Hindi Poetry | मैं डरती हूँ
मैं डरती हूँ अपनी उधेड़बुन मंहगी डायरियों में दर्ज करने से किसी भरोसे को तोड़ने से इस धरती पर बदरंग दुनिया खड़ी करने में हाथ होने से
मैं डरती हूँ
अपनी उधेड़बुन मंहगी डायरियों में दर्ज करने से
किसी भरोसे को तोड़ने से
इस धरती पर बदरंग दुनिया खड़ी करने में हाथ होने से
मैं डरती हूँ
जीवन के बीहड़ जंगल में खो जाने से
मुझे वहाँ न ले जाए कोई ;जहाँ
मेरे पसीने से कोई फूल ना मुस्कुराता हो
कोई खुश्बू मेरी सांसों में ना उतरे
मैं डरती हूँ
उस तरह मर जाने से
जब मेरे कुलबुलाते कड़वे सच ,मेरी बेचैनियाँ और
जिंदा रहने के सवालों के जलते जवाब
एक दिन समीक्षाओं के लिए
चुनें जाएंगे!
चुनें जाएंगे
किसी संघर्ष के जीवन से तौलते
और जब भीतर उपजे भय और पलायन के
दलदल में धंसते जाते हुए
किसी काफ़िले की आवाज़ आएगी ; बेसाख़्ता
किसी पुरस्कार के लिए!
पूजा चौधरी
What's Your Reaction?