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नारी

नारी दुर्गा रूप को ,अबला कहे समाज। पहना कर फिर बेड़ियां,निर्बल करता आज ।

सृजनकारी है वनिता

सहना मत अन्याय को, इससे बड़ा न पाप। लो अपना अधिकार तुम, छोड़ो अपनी छाप ।