फेकूलाल का पुनर्जीवन
तुम्हीं भी कुछ आधुनिकीकरण हो चुका था। अदालत में यमराज, धर्मराज कीे श्वेत वेषभूषा में अपने आसन पर आसीन थे। उनकी डबल ड्यूटी थी। नर्क का निरीक्षण वे यमराज के रूप में करते थे। यमदूतों और स्वर्गदूतों अर्थात पुलिस और केन्द्रीय एजेंसी दोनों ने संयुक्त रूप से आसामी फेकूलाल को पेश किया। चित्रगुप्त ने फाइल खोली।

बेचारे फेकूलाल मदारी की मौत हो गई।
यमदूत फाइव जी की गति से आए। यमदूत टीम में अपने नारायना को देख कर फेकूलाल चकरा गया। नारायना उसका पुराना जमूरा था। जिसकी मौत दस साल पहले चालीस प्रतिशत बीमारी और साठ प्रतिशत गरीबी के कारण हो गई थी।
‘अरे नारायना, तू!’ फेकूलाल के मुख से हठात् निकला।
फौरन दृश्य बदल गया। महापापी अजामिल ने भी मरते समय बिना सोचे समझे अपने पुत्र नारायण को पुकार लिया था। तब भी भगवान ने उसकी फाइल दबा कर उसे स्वर्ग दिया था। अब भी वही हुआ। स्वर्गदूत सेवन जी की गति से आ गए। यमदूतों ने फेकू की एक बाँह पकड़ रखी थी, स्वर्गदूतों ने दूसरी पकड़ ली। बोले- ‘अब यह हमारा आसामी है।’
फेकू झल्लाया- ‘छोड़ो, छोड़ो मेरी बाँह! मैं चल तो रहा हूँ।’
यमदूतों ने अपने परवाने की जाँच की। सही तो है। धरती पर दो थानो की पुलिस इस बात पर लड़ती थी कि केस हमारे थाने की सीमा का है या बगल वाले का।
तुम्हीं भी कुछ आधुनिकीकरण हो चुका था। अदालत में यमराज, धर्मराज कीे श्वेत वेषभूषा में अपने आसन पर आसीन थे। उनकी डबल ड्यूटी थी। नर्क का निरीक्षण वे यमराज के रूप में करते थे। यमदूतों और स्वर्गदूतों अर्थात पुलिस और केन्द्रीय एजेंसी दोनों ने संयुक्त रूप से आसामी फेकूलाल को पेश किया। चित्रगुप्त ने फाइल खोली। पूछा-
`तुम्हीं फेकूलाल हो?’
‘जी सर,मैं ही फेकूलाल हूँ।’
‘तुम फेकूलाल क्यो हो?’
‘हुजूर, ये कैसा सवाल है?’
`चुप रहो, आजकल ऐसे ही सवाल पूछे जाते हैं।’
`सर,मैं फेकूलाल इसलिए हूँ कि मेरे आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर कार्ड में भी मेरा नाम फेकूलाल ही है।’
धर्मराज ने सिर हिलाया। बोले- ‘ठीक कह रहा है। बिना दस्तावेज के कुछ भी प्रमाणित नहीं होता। क्या तुम्हें अपने लिए कोई वकील चाहिए? चित्रगुप्त जी सरकारी पक्ष देखते हैं। वैसे आरोप क्या हैं?’
चित्रगुप्त ने मिसल खोली। बोले- ‘मी लार्ड, इस महापापी ने अपने फायदे के लिए दो भालुओं और तीन बंदरों को आदमी की नकल करने के लिए विवश किया। उन्हें बंदी बना कर रखा। जिस से वे आजीवन परेशान रहे और जल्द ही उनकी मौत हो गई।’
धर्मराज कुछ-कुछ यमराज से दिखे। फिर धर्मराज हो गए। बोले- ‘तुम्हें अपना वकील चाहिए कि नहीं।’
फेकू मदारी को अखबार पढ़ने का शौक था। बोला- ‘सर, भारत की पुण्यभूमि से कुछ ही दिन पहले माननीय कानूनखानी साहब तशरीफ ला चुके हैं। क्या वे मेरा केस लड़ेंगे? धरती पर तो उन्होने रांगा बिल्ला, चारा घोटाला, तंदूर वाला और जीजा-साला जैसे कांडों पर दीन दुखियों को मदद पहुँचाई थी। उनकी फीस क्या है?’
