भारतीय मूल की बेटी ने अंतरिक्ष में फिर रचा इतिहास

यह मिशन मात्र एक सप्ताह के लिए था, लेकिन अंतरिक्ष यान में हीलियम रिसाव और वेग में कमी जैसी तकनीकी दिक्कतों के कारण उनका प्रवास नौ महीने तक बढ़ गया। अंततः स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान ने १७ घंटे की यात्रा पूरी कर १९ मार्च की सुबह ३:२७ बजे फ्लोरिडा के तट के पास सफलतापूर्वक स्पलैशडाउन किया। सुनीता विलियम्स सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि संघर्ष, समर्पण और सफलता की जीवंत कहानी हैं। उनके पिता डॉ. दीपक पंडया मूल रूप से गुजरात के झुलासण गांव से थे।

May 31, 2025 - 18:53
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भारतीय मूल की बेटी ने अंतरिक्ष में फिर रचा इतिहास
Indian-origin daughter again created history in space

मैं खगोलशास्त्री तो नहीं, न ही कभी किसी खगोल वैज्ञानिक से रूबरू होने का अवसर मिला है, लेकिन समाचार पत्रों और चैनलों से अंतरिक्ष विज्ञान को थोड़ा बहुत समझने का मौका जरूर मिलता रहा है। हाल ही में एक ऐसी घटना घटी, जिसने अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक नई उपलब्धि जोड़ दी। भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और उनके सहयोगी बुच विलमोर नौ महीने तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (घ्एए) में रहने के बाद सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौट आए। यह मिशन मात्र एक सप्ताह के लिए था, लेकिन अंतरिक्ष यान में हीलियम रिसाव और वेग में कमी जैसी तकनीकी दिक्कतों के कारण उनका प्रवास नौ महीने तक बढ़ गया। अंततः स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान ने १७ घंटे की यात्रा पूरी कर १९ मार्च की सुबह ३:२७ बजे फ्लोरिडा के तट के पास सफलतापूर्वक स्पलैशडाउन किया।
सुनीता विलियम्स सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि संघर्ष, समर्पण और सफलता की जीवंत कहानी हैं। उनके पिता डॉ. दीपक पंडया मूल रूप से गुजरात के झुलासण गांव से थे। शायद उन्होंने भी कभी नहीं सोचा होगा कि उनकी बेटी एक दिन अंतरिक्ष में ३०० से अधिक दिन बिताने वाली दुनिया की सबसे अनुभवी स्पेसवॉकर्स में शामिल होगी खैर...। हमें गर्वान्वित होने का पल मिला। सुनीता ने अपनी मेहनत से वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में खास पहचान बनाई। इससे पहले उन्होंने २००६ और २०१२ के अभियानों में कुल ३२१ दिन अंतरिक्ष में बिताए और दुनिया की सबसे अनुभवी स्पेसवॉकर्स में शामिल हो गईं। उनके इस अतुलनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया।
कल्पना करें कि २८,००० किमी प्रति घंटे की गति से अंतरिक्ष में घूम रहे यान के साथ तालमेल बिठाते हुए एक और यान भेजना, उससे जुड़ना और यात्रियों को सुरक्षित वापस लाना कितना चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह विज्ञान की असाधारण सफलता है, जो अंतरिक्ष अभियानों की जटिलता और भविष्य की संभावनाओं को दर्शाती है। इसरो, नासा और स्पेसएक्स जैसी अंतरिक्ष एजेंसियां लगातार नए आयाम छू रही हैं, ताकि भविष्य में चंद्रमा और मंगल जैसे ग्रहों पर मानव मिशन संभव हो सके। यह मिशन सिर्फ एक अंतरिक्ष यात्रा नहीं था, बल्कि इस बात का प्रमाण है कि अंतरिक्ष विज्ञान की संभावनाएं असीमित हैं। यह सफलता दिखाती है कि तकनीकी चुनौतियों के बावजूद विज्ञान सीमाओं को लांघने के लिए तैयार है। हम उस दिन से अधिक दूर नहीं जब मनुष्य सौर मंडल के अन्य ग्रहों पर भी अपने कदम रखेगा और अंतरिक्ष में स्थायी बस्तियां बसाने की दिशा में आगे बढ़ेगा। भारतीय मुल की यह बेटी अंतरिक्ष की दुनिया में अपना झंडा गाड़ चुकी है, इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए सुनीता विलियम्स और विज्ञान को सलाम करता हूँ।

त्रिभुवन लाल साहू
छत्तीसगढ़

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