wounded soldier : घायल सैनिक

This is the true and emotional story of BSF soldier Saleem, who lost his leg in a brave fight against terrorists. A tale of patriotism, personal sacrifice, and human resilience that will move your heart. कल ही तो उसके गाँव से खत आया है उसका निकाह तय हो गया है, लेकिन छुट्टी कब मिलेगी, वही जानकारी घर वालों को अपने के खत के व्दारा देनी थी जिससे निकाह की तिथि तय किया जा सके। सलीम बार- बार खत को पढ़ता है, और खत को तकिया के नीचे दबा देता है। वह ऊपर वाले को याद करते हुए जल्दी ठीक हो जाने का इन्तजार करता है।

Jul 8, 2025 - 14:05
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wounded soldier  : घायल सैनिक
wounded soldier

wounded soldier : सीमा सुरक्षा बल का जबाज सैनिक सलीम सैनिक अस्पताल में अपने पैर का इलाज करा रहा था। सप्ताह भर पहले सलीम आंतकवादियों से मुकबला करते समय घायल हो गया था उसके पैर में कई गोली लगी थी, डॉक्टर संजय कपूर उसके पैर का इलाज कर रहे थे, वे समझ गये थे कि सलीम का पैर काटना पड़ेगा।
सैनिक अस्पताल में उस वार्ड में घायल सैनिकों का इलाज चल रहा था। 

रोजना की तरह सफाई कर्मचारी साफ-सफाई में व्यस्त थे। नर्स स्टाफ घायल सैनिकों के दवाईयां और इंजेक्शन दे रही थीं, दूसरी ओर डॉक्टर रिपोर्ट देख रहे थें। डॉक्टर संजय कपूर सलीम को देखते हुए , तमाम रिपोर्ट चेक करते हुए आगे बढ़ गए।  
थोड़ी देर बाद नर्स आती है, वह अपनी चिर परिचित मुस्कान बिखेर देती है। सलीम आशा भरी निगाहों से नर्स से पूछ लेता है, ‘सिस्टर मेरा पैर कब तक ठीक हो जायेगा' लेकिन इसका जबाब तो नर्स के पास नहीं था। वह सलीम की ओर आशा भरी निगाहों से देखते हुए बोली, ‘इसका जबाब तो डॉक्टर साहब ही दे सकते हैं'। वह सप्ताह भर पहले ही आंतकवादियों के नापाक इरादे को ध्वस्त करते हुए घायल हो गया था। वह रात भर जग कर अपने कर्तव्य का पालन बहादुरी के साथ कर रहा था। लेकिन वह अब घायल शेर की तरह अस्पताल में पड़ा था, सलीम अपनी दशा पर मजबूर था, वह बार - बार यही सोच रहा था कि यदि वह घायल नहीं होता तो सरहद पर होता। 

कल ही तो उसके गाँव से खत आया है उसका निकाह तय हो गया है, लेकिन छुट्टी कब मिलेगी, वही जानकारी घर वालों को अपने खत के व्दारा देनी थी जिससे निकाह की तिथि तय किया जा सके। सलीम बार- बार खत को पढ़ता है, और खत को तकिया के नीचे दबा देता है। वह ऊपर वाले को याद करते हुए जल्दी ठीक हो जाने का इन्तजार करता है। 

