रवि की रश्मि

This is a heartfelt love story of Ravi and Rashmi—starting from silent admiration, emotional connection, and ending in a long-awaited confession. Is every silence hiding a love story? अगले दिन भी रश्मि जब कॉलेज नही आयी तो रवि बुरी आशंका से ग्रस्त हो सोचने लगा क्या हुआ होगा रश्मि को? एक मन कहता तेरा क्या रिश्ता है रश्मि से जो इतना उसके बारे में सोच रहा है? हाँ, रिश्ता तो कोई नहीं, पर मन घूम फिरकर रश्मि पर ही आ जाता। आखिर रवि ने रश्मि के घर जाने का निर्णय ले लिया। उसने सोचा वहीं जाकर वस्तुस्थिति से अवगत हुआ जा सकेगा। संकोच और उत्कंठा से झुझता रवि कॉलेज के बाद रश्मि के घर पहुंच ही गया।

Jul 8, 2025 - 15:59
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रवि की रश्मि
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परेशान-सा रवि कभी अपनी किताब को देखता तो कभी दरवाजे को। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि रश्मि आज कॉलेज क्यूँ नहीं आयी?
यूँ तो रवि और रश्मि की एक ही क्लास में होते हुए भी कभी एक दूसरे से बात ही नहीं हुई थी, वो तो रवि ही क्लास रूम में अपनी सीट पर बैठ-बैठे अपने से आगे बैठती रश्मि को बस निहारा ही करता। उससे बात करने की हिम्मत उसको हुई ही नहीं। बस इतना सा ही सम्बन्ध था रवि रश्मि में। रवि को तो ये भी पता नहीं था कि रश्मि क्या इतना भी जानती है कि क्लास के ४० विद्यार्थियों में रवि भी है?
रवि बा-बार दरवाजे की ओर देखते हुए सोच रहा था कि वो रश्मि के न आने से इतना बेचैन क्यों है? ये आकर्षण क्यों बढ़ता जा रहा है? अपनी इस स्थिति को उसने कभी अपने मित्रों से भी शेयर नहीं किया था। आखिर एक तरफा आकर्षण को वो क्या नाम देकर मित्रों से कहे। बस चुप-चाप प्रतिदिन रश्मि को देख कर ही रवि आत्म संतुष्टि प्राप्त करता रहता।

रवि के पिता का देहांत दो वर्ष पूर्व हो गया था, उनके एवज में ही माँ को क्लर्क की नौकरी मिल गयी थी। माँ के वेतन से ही घर खर्च चल रहा था। एक सामान्य छोटा-सा माँ बेटे का परिवार था। स्वभाविक रूप से मां की आशा की किरण रवि ही था।
अगले दिन भी रश्मि जब कॉलेज नहीं आयी तो रवि बुरी आशंका से ग्रस्त हो सोचने लगा क्या हुआ होगा रश्मि को? एक मन कहता तेरा क्या रिश्ता है रश्मि से जो इतना उसके बारे में सोच रहा है? हाँ, रिश्ता तो कोई नहीं, पर मन घूम फिरकर रश्मि पर ही आ जाता। आखिर रवि ने रश्मि के घर जाने का निर्णय ले लिया। उसने सोचा वहईं जाकर वस्तुस्थिति से अवगत हुआ जा सकेगा। संकोच और उत्कंठा से जूझता रवि कॉलेज के बाद रश्मि के घर पहुंच ही गया। घर का दरवाजा रश्मि के पिता ने ही खोला और अनजान लड़के यानि रवि की ओर प्रश्नभरी निगाहों से देखा। रवि ने अपने को संभाला और बोला अंकल मैं रवि, रश्मि की क्लास में ही हूँ। अंकल दो दिन से रश्मि कॉलेज नहीं  आ रही है ना, सब चिंतित थे, मैं इसी कारण उसके बारे में जानने आया हूँ।
ओह, आओ बेटा, आओ, रश्मि को बुखार है, इसलिये नहीं गयी। ऐसा करो बेटा, वो सामने वाले कमरे में रश्मि लेटी है, तुम वहीं चले जाओ, उसका मन भी बहल जायेगा, मैं वहीं चाय भिजवाता हूँ। अंकल चाय की कोई आवश्यकता नहीं। अरे बेटा तुम रश्मि से मिलो तो।
रवि बड़े ही असमंजस की स्थिति में रश्मि के कमरे की ओर बढ़ा, उसे नहीं पता था, रश्मि कैसे रिएक्ट करेगी, पहले कभी उससे हाय हेलो तक नहीं हुई थी, उसका नाम तक भी रश्मि को शायद ही पता हो। लेकिन अब तो वो आ ही गया था,सो रश्मि के कमरे में उसने आखिर प्रवेश कर ही लिया।
हैल्लो, रश्मि मैं रवि, हम एक ही क्लास में पढ़ते हैं, शायद तुम मुझे नहीं पहचानती होगी।


