Hindi Stories | अंहकार

नागपुर शहर में एक महान चित्रकार संजीत रहता है। उसका नाम दूर-दूर तक मशहूर है। जब भी आर्ट गैलरी में उसकी चित्रकारी की प्रदर्शनी लगती, उसकी चित्रकारी को देखकर लोग दंग रह जाते और उसकी तारीफ करते नहीं थकते। धीरे-धीरे, संजीत को अपनी कृतियों पर गर्व होने लगा। उसने सोचा कि उसके जैसा कोई और नहीं है। एक बार आर्ट गैलरी वालों ने नागपुर शहर के आस-पास जितने भी चित्रकार हैं

Sep 1, 2024 - 16:00
Sep 5, 2024 - 14:40
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Hindi Stories  | अंहकार
Ego

नागपुर शहर में एक महान चित्रकार संजीत रहता है। उसका नाम दूर-दूर तक मशहूर है। जब भी आर्ट गैलरी में उसकी चित्रकारी की प्रदर्शनी लगती, उसकी चित्रकारी को देखकर लोग दंग रह जाते और उसकी तारीफ करते नहीं थकते। धीरे-धीरे, संजीत को अपनी कृतियों पर गर्व होने लगा। उसने सोचा कि उसके जैसा कोई और नहीं है। एक बार आर्ट गैलरी वालों ने नागपुर शहर के आस-पास जितने भी चित्रकार हैं उन सबकी एक साथ चित्रकारी प्रतियोगिता कराने की घोषणा की, जिसमें उन चित्रकारों को भी भाग लेने को कहा गया जो आज की तारीख में एक भूले बिसरे नाम है।

जब संजीत को इस प्रतियोगिता की जानकारी हुई तो उसे यकीन था कि वहीं इस प्रतियोगिता को जीतेगा। एक नरम दिल वृद्ध चित्रकार, शशांक, जो कि पास के शहर के है उन्हें भी इस प्रतियोगिता की जानकारी हुई तो उन्होंने भी इस प्रतियोगिता में भाग लेने का सोचा। एक वक़्त में उनकी चित्रकारी बहुत प्रसिद्ध हुई थी पर किन्ही कारणों से आजकल उन्होंने चित्रकारी से दूरी बना ली है।धीरे-धीरे प्रतियोगिता का दिन आ गया, सभी चित्रकारों ने आर्ट गैलरी में एकत्र होना शुरू किया। जब वहां शशांक आए तो वह बेहद विनम्र और शांत रहे। लोगों ने उनकी सादगी को देखकर सोचा कि वह शायद प्रतियोगिता में जीत नहीं पाएंगे। वहां सभी उपस्थित चित्रकारों को देखकर संजीत ने सोचा, ‘मैं उन सब से बेहतर हूँ। मुझे कोई चुनौती देने की ज़रूरत नहीं।'

जैसे ही प्रतियोगिता शुरू हुई उन सबको एक विषय दिया गया और उसमें उन सबको चित्रकारी के लिए निर्धारित समय दिया गया। सबने अपनी-अपनी चित्रकारी बनाया और उसका प्रदर्शन किया। 
संजीत ने अपनी बेहतरीन चित्रकारी बनाई है और उसे पूरा विश्वास है कि वही जीत जाएगा। लेकिन जब शशांक की बारी आई, तो सभी ने उसकी आँखों में अद्वितीय चमक देखी और उस की चित्रकारी ने ऐसा जीवंत प्रभाव डाला कि लोग मंत्रमुग्ध हो गए।

जजों ने निर्णय सुनाया और शशांक की चित्रकारी ने पहला स्थान प्राप्त कर लिया। यह सुनकर संजीत को धक्का लगा। उसका अहंकार चूर-चूर हो गया। वह शशांक के पास गया और कहा, ‘आपकी चित्रकारी अद्भुत है। आपने मुझे सिखाया कि सच्ची कला का मूल्य अहंकार से नहीं, बल्कि समर्पण और भाव से होता है।' शशांक मुस्कुराए और बोले, ‘कला का मर्म समझकर ही हम उसे साकार कर सकते हैं। जब तक अहंकार रहेगा, हम सच्चे कलाकार नहीं बन सकते।'
इस घटना के बाद, संजीत ने अपने अहंकार को त्याग दिया और विनम्रता से अपनी कला को आगे बढ़ाने का प्रण किया। वह समझ गया कि सच्ची कला भावनाओं और समर्पण से ही निकलती है, न कि अंहकार से।

अंजना गोमास्ता

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