बड़ी बहू : elder daughter in law
This story depicts the family life of two sisters, their struggles, understanding, and harmony. It highlights how advice from relatives, social attitudes in the village, and life’s challenges created distance between them, but through wisdom, they learned to live together. The arrival of the new daughter-in-law brought joy and unity in the household, portraying an inspiring family bond. धीरे-धीरे समय पंख लगाकर उड़ रहा था बड़ी बहन को दो बेटे और चार बेटियां हो गयीं छोटी को तीन बेटे और एक बेटी। लोगों ने छोटी को सिखाया,' तेरे तो एक ही बेटी है वह भी सबसे छोटी है। तेरा आदमी मेहनत करके जो कमायेगा सब तेरी दीदी की लड़कियों की शादी में ही लग जायेगा।'

elder daughter in law : ‘अरे सुनती हो अम्मा! सोनू मोनू के लिए बड़ा अच्छा रिश्ता मिल रहा है।' राम प्रसाद जी ने मां को बड़ी प्रसन्नता से बताया। उनका एक अंग उनकी प्रसन्नता को प्रकट कर रहा था। मां अपनी बहू को आंख के इशारे से पास में बुलाती हुई बोली, ‘अरे किसने बताया है रिश्ता और दोनों ही बहनों के लिए।' ‘हां अम्मा दोनों ही बहनों के लिए और सबसे अच्छी बात ये कि दोनों ही सगे भाई हैं। इण्टर तक की पढ़ाई भी किये हैं।' राम प्रसाद ने कहा।
अरे तो खेता-rबारी कितनी है ये सब भी पता किये हो? अम्मा के मन में अभी बहुत सारे प्रश्न घूम रहे थे। और राम प्रसाद जी सभी प्रश्नों का समाधान करते जा रहे थे।
दो चार रिश्तेदारों से सलाह मशविरा करने के बाद दोनों ही बहनों की शादी एक ही मंडप में कर दिया गया। अच्छा घर-बार परिवार सभी पाकर दोनो बहनें भी खुश थीं। अब दोनों बहनें देवरानी और जेठानी की भी भूमिका निभा रही थीं। दोनों ने बड़ी ही समझदारी से घर के काम काज को भी संभाल लिया। बड़ों का सम्मान करना, उनकी सेवा करना तो उनके रग-रग में बसा हुआ था। घर के सारे काम-काज को ऐसी फुर्ती से मिलकर निबटातीं की सास ननद उनकी तारीफ करते अघाती न थीं। गांव की कुछ औरतें यह देखकर जल-भुन जातीं पर मजाल क्या कि दोनों बहनें कभी भी आपस में अनबन करतीं।
धीरे-धीरे समय पंख लगाकर उड़ रहा था बड़ी बहन को दो बेटे और चार बेटियां हो गयीं छोटी को तीन बेटे और एक बेटी। लोगों ने छोटी को सिखाया, ‘तेरे तो एक ही बेटी है वह भी सबसे छोटी है। तेरा आदमी मेहनत करके जो कमायेगा सब तेरी दीदी की लड़कियों की शादी में ही लग जायेगा।'
`तो मैं क्या करूं अम्मा?' छोटी ने बड़े ही भोलेपन से कहा।
अरी बेवकूफ! अगर तुम अपनी जेठानी से अलग रहोगी तो अपनी बेटी की शादी के लिए जाने कितना इकट्ठा कर सकती हो। इकट्ठा रह कर बस उनकी बेटियों को साजती रहना।
‘तो क्या हो गया वे भी तो मेरी ही बेटियां हैं।' कहकर छोटी वहां से हट गयी। पड़ोसन की बातों ने छोटी के दिल दिमाग पर असर दिखा ही दिया था। वह अकेले में अक्सर यही सोचती की मैं तो दीदी के बराबर की हिस्सेदार हूं और जितने में बड़ी दी की तीन बेटियां ब्याही जायेंगी उतना मैं अपनी एक बेटी को अकेले ही दे सकती हूं। धीरे-धीरे इन सभी संकुचित विचारों ने उग्र रूप धारण कर लिया और घर दो हिस्सों में बंट गया। अब पड़ोसियों के आनन्द की सीमा ही न रही की सबसे आदर्श कहलाने वाले घर में आखिर में बंटवारा हो ही गया। घर का बंटवारा भले ही हो गया था पर दोनों भाईयों के बीच में प्यार वैसा का वैसा ही था। बाहर के सभी काम दोनों मिलकर ही किया करते थे। घर के अन्दर अब दो दो रसोईघर बन गये थे। लेकिन बर्तन धोने, नहाने व कपड़ा धोने का काम एक ही जगह पर होता था। आपसी समझ से दोनों बहनों ने समय निर्धारित कर दिया था और उसका पालन घर की लड़कियां बखूबी निभाती भी थीं।
इसी बीच बड़ी बहन के बेटे की शादी हुई घर में सभी ने मिलकर खूब धूमधाम से नयी बहू का स्वागत किया गया। बड़ी यानी नयी बहू की सासू मां को अपनी एम.ए. पास शहर से आती बहू से केवल एक ही डर सता रहा था कि वह घर के काम कर पायेगी या नहीं अन्य लोगों से वह सामंजस्य स्थापित कर सकेगी या नहीं और भी जाने क्या क्या।