नहीं ऐसा नहीं है मैंने तुम्हें क्लास में देखा है, हाँ नाम नहीं जानती थी, वो अभी पता चला।
असल में रश्मि तुम दो दिन से कॉलेज नहीं आई तो सभी चिंता कर रहे थे, इसी कारण मैं तुम्हारी खैर खबर लेने चला आया।
एकाएक रश्मि खिलखिलाकर हंस पड़ी और बोली ये मैं कब से इतनी पॉपुलर हो गयी जो सब मेरी चिंता कर रहे थे।
रश्मि को हँसते देख रवि तो बस देखता रह गया कितनी सुंदर और मासूम सी लग रही थी,रश्मि।
इतने में मेड चाय रखने आ गयी। बात का सिलसिला रुक गया। फिर रवि बोला रश्मि जल्दी से ठीक हो जाओ, तुम्हारे बिना कॉलेज में रौनक नही रहती।
तभी रश्मि के पिता आये और बोले बेटा आज दो दिन बाद रश्मि के चेहरे पर मुस्कान देखी है, कभी कभी आते रहना।
जरूर अंकल। कहकर रवि ने रश्मि और उसके पिता से विदा ली। इस घटना के बाद रवि और रश्मि आपस मे खुल गये थे और जब समय मिलता आपस में बातचीत भी करते और कभी कभी कैंटीन में चाय भी पीने चले जाते।

अब रवि को लगने लगा था कि वो रश्मि के बिना अधूरा-सा है। रवि को नहीं पता था कि क्या इसे ही प्यार कहते हैं? रवि रश्मि ने कभी भी एक-दूसरे से अपने प्रेम का इजहार किया ही नहीं। असल मे एक दूसरे के प्रति आकर्षण को कोई नाम देने की उनकी न तो उम्र थी और न समझ। कॉलेज की पढ़ाई पूरी होते ही रश्मि के पिता ने रश्मि को मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिये विदेश भेज दिया तो रवि ने एक इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूट में अपने नगर में ही दाखिला ले लिया। रवि रश्मि की कभी-कभी बात होती रहती, एक दूसरे की पढ़ाई के बारे में या फिर भविष्य की योजना के बारे में।
एक समय ऐसा आया जब रश्मि अपनी स्टडी पूरी कर भारत वापस आ रही थी, चहक कर मोबाइल पर बता रही थी रश्मि। फिर अचानक रश्मि की आवाज धीमी हो गयी और बोली रवि मेरे पिता मेरे आने के दिन अपने बिज़नेस टूर पर हैं वो एयरपोर्ट नहीं आ पायेंगे, क्या तुम आओगे?
तुम्हें क्या लगता है रश्मि? रवि बोला
यही की तुम जरूर आओगे।

आखिर रश्मि के आने का दिन आ ही गया, पूरे दो घंटे पहले ही रवि एयरपोर्ट पहुंच गया था। फ्लाइट समय से थी, सब औपचारिकता पूरी कर रश्मि जैसे ही एयरपोर्ट से बाहर आयी, लपककर रवि रश्मि के पास पहुंच गया। कितना बदल गयी थी रश्मि, खूब सुंदर और परिपक्व। रवि उसके सामने अपने को हीन सा ही समझ रहा था।
रवि ने रश्मि को उसके घर पहुंचा कर वापस चलने की अनुमति मांगी तो रश्मि बोली रवि तुम जरा भी नही बदले।
क्या उत्तर देता रवि?
रश्मि ही बोली रवि एक बात बताओ मेरा तुम्हारा रिश्ता क्या है?
रवि चुप ही रहा।
रश्मि ही फिर बोली रवि क्या तुम आज भी मुझे प्रोपोज़ नहीं कर सकते?
यह सुन रवि अवाव-सा रश्मि को देखता ही रह गया, आंखों में पानी लिये रश्मि की ओर जैसे ही रवि बढ़ा, रश्मि खुद आगे बढ़ उसकी बाहों में समा गयी। रवि बोला रश्मि मुझे कहना ही नहीं आता।

बालेश्वर गुप्ता
नोयडा

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