डॉक्टर संजय कपूर सलीम के पैर का निरीक्षण कर अपना रिपोर्ट बना रहे थे। डॉक्टर साहब सलीम से बताने का साहस नहीं कर पा रहे थे कि उसके पैर का क्या होगा? इसी बीच सलीम ने डॉक्टर साहब से मिलने की इच्छा नर्स से किया। कुछ देर के बाद डॉक्टर साहब सलीम के सामने आकर बोले, ‘सलीम तुम बहुत चिंताग्रस्त दिखाई दे रहे हो। सलीम ने डॉक्टर संजय कपूर को बताया कि ‘डॉक्टर साहब गाँव से खत आया है मेरा निकाह होना है यहाँ से कब छुट्टी होगी इसका जवाब घर वालों को देना है’। लेकिन डॉक्टर संजय कपूर सलीम से उसके पैरों के विषय कुछ बताने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। कुछ सोचते हुए डॉक्टर साहब ने बताया ‘सलीम हम लोग पूरी तरह कोशिश में है लेकिन सब कुछ तो ऊपर वाले की मर्जी पर है। 
डॉक्टर साहब के कोई ठोस जबाब नहीं था, वह उधेड़बुन में लगा रहा, अल्लाह को याद करते हुए अपने बचपन के स्मृतियों में खो गया। अब उसकी बचपन की तमाम स्मृतियाँ सिनेमा के तरह घूम रही थीं, जब वह गाँव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने जाया करता था, अपने मित्रों के साथ खेला करता था। जब कभी गाँव में रामलीला वाले आते थे। घर वालों से जिद्द करके अपने बाल सखा प्रदीप और शिवनाथ के साथ देखने रामलीला देखने जाया करता था। दूसरे दिन रामलीला के बारे में अपने अब्बा से बातचीत कर आत्म विभोर हो जाया करता था।

 एक दिन सलीम ने अपने अब्बा जान से प्रश्न किया ‘अब्बा प्रदीप और शिवनाथ राम की बातें करते हैं और हम लोग अल्लाह की बातें करते हैं। उसके अब्बा समझाया, ‘सलीम बेटे हमलोग मुसलमान हैं, अल्लाह की इबादत करते हैं, तुम्हारे मित्र हिन्दू हैं वे लोग भगवान का पूजा करते हैं'। सलीम को हिंदुओं के त्यौहार अच्छा लगता है। होलिका दहन के समय लकड़ियाँ एकत्रित करता है, होली खेलता है, उनके घर जाकर पकवान खाता है होली के हुड़दंग सम्मिलित हो जाता है। सलीम के मित्र ईद की सेवइयां खाते हैं। 

अब सलीम घायल शेर की तरह सैनिक अस्पताल में पड़ा  अपने पैर का ईलाज करा रहा है। अकेलेपन में गाँव की याद आती है, उसे अपने निकाह का समाचार पढकर रोमांचित भी हो जा रहा है, फिर खत को तकिये के नीचे दबा देता है। फिर से अपने बचपन के स्मृतियों में खो जाता है। 
उन दिनों वह दसवीं कक्षा का विद्यार्थी था जब कभी स्कूल में नाटक होते, उसमें वह बढ़-चढ़ कर भाग लेता। उसके स्कूल में क्रांतिकारियों पर नाटक की तैयारी चल रही थी, उस नाटक में उसे अशफाक उल्ला की मिली, वह अपने भूमिका को लेकर बहुत गम्भीर था। देश भक्ति की ज्वाला उसके अतः करण में अच्छी तरह से बैठ गयी। उसने संकल्प ले लिया कि वह बड़ें होकर सेना में भर्ती होगा। क्रांतिकारियों के नाटक में अशफाक उल्ला की भूमिका उसके किशोर मन में देश भक्ति का जुनून भर दिया था। वह क्रांतिकारियों को बार- बार याद जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए फांसी के फंदे झूल गये, गोलियां खायी और जेल गये अपने लहू को जननी जन्म भूमि के लिए अर्पित कर दिये थे। अब वह सेना में भर्ती होने का निश्चय कर लिया।

