आभासी दुनिया
शादी तो अरेंज मैरिज थी पर दोनों एक ही नजर में एक दुसरे पर फिदा हो गये थे, दोनों बहुत खुश और एक दुसरे का खयाल रखते थे, जिंदगी की गाड़ी अपनी गति से चलती रही रिद्धिमा ने दो बच्चों को जन्म दिया एक बेटी और एक बेटा अब तो दोनों ही बच्चों के साथ खेलते और कुदते मस्त जिंदगी जी रहे थे, तभी धीरे धीरे दोनों की जिंदगी में मोबाइल फोन प्रवेश किया रिद्धिमा तो बहुत इस्तेमाल नहीं कर पाती थी

आज रिद्धिमा बड़ी ही अनमनी-सी बाहर बैठी थी तकरीबन शाम का समय चार बजे के लगभग था, आज उसकी छुट्टी थी उसे अब शाम में चुपचाप बैठ कहीें खो जाना जैसे उसके आदत मे शामिल सा हो गया था, रिद्धिमा पढ़ी लिखी थी पर अब इन तीन सालों से नौकरी कर रही थी, शादी से पहले भी वो जॉब करती थी, पर शादी के बाद वो नौकरी छोड़ दी थी लेकिन कभी उसे शिशीर से शिकायत नहीं थी, कि शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ी है, शिशीर उसके पति का नाम है बहुत ही सुलझा हुआ लड़का और प्यार करने वाला ध्यान रखने वाला शादी के आज २० साल हो गए रिद्धिमा बैठी-बैठी फिर से अपने खयालों में खो गई, आज से १७ साल पहले रिद्धिमा शिशीर के जीवन में दुल्हन बनकर आई थी, शादी तो अरेंज मैरिज थी पर दोनों एक ही नजर में एक दुसरे पर फिदा हो गये थे, दोनों बहुत खुश और एक दुसरे का खयाल रखते थे, जिंदगी की गाड़ी अपनी गति से चलती रही रिद्धिमा ने दो बच्चों को जन्म दिया एक बेटी और एक बेटा अब तो दोनों ही बच्चों के साथ खेलते और कुदते मस्त जिंदगी जी रहे थे, तभी धीरे धीरे दोनों की जिंदगी में मोबाइल फोन प्रवेश किया रिद्धिमा तो बहुत इस्तेमाल नहीं कर पाती थी क्योंकि बच्चों का काम सास, श्वसुर का काम,सारा घर का काम फिर थक कर सो जाती थी। पर शिशीर की कपड़े की शॉप थी वो प्रâी रहता था, फिर शिशीर ने अपने एंड्राइड मोबाइल फोन के जरिए फेसबुक, इंस्टाग्राम, मैसेंजर में प्रवेश किया और वो कृत्रिम दुनिया उसे इतनी भा गई कि धीरे-धीरे रिश्तों और कामों से अरुचि होने लगी, वो हमेशा रिद्धिमा से दूर रहना चाहता था.
