बसंत उत्सव

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सरस्वती ने जब श्रीकृष्ण को देखा तो उनके रूप पर इस कदर मोहित हो गईं कि उन्हें पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं। भगवान कृष्ण को इस बात का पता चलने पर उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं। सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने वसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती को वरदान देते हुए कहा था

May 30, 2025 - 16:53
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बसंत उत्सव
spring festival
बसंत उत्सव आनंद और चेतना का उत्सव है जो महत्व सैनिकों के लिए  विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए गुरु पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए दीपावली का है, वही महत्व हम अध्ययन अध्यापन करने वालों और लेखक कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। इसीलिए वे इस दिन मां सरस्वती की वंदना करते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि पहला वंदन श्री कृष्ण ने किया।

पौराणिक महत्व- 

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सरस्वती ने जब श्रीकृष्ण को देखा तो उनके रूप पर इस कदर मोहित हो गईं कि उन्हें पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं। भगवान कृष्ण को इस बात का पता चलने पर उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं। सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने वसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती को वरदान देते हुए कहा था कि ब्रह्मांड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्या आरम्भ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव के साथ आपकी विशाल पूजा-अर्चना की जाएगी. मेरे वरदान से आज के बाद प्रलयपर्यन्त तक प्रत्येक कल्प में मनुष्य, मनुगण, देवता, मोक्षकामी, वसु, योगी, सिद्ध, नाग, गन्धर्व और राक्षस सभी आपकी पूजा करेंगे. पूजा के दौरान विद्वान आपकी स्तुति-पाठ करेंगे. यह वरदान देने के बाद सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्‍ण ने मां सरस्‍वती की पूजा-अर्चना की. चुकी मां सरस्वती का जन्म शगुन से हुआ था इसीलिए उनकी पूजा में श्वेत वस्त्र स्वयं श्वेत चंदन श्वेत पुष्प से दूध दही घी नारियल नारियल काजल आदि प्रयुक्त किया गया। फिर ब्रह्मा, विष्णु, शिव और इंद्र आदि देवताओं ने मां सरस्वती की पूजा की. तबसे वसंत पंचमी पर विधि-विधान से मां सरस्‍वती की पूजा का विधान शुरू हो गया. 

ऐसे हुई थी मां सरस्वती की उत्पति- 

एक पौराणिक कथा के अनुसार बसंत पंचमी के दिन ही के सरस्वती की रचना हुई थी. ब्रह्मा ने सृष्टी की रचना की और उन्हें लगा कि उनकी रचना में कुछ कमी रह गई. इसलिए उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़का और सरस्वती पैदा हुईं. सरस्वती के चार हाथ थे जिसमें से एक में पुस्तक, दूसरे में वीणा, तीसमें में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था. ब्रह्मा ने सरस्वती को वीणा बजाने को कहा और पूरी दुनिया में स्वर आ गए. दुनिया पूरी हो गई और क्योंकि सरस्वती ने ब्रह्मा के साथ सृष्टी की रचना करने में मदद की थी इसलिए सरस्वती की पूजा की जाती है.
इसी दिन कामदेव को मिली थी श्राप से मुक्ति मिली थी। भगवान शिव ने क्रोध में आकर कामदेव को राख बना दिया था फिर रति ने ४० दिन तपस्या की थी और बसंत पंचमी के दिन ही शिव ने कामदेव को वापस जीवन दिया था. इसलिए बसंत पंचमी को प्रेम का दिन भी माना जाता है.
त्रेता युग में वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी दण्डकारण्य आए थे। जब राम बनवास के दौरान सीता के की खोज करते करते  यहां आए, जहां  शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया । 
उस क्षेत्र के वनवासी आज भी इस दिन उस शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। 

ऐतिहासिक महत्व- 

राजा भोज का जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही आता है। राजा भोज इस दिन एक बड़ा उत्सव करवाते थे, जिसमें पूरी प्रजा के लिए एक बड़ा प्रीतिभोज रखा जाता था, जो चालीस दिन तक चलता था।
वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। शब्दभेदी बाण के कमाल की कहानी जगप्रसिद्ध है। कहा जाता है कि बसंतपंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान ने चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह मोहम्मद गोरी के सीने में जा धंसा। 
 ङप्राकृतिक एवं आर्थिक महत्त्व- 
कड़कड़ाती ठंड के अंतिम पड़ाव के रूप में वसंत ऋतु का आगमन प्रकृति को वासंती रंग से सराबोर कर जाता है। अंगारों की तरह दिखते पलाश के फूल, आम के पेड़ों पर आए बौर, हरियाली से ढँकी धरती वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। फूलों पर बहार आ जाती है। खेतों में सरसों का फूल मानो सोना बन चमकने लगता है जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं हैं हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं हैं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन बसंतपंचमी का जश्न मनाया जाता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व- 

हिंदू धर्म के लिए बसंत पंचमी का बहुत महत्व है। बसंत पंचमी पर क्या क्या कर सकते हैं? आइए देखें-
- उपनयन संस्कार,मुंडन,कन-छेदन कर सकते हैं। (मुहूर्त नहीं देखना होता )
- सगाई या विवाह कर सकते हैं। ( मुहूर्त नहीं देखना होता )
- विद्या आरंभ ( मुहूर्त नहीं देखना होता )
इसके अलावा इस दिन...
- नया कारोबार शुरू कर सकते हैं।
- गृह प्रवेश कर सकते हैं, मकान की नींव डाल सकते हैं।
- नया वाहन, बर्तन, सोना, घर, नए वस्त्र, आभूषण, वाद्य यंत्र, म्यूजिक सिस्टम आदि खरीदने के लिए बसंत पंचमी शुभ दिन है।
- किसी नए कोर्स में एडमिशन लेने के लिए, विदेश जाने के लिए आवेदन देने के लिए या संबंधित परीक्षा देने के लिए शुभ दिन माना जाता है।
- लॉन्ग टर्म निवेश, बीमा पॉलिसी, बैंक खाता आदि खोल सकते हैं।
- कोई नया काम शुरू कर सकते हैं, शिक्षा या संगीत से संबंधित कार्य कर सकते हैं।

साहित्यिक महत्त्व- 

यूँ तो ऋग्वेदिक काल से ही बसंत पर कवि मुग्ध रहे हैं पर हिंदी साहित्‍य में यह ऋतुराज के रूप में प्रतिष्टित है।हिंदी साहित्य का आदिकाल हो या भक्तिकाल, रीतिकाल हो या आधुनिक काल बसंत पर खूब लिखा गया है।
वसन्त पंचमी  को ही हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्मदिवस  भी है। अज्ञेय ने इसिलए उन्हें 'बसंत का अग्रदूत' कहा।
अब मैं कहाँ तक कहूँ, इसकी कथा अनंत है, अंत में यही कहूंगी ...
`सखि बसंत आया 
भरा हर्ष वन के मन नवोत्कर्ष छाया 
सखि बसंत आया।'
डॉ. मधु गुप्ता
बंगलूर

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