रोटिया है, तो उसकी सुनने की क्षमता की जांच करवाना ज़रूरी है। सुनने की हल्की-फुल्की कमी भी बोलने के विकास को प्रभावित कर सकती है। कुछ मामलों में, माइक्रोटिया वंशानुगत होता है। इसका मतलब है कि जैविक माता-पिता अपने बच्चों को यह बीमारी दे सकते हैं। हालाँकि, कई मामलों में, माइक्रोटिया एक अनियमित रूप से होने वाली घटना है।


अब बात आती है कि इसका इलाज़ क्या है? इलाज़ कितना जरुरी है? इस बीमारी के दो पहलू हैं पहला है सुनने में परेशानी, जब मध्य कान का निर्माण भी बीमारी से प्रभावित हुआ है या कान का बाह्य छिद्र पूर्णतः बंद हैं जिससे श्रवण शक्ति प्रभावित हो रही है तो उपचार की आवश्यकता है। दूसरी स्थिति है कि सुनने की समस्या नहीं है, लेकिन बाह्य कान का निर्माण नहीं हुआ है या पूर्ण निर्माण नहीं हुआ है। ऐसे रोगियों में श्रवण क्षमता प्रभावित नहीं हुई लेकिन शरीर की सुन्दरता का ह्रास है अत: इलाज न भी कराया जाय तो भी काम चल सकता है लेकिन यह एक हीन भावना तो बच्चों में ला ही देता है। 
इस लेख में मुख्य रूप से उन रोगियों की बात करेंगे जिनमें बाह्य कान का निर्माण नहीं हुआ है या पूर्ण निर्माण नहीं हुआ है। इसका इलाज कान का पुनर्निर्माण है जो एक लम्बी प्रक्रिया है और जो यह पूर्ण रूपेण यह भी सुनिश्चित नही करती कि आपके दोनों काम एक समान ही होंगे। कान के पुनर्निर्माण में एक नया कान बनाने के लिए बच्चे की अपनी पसली की उपास्थि (कार्टिलेज) का उपयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया दो चरणों में पूरी की जाती है -
प्रथम सर्जरी जिसमें पसलियों से कार्टिलेज को इस तरह से हटाया जाता है कि वह वापस स्वत: बन सके। प्लास्टिक सर्जन इस कार्टिलेज को आपके बच्चे के दूसरे कान से जितना संभव हो सके उतना करीब से मिलाने के लिए काटता है। इसे त्वचा के नीचे रखा जाता है जहाँ कान होना चाहिए। अब आपके बच्चे का कान सामान्य कान जैसा ही दिखेगा, लेकिन यह सिर के किनारे पर सपाट रहेगा। इसे ठीक होने में लगभग छह महीने लगेंगे।
द्वितीय सर्जरी जो पहली सर्जरी के कम से कम छह महीने बाद की जाती है। इसमें कान को सिर के किनारे से दूर उठाना शामिल है, ताकि कान सामान्य कान की तरह दिखाई दे। एक बार जब यह सर्जरी पूरी हो जाती है और ठीक हो जाती है, तो बच्चा चश्मा पहनने में सक्षम हो जाएगा। अक्सर कान छिदवाना भी संभव होता है।