शिशीर चूंकि बहुत सुलझा हुआ लड़का था, इसलिए उसकी दोस्ती बहुत जल्दी हो जाया करती थी, या फिर शातिर था उसे ये पता था कि औरतों से कैसे बात करूं कि उनका विश्वास जीता जाए और किसे क्या पसंद है शिशीर वही बोलता था, रिद्धिमा को उसका लड़कियों से इस तरह से बात करना रातों को उठ कर मोबाइल यूज करना उसे बिल्कुल नहीं भाता था, धीरे धीरे शिशीर के स्वभाव में परिवर्तन आने लगा रिद्धिमा के टोकने पर वो गुस्सा करता लड़ जाता था कहता मेरी भी तो लाइफ है मैं कुछ गलत नहीं करता धीरे-धीरे उसे अपनी फेसबुक मंजरी नाम की लड़की से आत्मिक लगाव हो गया वो कहता मेरी दोस्त है पर और दोस्तों से हट कर बर्ताव करता मंजरी से, फिर रिद्धिमा से छुप छुप कर बातें करता, पूछने पर लडाई झगड़ा करने लगा था अब ये तनाव बढ़ता ही जा रहा था, दिन पर दिन तो हद ही होती जा रही थी, शिशीर मंजरी से बातें करने के लिए बहाने बना कर घर से बाहर जाने लगा दुकान के काम से बोल कर मंजरी से मिलने ग्वालियर उसके घर तक पहुंच गया, इधर रिद्धिमा भी अब तंग आ चुकी थी वो भी अब रोज रोज के झगड़े और तमाम हालत से तंग आकर अलग रहने का मन बना ली इधर शिशीर को बहुत सबने समझाया पर शिशीर अब मंजरी को छोड़ने को तैयार नहीं था, अब रिद्धिमा अपने बच्चों समेत ससुराल छोड़ मायके चली आयी, इस तकलीफ़ को उसके पिता बर्दाश्त नहीं कर सके और वो गोलोक वासी हो गये, उनके जाने के कुछ ही दिनों बाद मां का भी देहांत हो गया इधर रिद्धिमा मायके आने के कुछ दिनों बाद खुद वो नौकरी करने लगी. पढ़ी लिखी थी सो मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत हो गई बच्चों की परवरिश अच्छे से करने लगी ऐसे ही शैन: शैन: जिंदगी चल रही थी कुछ दिन पहले ही एक आंटी आई थी रिद्धिमा के ससुराल से उन्हीं से पता चला कि मंजरी एक साल पहले ही शिशीर को छोड़ कर निखिल (शिशीर का दोस्त) के साथ चली गई वो भी अच्छे पद पर कार्यरत था उसकी बीवी से तलाक हो चुका था शिशीर के मां बाप दोनों का देहांत हो चुका था रिद्धिमा गई भी थी, फिर तुरंत लौट आई थी, तब से कोई खबर नहीं मिली. नहीं रिद्धिमा को चाहिए थी, पता नहीं क्या सोच कर आज तीन साल बाद शिशीर आया था रिद्धिमा का पता उसने उसके माता-पिता से लिया था एक साल पहले ही, पर आया नहीं था पर आज शिशीर आया था बहुत मिन्नतें किया माफी मांगा पर रिद्धिमा जैसे बुत हो चुकी थी शिशीर के प्रति कोई भावना ही नहीं थी, उसने एक शब्द भी शिशीर से नहीं बोला शिशीर बोलता ही जा रहा था- एक बार और मौका दे दो प्लीज़ बहुत रोया पर रिद्धिमा जड़ बन चुकी है उसे देखकर बस उसका वही चेहरा सामने आता जैसे उसके कान में ये ही शब्द हमेशा गुंजता कि हां हां... मैं किसी भी हालत में तुम्हारे साथ नहीं रह सकता अपने साथ अपने बच्चों को जरुर लेती जाना, और फिर कभी इधर का रुख मत करना, रिद्धिमा स्वाभिमानी लड़की थी स्वाभिमान के साथ साथ विश्वासघात भी हुआ था वो कभी भूल नहीं पाती थी. इन तीन सालों में वो कई बार टूटी बिखरी और फिर हिम्मत कर खड़ी हुई थी अब वो बहुत बदल गई थी उसे सहारा चाहिए नहीं अब वो अपने मां बाप और बच्चों का सहारा बन गई थी. शिशीर लौट गया, बस रिद्धिमा यही बैठ गई एकाएक गाड़ी का हार्न बजा वो तुरंत खड़ी हुई देखा मां-पापा को लेकर मामा के साथ जूही, और रौनक (उसके बच्चे) आ गये सब खुश हो गये एक दुसरे से मिलकर।
रंजना पांडेय मुक्ता
मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश
What's Your Reaction?






