फौजी बस्ती
A gripping rural tale centered on a military colony — witnessing explosions, curfews and personal sacrifices — where retired soldiers like Raja Kaka display resilience, and broken souls like Paras search for closure amid violence and community healing.
बिसवी सदी के अन्तिम समय में पैदा हुए हरे पत्ते में जलता हुआ हवा. जो इक्कीसवीं सदी में भी प्रवेश करेंगे शायद कच्चा ही बनकर आएंगे। यही उत्पत्त हवा कुछ वर्ष पूर्व नारा बनकर झुण्ड में उड़ते थे. न जाने कौन सा धारा में अधारित तूफान थे जिस की नतिजा आज भी है।
उनको वरगद के छाँव में थोड़ा सा परित्राण मिला। मगर पश्चिम दिशा से गरम हवा आकर थोड़ा म्लान कर जाता है।
राजा काका तीन दिन के बाद आज गांव लौटा है। शहर उफ़ बम बिना काम नहीं हत्या बिना खाया न पचे । हाहाकार । स्ट्राइक पिकेटिङ क्या यही है इस सदी के उत्कर्ष सार २७ तीन दिन पहले के वह विभत्स दृश्य उनके मस्तिष्क से निकला नहीं है। कर्कश विस्फोट के कारण सभी सभी स्टेशन रोड की ओर भागते हैं। जहां एक गर्भवती महिला के शरीर दो टुकड़ों में क्षत-विक्षत थी। उसके बच्चे अलग पड़ा था। क्षत-विक्षत के विभत्सता राजा काका प्रत्यक्षदर्शी थे । उफ! विभिषिका शहर। कर्फ्यू ने कुचला शहर के वे गल्लीयों दुकाने अट्टालिकाएं, होटलों सब बन्द हो गए थे। राजा काका भी बन्द हो गये थे। दिमाग को चाटने वाले शहरी करतुत को सोचता हुआ एक छोटी सी जल धारा के पास आकर एक अंजुली पानी से अपने चेहरे को भिगोते है। उसी समय पास के जंगल में काला लंगूर हुलू हुलू हुलू कर के चिल्ला उठता है। राजा काका को तिस साल पहले के घटनाएं याद आती है।
उस समय ये जलधारा एक नदी थी. जिस के पानी से अपने चेहरा भिगोते ही इसी जंगल में काला बानर हुलू हुलू हुलू करके चिल्लाया था।उसी समय कुछ लड़कियां लकड़ी लाने जंगल जा रहीं थीं।
बहनों। यहां ग्राम प्रधान के घर कहां है? पुछा था। लड़कियां खुब हँसी थी। राजा काका रिटायर्ड होने में अभी पांच वर्ष था। जमीन के सिलसिले में राजा काका यहां आए थे। रिटायर्ड होने के बाद वे इसी गांव में रहने लगे थे।
उस समय गांव पूरी तरह से जंगलो से भरा हुआ था। पन्द्रह घर मिलकर जंगल काटना घर बनाने आदि करके गाँव बस्ती बसाए जा रहे थे।वन में जंगली जानवर फल-फूल वन के चिड़ियों के मन को मोह लेने वाली मीठी-मीठी गीतों से सौहार्दपूर्ण संवेदनशील समय गुजारकर इस पर सुन्दर बस्ती बनाएं थे रिटायर्ड फौजी भाई।...