उसके गाँव में थलसेना से सेवा निवृत्त बाबू हरिश्चन्द्र सिंह के विषय में सुना था की वे सेना में थे। एक दिन वह हरिशचंद्र जी से मिलने के लिए उनके घर की ओर चल पड़ा। हरिशचंद्र जी देखकर सलीम ने उनको प्रणाम किया, फिर हरिशचंद्र जी ने उसका जवाब दिया और बोले, ‘सलीम क्या बात है, तुम्हारा तो अशफाक उल्ला की भूमिका बहुत अच्छा लगा। अपनी प्रशंसा सुनकर उसका मनोबल बढ़ गया। सलीम ने कहा, ‘चाचा मै सेना में भर्ती होना चाहता हूं ' हरिशचंद्र जी ने उसके मनोबल को बढ़ाते हुए कहा, ‘देश को तुम्हारे जैसे युवा की जरूरत है। हमारे क्रांतिकारियों ने देश को आजाद करा दिया, लेकिन सीमा पर हमारे सैनिक देश की सुरक्षा के लिए तैनात हैं। सलीम बेटे तुम सेना में भर्ती होना ये तो तुम्हारी बहुत अच्छी सोच है हमसे जो भी मदद चाहिए मैं करूँगा '। 
एक दिन सलीम ने अपने अब्बा से सेना में भर्ती होने इच्छा प्रकट किया। उसके अब्बा हतप्रभ हो गये, समझाने का प्रयास किये लेकिन सलीम अडिग रहा। उसकी अम्मा ने बहुत समझाने की कोशिश किया, किन्तु अपने पर जिद्द कायम रहा। घरवालों की मौन स्वीकृति मिल गयी। एक दिन वह सेना में भर्ती हो गया।

संध्या का समय घायल सैनिकों के डॉक्टर संजय कपूर अपने जूनियर डॉक्टर के साथ सलीम के पास पहुंचे। घायल सैनिक सलीम ने हाथ उठा कर डॉक्टर साहब का अभिवादन किया, अब्बा के खत के विषय बताया- ‘डॉक्टर साहब मेरे निकाह के विषय में अब्बा का खत आया है। खत के बारे में पहले भी चर्चा कर चुका हूँ मुझे खत का जबाब देना है, अभी तक घर वाले को नहीं बताया हूँ कि मैं अस्पताल में भर्ती हूँ, मेरा पैर कब तक ठीक हो.....। 
डॉक्टर संजय कपूर न जाने कितने ही घायल सैनिकों का ईलाज कर चुके थे लेकिन इस तरह की घटना का सामना नहीं करना पड़ा था।  उस घायल सैनिक को कैसे बतलाते कि उसका पैर काटना पडेग़ा, अब उसे बैसाखी पर चलना पड़ेगा.
इस कटु सत्य को किन शब्दों में बताया जा सकता है, उस घायल सैनिक के आशा और विश्वास को कितना गहरा ठेस लगेगा, उसके घर वाले उसके निकाह की तैयारी में लगे हैं। 

डॉक्टर संजय कपूर अपना निरीक्षण कार्य अपने जूनियर डॉक्टर को‌ सौंप कर अपने कक्ष में जाकर बैठ गये। घायल सैनिक सलीम का प्रश्न उन्हें मर्माहत कर दिया था, वे उसे कैसे बतलाते कि उसका एक पैर काटना पड़ेगा। जिसके घर से निकाह के लिए खत आया हो भावी वैवाहिक जीने की लालसा कितना उत्साहित है। उसे क्या मालूम कि उसे अपने भावी जीवन में बैसाखी के सहारे चलना पड़ेगा.
सत्य तो यही है कि उसकी आशाएं सपने की तरह बिखर जायेगा। इस कटु सत्य को किन शब्दों में बताया जा सकता है, लेकिन इसे कब तक छिपाया जा सकता है? सत्य यही है कि उसके जख्मी पैर को काटना पड़ेगा। उसके घर वाले उसके निकाह की तैयारी कर रहे हैं। डॉक्टर संजय कपूर सलीम से इस सच्चाई को बताने का साहस नहीं जूटा पा रहे थे। 

