नारी
नारी दुर्गा रूप को ,अबला कहे समाज। पहना कर फिर बेड़ियां,निर्बल करता आज ।
वनिता ,नव्या ,नंदिनी, निपुणा बुद्धि विवेक ।
शिवा,शक्ति अरु अर्पिता ,नारी रूप अनेक ।
नारी रूप अनेक, रहे अविरल सम सरिता ।
सकल जगत का मान,सृजनकारी है वनिता ।
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नारी दुर्गा रूप को ,अबला कहे समाज।
पहना कर फिर बेड़ियां,निर्बल करता आज ।
निर्बल करता आज,बनो मत अब बेचारी
अपनी रक्षा आप ,सदा तुम करना नारी।।
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सहना मत अन्याय को,इससे बड़ा न पाप।
लो अपना अधिकार तुम,छोड़ो अपनी छाप ।
छोड़ो अपनी छाप ,यही है उत्तम गहना ।,
मत करना अब पाप,कभी मत इसको सहना ।
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सरिता सम नारी रही,अविरल रहा प्रवाह।
जन्म मरण दो ठौर की ,बनती रहीं गवाह ।
बनती रहीं गवाह,इन्हीं से जीवन कविता ।
सदा करें सम्मान ,रहे निर्मल ये सरिता ।
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नारी तुम हो श्रेस्ठतम,तुम जीवन आधार ।
एक दिवस में तुम बँधी,माँगों क्यों अधिकार।
माँगों क्यों अधिकार,निभाओ भागीदारी ।
परम सत्य ये बात ,रहे पूरक नर नारी।
अनिता सुधीर आख्या
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