आज़ लेकिन वह जमाना नहीं रहा।
चौराहे पर काका को सुनधोज मिल जाता है। सुनधोज फौजी बस्ती में सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में राजा काका प्रमुख सहयोगी हैं। काका ने सुनघोज को शहरी विभत्सता के कहानी सब सुना दिया। सुनधोज माया थामकर कहता है रोना भी नहीं सकूं हँसना भी न सकूाये कैसा जमाना आया भगवान से बोल न सकूं।
दोनों बातें करते एक टूटा हुआ कल्भर्ट में पहुंचते है। `दो साल में ही ये कल्भर्ट टूट गया इस बार के बाढ़ में तो और टूट गया। रघु मिस्त्री ने कहा था हरिप्रसाद ठेकेदार ने कम सिमेन्ट लगाने को राजा काका तैस में आकर बोला।'ऊंचा रहे झंडा हमारा!! आबाद हो देश हमारा!!'-
ये नारा नए रिटायर्ड युवकों ने लगता है।
तभी पारस दौड़ कर अन्दर आता है।मेजर को सलौट मारकर बोलता है -`मेजर काका, मुझे बन्दूक,बम, नहीं चाहिए । मैं उन्हें खुकुरी से ही मारुंगा-`बोरकर बाहर की ओर भागने लगते हैं। सभी लोग पारस को पकड़ने उस के पिछे लगते हैं। क्लब में राजा काका और मेजर अकेले रहे जाते हैं।
`बेचारे पारस,वह आन्दोलनकारी संगठन के लिडर था। संगठन से कुछ मतभेद के कारण उसे संगठन छोड़ना पड़ा। उसको अच्छा नौकरी मिल ने के कारण शादी कर के जीवन मस्त गुजर रहा था। वह साहित्यिक गतिविधियों में शामिल था। इसी सिलसिले में वह एक दिन दार्जिलिंग गया था। उसी समय आन्दोलनकारी ने उस के घर जला डाला। मैंने अपनी जान की बाजी लगा कर सरला और मुन्ना को बचाने की कोशिश की। लेकिन मैं भी अचेतन हो गया था। उसके परिवार को बचा नसका। इस वज़ह से पारस पागल हो गया था। वैसे तो वह ज्यादातर नार्मल ही रहता है। मगर जब विस्फोट,बर्ताव, हत्याकांड आदि अवसरों में पागल होकर कपड़े फाड़कर सारा गांव दौड़ा दौड़ा फिरता है। सरला, मुन्ना को पुकारता रहता है। अब तक वह अच्छा नहीं हो पाया'।
`पारस के बारे में खबर पाकर मैं ड्यूटी में ही रो पड़ा था '-मेजर आँशु पोंछ कर बोलता है -'राजा काका ये लोग आपको नुकसान पहुंचा सकते है। मैं सिधे हेडक्वार्टर को मेसेज करुंगा। कमाण्डों फ़ोर्स के लिए '। रुमाल जेप में रखकर बोलता है।
`मेरे लिए चिंतित न हो।मै झण्डा उठा कर ही मरुंगा। मैंने चाइना, पकिस्तान के वार झेले है। मैं मरने से नहीं डरता-`राजा काका ने कहा और उठकर फिर कहा -'चले परेड ग्राउंड में सुरक्षा के जायेगा लिया जाएं'।
दोनों गर्मी को भी पराजित कर के इतनी उतप्तता में भी परेड ग्राउंड में पहुंचते हैं।
पन्द्रह अगस्त के दिन। रिटायर्ड फौजी भाई तीन सौ से अधिक झण्डा फहराने एकत्रित होते हैं। लेकिन जनसाधारण कम आते हैं।
कुछ सन्दिग्ध लोग झाड़ी में छुपकर बैठा हुआ दिखाई देता है।
राजा काका ने झण्डा फहराते हैं और झण्डा को सलामी दे रहा होते हैं, तभी एक गोली उनके पैर में लगता है। गोली जिस ओर से चलाई गई थी, उसी ओर भिडीपी और नए रिटायर्ड फौजी भाई झपट पड़ते हैं। गोली दनादन चलने लगती है। दो उग्रवादी मार दिया जाता है। पारस दौड़ कर आकर उस लाश को नोच नोच कर मारकर बोलता है- `मेरे घर जला डाला था। मेरी पत्नी और मुन्ना को मारा था।अब मुझे शुकून मिला है '।
काका को हस्पताल पहुंचाया जाता है।
एक सप्ताह के बाद-मेजर बेटे-! मैंने झण्डा फहराया तिरंगा फहराएं। लेकिन - मैंने मेरे एक पैर देश को समर्पित कर दिया -`बोलकर काका पैर से सफेद कपड़ा हटाता है।
`नहीं!!'सब चिखते है।
राजा काका का एक पैर कट चुका था।
पारस अब सज्जन हो गया था। हॉस्पिटेल में सब आए हुए थे। पारस ने मला काका को पहना कर कहता है -`ये फौजी बस्ती है काका! इस फौजी बस्ती में सारा भारत है, और भारत में फौजी बस्ती है। जय हिन्द! `सब लोग कहते हैं -`जय हिन्द !!!'
धर्मधज लिम्बू
तीनसूकीया असम
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