यह एक जटिल सर्जरी है, और बच्चे को इसके लिए मानसिक रूप से तैयार करना पड़ता है। इस सर्जरी से पहले बच्चों की उम्र लगभग ७ या ८ साल होनी चाहिए। इस उम्र तक इंतजार करना सबसे अच्छा है, ताकि कानों का आकार जितना जितना बढ़ना संभव हो उतना बढ़ सके। कान के पुनर्निर्माण से गुजरने वाले अधिकांश बच्चे इसके बाद बहुत संतुष्ट होते हैं। माइक्रोटिया वाले बच्चे आमतौर पर सामान्य, स्वस्थ जीवन जीते हैं। उनके कान आमतौर पर बिल्कुल एक जैसे नहीं होते हैं, लेकिन मामूली अंतर आमतौर पर दूसरों को ध्यान में नहीं आता है। सर्जरी के बाद बच्चों में अक्सर अधिक आत्मविश्वास होता है।
यह हुई बात एक बीमारी की और उसके उपलब्ध पारम्परिक इलाज़ की लेकिन फिर इसका जिक्र अभी क्यों? रुकिए! रुकिए! अभी बताता हूँ। चिकित्सा जगत की असीमित उपलब्धियों में एक और अध्याय जुड़ गया है और वह है ३D प्रिंटिंग से अंगों का निर्माण और इसकी शुरुआत इस बीमारी से हो रही है। इस तकनीक से पारंपरिक इलाज में दोनों कानों में जो समरूपता की कमी देखी गयी है उसका भी समाधान निकाल लिया गया है क्योंकि इस विधि से हुबहू समान आकृति बनायीं जा सकती है। अब आप कहेंगे कि यह ३D प्रिंटिंग तकनीक क्या है? कोई कान की जगह कान की फोटो तो नहीं लगनी है? जवाब है नहीं। ३D  प्रिंटिंग मूलतः निर्माण की एक तकनीव्ाâ है जिसका उपयोग त्रिविमीय (तीन आयामी या डायरेक्शनल) ऑब्जेक्ट का निर्माण किया जाता है।
इसके लिए मूल रूप से डिजिटल स्वरूप में एक त्रिविमीय वस्तु को डिज़ाइन किया जाता है। इसके बाद ३D प्रिंटर की मदद से उसे भौतिक स्वरूप में प्राप्त किया गया है। ३D प्रिंटिंग में तीन नई प्रकृतियां, विशेष रूप से कम समय, वस्तु के डिजाइन की स्वतंत्रता और कम कीमत के कारण से निर्माण क्षेत्र के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव की संभावना जताई गई है। स्वास्थ्य क्षेत्र में भी अब इस तकनीक का उपयोग कई कई उद्यमों, उत्तक इंजीनियरिंग, प्रोस्थेटिक और कृत्रिम मानव अंगों के निर्माण में किया जाना शुरू हुआ है।


त्रि-विमीय वस्तुएँ बनाने की बहुत सी विधियों में से ३D प्रिंटिंग एक विधि है। इस विधि में कम्प्यूटर के नियन्त्रण में वस्तु पर किसी पदार्थ की परत-दर-परत डालते जाते हैं और वस्तु तैयार होती जाती है। निर्मित होने वाली वस्तुएं किसी भी आकार और ज्यामिति वाली हो सकतीं हैं। चिकित्सा क्षेत्र भी मरीजों की मदद के लिए ३D प्रिंटिंग का उपयोग करने के नए तरीके खोज रहा है। डॉक्टर अब ३D मेडिकल मॉडल प्रिंट करने में सक्षम हैं जो इतने सटीक हैं कि सर्जन वास्तव में उस मरीज पर ऑपरेशन करने से पहले मरीज के ३D मॉडल पर अभ्यास कर सकते हैं। ३D प्रिंटेड मॉडल का उपयोग कम खर्चीले, अधिक टिकाऊ और बेहतर फिटिंग वाले कृत्रिम अंग बनाने के लिए भी किया जा रहा है, जो अंग खो चुके हैं। 
स्विट्जरलैंड के समूह द्वारा `एक नरम सिलिकॉन हृदय' का विकास किया गया जो लगभग मानव हृदय के समान ही कार्य करता है। इसके अलावा चीन और अमेरिका के रिजोल्यूशन ने संयुक्त प्रयास से ३D प्रिंटिंग तकनीक का प्रयोग करते हुए एम्ब्रियोनिक सैटेलाइट सेल का विकास किया, वहीं यूनाइटेड किंगडम के रिजोल्यूशन ने इस तकनीक का प्रयोग करते हुए विश्व में सबसे पहले कॉर्निया का निर्माण किया। यहाँ बात हो रही बायो ३D प्रिंटिंग की जिसमें अपने उतकों या टिश्यू का प्रयोग होगा।