थोड़ी देर में नर्स सलीम को इंजेक्शन लगाने के लिए आ गयी, सलीम ने नर्स से पूछा सिस्टर मुझे कब तक मेरा पैर ठीक हो जायेगा, लेकिन नर्स के चेहरे पर मुस्कान नहीं दया का भाव थे वह भी बताने का साहस नहीं जूटा पा रही थी। नर्स तेजी से आगे बढ़ गयी। 
डॉक्टर साहब और नर्स के भाव भंगिमा से सलीम को अब विश्वास होने लगा था कि अब उसका जख्मी पैर ठीक नहीं हो सकता है्। उसको ऐसा होने लगा कि अचानक पेड़ से चढ़ा और पेड़ से गिर गया हो।  उसको यह लगने लगा था कि उसकी समस्त कामनाएं हवा के झोकों से उड़ गयी हो। सिसक-सिसक कर रोने लगा। उस वार्ड के नर्स और मरीज उसे समझाने की कोशिश करने लगे। अपने भयानक को लेकर उसका उत्साह ध्वस्त हो गया।  
सलीम जाबांज सैनिक था, उसमें साहस कमी नहीं थी उसने अपने आप को सम्हाल लिया उसको लगने लगा था कि कोई बात नहीं  उसने तो देश की सुरक्षा के अपने पैर की आहूति दिया दिया है। हमारे क्रांतिकारियों ने तो गोली खाई और फांसी पर झूल गये। अब उसके मन में नया आत्म विश्वास का संचार हो गया। 
संध्या का समय सलीम अस्पताल में अकेलेपन का महसूस कर रहा था, वह अपने भविष्य के उधेड़बुन में लगा था। उसके सैनिक मित्र रविकान्त और बलवंत सिंह मिलने के लिए आ गये। खामोशी को तोड़ते हुए बलवंत सिंह बातचीत का सिलसिला शुरू किया, सलीम तुम्हारा पैर कब तक सही हो जायेगा? 
सलीम सहम कर बोला, खूदा, जाने क्या होगा? रविकान्त ने समझाते हुए कहा, ‘ऐसी क्या बात है जिससे घबराये हुए हो '। सलीम ने घबराये स्वर में धीरे से बोला, ‘लगता है मेरा पैर ठीक नहीं हो होगा, मेरा जख्मी पैर ...
बलवंत सिंह और रविकान्त घायल सैनिक सलीम की बातें सुन कर हतप्रभ हो गये, वे क्या मदद कर सकते थे, सहानुभूति के अतिरिक्त जिस पर गुजरती है वही जानता है। रविकान्त ने सलीम के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘सलीम आप का फोन नंबर क्या है? घर बता देते हैं।  सलीम मना करते हुए बोला, ‘नहीं रविकान्त अब तो हमेशा-हमेशा के लिए घर ही जाना है। 

सुबह-सुबह सैनिक अस्पताल में रोजाना की तरह चल रहा था आज उस घायल सैनिक सलीम का जख्मी पैर कट जायेगा। वह जननी जन्मभूमि के लिए अपना एक पैर अर्पित कर देगा, लेकिन इस बात से दुखी था कि अब वह देश के सरहद की सुरक्षा के दायित्व से वंचित हो जायेगा। कुछ देर बाद अस्पताल का स्टाफ उसे आपरेशन कक्ष में लेने के लिए आ गये, जिससे उसका जख्मी पैर काटा जा सके।
कुछ दिनों बाद पैर का घाव सूख गया, उसे अस्पताल से छुट्टी  कर दिया गया है। डॉक्टर संजय कपूर और अस्पताल का स्टाफ  विदाई के दिन घायल सैनिक सलीम का स्वागत किया और सम्मान  किया गया। 

सलीम अपने मित्र रविकान्त के साथ साथ रेल और बस से यात्रा करते हुए अपने गाँव की ओर चल पड़ा। बस से उतर सलीम और रविकान्त गाँव की ओर चल पड़ा। रास्ते में उस बाग-बगीचे देखते चला जा रहा था। अब गाँव में यह खबर फैल गई। सलीम गाँव आ रहा है बच्चों के झुंड रिक्शा के पीछे दौड़ते चले आ रहा थे। एकाएक रिक्शा सलीम के घर के सामने रुक गया। 
सलीम का आना सुनकर घर से निकल कर बाहर आ गये लेकिन सलीम बैसाखी के सहारे रिक्शे से नीचे उतरा। सलीम की दशा देखकर घर का माहौल गमगिन हो गया। उसकी अम्मा चिल्ला -चिल्लाकर कर रोने लगी, पिता के आंसू थम नहीं रहे थे, चारों ओर एक ही एक आवाज गूंज रही ‘सलीम यह क्या हो गया '। 
किन्तु, सलीम के चेहरे पर आत्मविश्वास झलक रहा था।

 शिवमंगल सिंह
 भिलाई दुर्ग, छत्तीसगढ़

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