सुबह भोर में बहू को उठाकर बोली, ‘बहू सुबह जल्दी उठकर बाहर जाना है तथा आकर नहा धोकर घर के काम में थोड़ा-सा हाथ बंटा देना। तुम्हारी ननदें तुम्हारे साथ में होंगी। ‘जी मां जी' कहकर नई बहू रूपा ने सारे ही काम अपनी सास के मनमुताबिक निपटा दिए।
सास की तो खुशी का वारा-न्यारा ही नहीं था। शहर की लड़की गांव के सारे काम हंस-हंस कर निपटा लें रही है।
एक दिन गलती से बहू ने नहाने का साबुन पनारे पर ही छोड़ दिया। यह देखकर छोटी मौसी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा, ‘पता नहीं किस शहर से पढ़ी-लिखी आती हैं।
कह दो उनसे नहाकर पनारा साफ कर दिया करें,जरा भी शर्म नहीं है साबुन वहीं छोड़कर आयी हैं।' यह सुनकर बड़ी की गुस्सा छोटी से भी दस गुना बढ़ गया। आखिर उनकी प्रिय व नयी नवेली बहू को कोई कुछ कैसे कह सकता है। उन्होंने आंगन में आकर घोषणा कर दी, ‘आज से इस पनारे पर मेरे यहां का कोई भी काम नहीं होगा।' फिर लपक कर बहू के पास पहुंची, ‘बहू मैं बाहर मड़ई में सारी व्यवस्था कर दूंगी। वहीं नहाना धोना, बर्तन-कपड़ा धोना होगा। वहीं खाना बनाने की व्यवस्था भी कर दूंगी। अब तुम बताओ ये सब कर लोगी ना!
‘हां, हां माजी आप चिंता न करें, मैं सभी काम कर लूंगी। अब बहूरानी घर से निकल कर मड़ई में जातीं, वहां सारे काम करके फिर घर में आ जाती। यह सब देख देखकर गांव की औरतें बहू की तारीफ करतीं और छोटी सास की जमकर नमक मिर्च लगाकर बुराई करती। छोटी को भी यह सब अच्छा नहीं लग रहा था, वह तो पता नहीं गुस्से में बहू को कैसे बोल गयी वे खुद ही मन-ही-मन पछताती रहती थीं। उनको समझ में नहीं आ रहा था कि वह करता करें की सारा मामला सुलझ जाए।
एक दिन सुबह-सुबह बहू नहाने के कपड़े लेकर बाहर निकल रही थी कि सामने से छोटी सास यानी मौसी जी सामने पड़ गयीं। बहू ने तुरंत झुक कर छोटी मौसी पैर छू लिए। छोटी की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। उन्होंने बहू को हजारों आशीर्वाद दे डाले। यह सब बड़ी देख रही थी। उनको समझ में आ गया कि यह शहरी बहू घर को जोड़ कर रखेगी। मन ही मन वे बहुत खुश हुई।
दूसरे दिन छोटी रानी मौसी गुड़ और दही लेकर मड़ई में जा पहुंची। वहीं बड़ी बहन यानी बड़ी के पैरों को आंचल से छुआ। बड़ी ने जब से उसे बहू को आशीर्वाद देते देखा था उनके मन का कलुष धुल चुका था। उन्होंने छोटी को जी भर कर आशीर्वाद दिया। छोटी ने आंख में आंसू भरकर कहा, ‘दीदी हम लोग मायके में भी तो लड़ते थे तब तुम हमेशा मुझे माफ़ कर देती थी और पहले मुझे मनाती थी। अब करता माफ नहीं करोगी।' बड़ी ने छोटी के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा, क्यों नहीं, तू तो मेरी वही प्यारी छोटी बहन है।' छोटी ने गुड़ और दही देते हुए कहा दीदी यह बहू के लिए लायी हूं।' बड़ी ने गुड़ और दही ले लिया और फिर बहू को आवाज लगाई, ‘अरे बहू जो आज गुलगुले बनाई हो ले आओ अपनी मौसी को खिलाओ, लोटे में पानी भी ले लाना।'
बहू ने गुलगुले और पानी लाकर सामने रखा और फिर मौसी के पैर छूने लगी। मौसी ने पहले खूब आशीर्वाद दिया फिर बोलीं, ‘दीदी मैं ये गुलगुले तब खाऊंगी जब यह वादा करो की अब बहूरानी यहां बाहर मंड़ई में आकर काम नहीं करेंगी। अब पहले जैसे ही घर के अन्दर पनारे पर काम करेंगी। बड़ी ने जब हामी भरी तब जाकर उन्होंने गुलगुले खाये। उसी समय बड़ी के देवर यानी छोटी मौसी के पति भी आ गये। उन्होंने सारी बातें सुन ली थी। उन्होंने गुलगुले उठाते हुए कहा, ‘और हां सुनो भाभी! पनारे को साफ करने की रोज की ही जिम्मेदारी मैं लेता हूं।' सभी खिलखिलाकर हंस पड़े। घर में एक बार फिर से खुशियों का चमन खिल उठा था।
डॉ. सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
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