चिकित्सा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बीच संभवत: २०२१-२०२२ में पहली सफल ऑपरेशन में, एक माइक्रोटिया से पीड़ित २० वर्षीय महिला को उसके स्वयं के ऊतकों से विकसित एक नये कान का प्रत्यारोपण किया गया है। जिसमें वैज्ञानिकों ने पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका में ​​परीक्षण के तहत जीवित ऊतक का उपयोग करके ३D मुद्रित कान प्रत्यारोपण विकसित किया गया है। 
टीम ने मरीज के कान की ज्यामिति से विशेष रूप से मेल खाने के लिए विपरीत कान की ३D स्कैनिंग के आधार पर इसे तैयार किया है। इसने मरीज की अपनी कान की कार्टिलेज कोशिकाओं को ३D मुद्रित कर, जीवित, पूर्ण आकार के कान के निर्माण किया, जिसे मरीज के माइक्रोटिया-प्रभावित कान को बदलने के लिए डिज़ाइन किया गया था। इस प्रक्रिया का नेतृत्व टेक्सास में माइक्रोटिया के विशेषज्ञ अग्रणी बाल चिकित्सक और कान पुनर्निर्माण सर्जन डॉ. आर्टुरो बोनिला ने किया, जिन्होंने कहा कि वे इस बात से अभिभूत हैं कि यह तकनीक माइक्रोटिया रोगियों और उनके परिवारों के लिए क्या मायने रखती है।
डॉ. बोनिला ने कहा कि यह अध्ययन से रोगियों में उनकी अपनी उपास्थि कोशिकाओं का उपयोग करके कान के पुनर्निर्माण इस नई प्रक्रिया से ज्यादा सुरक्षा और सौंदर्य का अद्भुत संतुलन मिलेगा। डॉ आर्टुरो बोनिला ने महिला के कान के अवशेष से आधा ग्राम उपास्थि निकालकर उसकी प्रत्यारोपण सर्जरी की, तथा उसके स्वस्थ कान के ३D स्कैन के साथ उसे क्वींस के लॉन्ग आइलैंड सिटी स्थित ३D बायो थेरेप्यूटिक्स केंद्र को भेज दिया। 
इस सुविधा केंद्र में, एलेक्सा के कोन्ड्रोसाइट्स, जो उपास्थि निर्माण के लिए जिम्मेदार कोशिकाएं हैं, को ऊतक के नमूने से अलग किया गया और पोषक तत्वों के एक विशेष घोल में विकसित किया गया, जिससे वे अरबों कोशिकाओं में बदल गए। इन कोशिकाओं को एक सिरिंज की सहायता से एक विशेष ३D बायो-प्रिंटर में डाला गया और एक रोगी के दूसरे कान की शक्ल तैयार की जो रोगी के स्वस्थ कान की दर्पण प्रतिकृति (श्ग्rrदr घ्स्aुा) थी। सम्पूर्ण मुद्रण प्रक्रिया में १० मिनट से भी कम समय लगा। इसके बाद मुद्रित कान के आकार को पुनः कोल्ड स्टोरेज में डॉ. बोनिला के पास भेज दिया गया और उन्होंने एलेक्सा के जबड़े के ठीक ऊपर त्वचा के नीचे कान प्रत्यारोपित कर दिया।


सर्जरी से पहले मरीज का कान, बायां कान, तथा सर्जरी के ३० दिन बाद मरीज का कान:
कान पुनर्निर्माण सर्जरी के क्षेत्र में कई समस्याओं का समाधान किया जाना बाकी है और मुद्दों पर विचार किया जाना है। ऑरिकुलर कार्टिलेज के लिए एक सुरक्षित, सौंदर्य की दृष्टि से संतोषजनक और स्थिर ऊतक विकल्प सुनिश्चित करने और ३D प्रिंटेड प्रत्यारोपण के उपयोग को बढ़ाने के लिए आगे अनुसंधान और विस्तृत नैदानिक अध्ययन किए जाने होंगे। इसके अलावा, बायोमटेरियल और सेल प्रिंटिंग तकनीक के संबंध में मानव स्टेम कोशिकाओं से जुड़े नैतिक और कानूनी मुद्दों को सुलझाना होगा। फिलहाल निष्कर्ष यही है कि बायोप्रिंटिंग तकनीक के साथ कान का डिज़ाइन कान पुनर्निर्माण के लिए एक आदर्श विकल्प हो सकता है।
विश्व के अन्य हिस्सों में भी इस अत्यंत महत्वपूर्ण खोज के ऊपर काम चल रहा है और ३D प्रिंटिंग तकनीक जिसमे स्वयं के ऊतकों का उपयोग किया जा सके यह प्रर्त्यारोपण चिकित्सा क्षेत्र में एक नया आयाम है जो भविष्य के लिए बहुत सी संभावनाएं जगाता है और इसके आगे चमत्कारिक परिणाम हो सकते हैं। 

डॉ. रविन्द्र दीक्षित
ग्रेटर नोएडा

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