धर्मराज के इशारे पर कानूनखानी साहब उपस्थित हो गए। बोले- ‘तुम मेरी फी क्या दोगे? तुम्हारी औकात ही क्या है? जिन दीन-दुखियों के लिए मैं मुकदमा लड़ता रहा हूँ वे धन के दीन नहीं थे। चलो, परलोक के अखबारों में मेरा नाम होगा, मुझे अब सिर्फ नाम की लालसा है। मैं तुम्हारा केस मुफ्त लड़ूंगा।’
कानूनखानी की दलीलों के आगे चित्रगुप्त ठंढे पड़ते गए। खानी ने बताया किस तरह फेकू मदारी एक महान आविष्कर्ता, प्रयोगकर्ता, प्रशिक्षक, पशुप्रेमी और समाजविज्ञानी है। जिसने असभ्य जंगली जीवों को महानतम सभ्य मनुष्य के साँचे में ढालने के प्रयास में अपने जीवन के अमूल्य वर्ष लगा दिए। नग्न पशुओं के लिए भोजन ही नहीं वस्त्र और गिलट के आभूषणों की भी व्यवस्था की। बंदर को साइकिल चलाना, भालू को सिगरेट पीना और बंदरिया को कॉलेज गर्ल की भाँति मटकना सिखाया। इसे अवसर ही नहीं मिला वरना यह भारतीय पुलिस और नेताओं को भी सभ्यता का पाठ पढ़ा सकता था। इसने एक तोते को मंत्र पढ़ना सिखाया था। मौका पाता तो देश की पुलिस को गाली-गलौज से मुक्त भी करा सकता था।’
धर्मराज प्रभावित हुए। किन्तु उनके धवल वस्त्रों के अंदर बैठे यमराज आसानी से सहमत नहीं होते। गाली देना ही तो पुलिस की शोभा है। जो एक साँस में छत्तीस गालियाँ न निकाल सके वह पुलिसवाला ही क्या? नेताओं का साहस और बल तभी निखरता है जब वे संसद और विधान सभाओं में गरजते और धींगामस्ती करते हैं। उनका पानीपत अब वहीं है। फटी कमीज और टूटे बटन उनके पराक्रम के पदक होते हैं।
चित्रगुप्त ने भारत सरकार के ‘पशु क्रूरता अधिनियम’ की एक प्रति न्याय पटल पर रखी जिसे स्पीड पोस्ट से मंगाया गया था।
खानी साहब मदारी की रोजी-रोटी की दलील दे रहे थे। भारत में घर-घर बकरे और मुर्गों की हत्या हो रही है, इस पर मेनका गांधी कुछ नहीं कर रहीं। इस पर किसी का ध्यान नहीं। मेरे मुवक्किल ने तो अनेक वर्षो तक जीवों की रक्षा की है। चीन वाले पाते तो बंदर और भालू बच पाते क्या?
यमराज बोले- ‘तो आप चाहते क्या है? धरती पर तो अपनी दलीलों से आप अदालतों और वकीलों के होश उड़ाते रहे। क्या कोई अन्य पक्ष भी इस मुकदमें में अपनी बात रखना चाहता है।’
अब तक स्वर्गदूत चुपचाप थे। बोले- ‘सर, इसने मरते समय नारायण का स्मरण किया है। इसके सारे पाप नष्ट हो चुके हैं। इसे स्वर्ग भेजना होगा। हाईकमान का निर्देश है।’
धर्मराज झल्लाये- ‘अजीब मुसीबत है। कानून की किताब में कहाँ लिखा है कि भगवान का नाम लेने वाले को स्वर्ग भेजना ही होगा। जाकर नर्क की खिड़की से झाँक कर देखो। कितने तथाकथित धर्मधुरीण बाबा और संत अपने पापों की सजा काट रहे हैं। धरती के जेलों में नहीं देखते? चले आए पैरवी लेकर। मैं पैरवी नहीं सुनता।’
कानूनखानी साहब ऐसे मामलों के एक्सपर्ट थे। बोले- ‘प्रभो, यदि आप अनुमति दें तो मैं एक रास्ता सुझा सकता हूँ। फेकूलाल को सत्य का प्रहरी बना दीजिए।धरती पर टी. वी. चैनलों का युग आ गया है। फेकूलाल की आत्मा को स्वर्ग-नर्क के झमेले से मुक्त कर न्यूज चैनल के एंकरों में डाल दीजिए। इससे हमारी, आप की और धरती की अनेक समस्याओं को समाधान हो जाएगा।’
धर्मराज ने पूछा- ‘क्यों जी फेकूलाल की आत्मा, तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं? बताओ सत्य किसे कहते हैं।’
फेकू ने कहा- ‘हुजूर, मैं ने इसे धरती पर ही जान लिया था। सत्य रबर का बना एक चश्मा होता है, जिस में गरीब सस्ता और अमीर महंगा लेंस डलवाते हैं।’
अपनी दिव्य दृष्टि से देख कर, कुछ सोच कर और मुस्कुरा कर जस्टिस धर्मराज उर्फ यमराज ने आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए।
तो पाठक बंधुओ, फेंकू मदारी की आत्मा एक साथ ही सभी न्यूज चैनलों के एंकरों के भीतर प्रवेश कर चुकी है। अब वे आप को वही जानने देते हैं, जो वे चाहते हैं और वही बोलने देते हैं जो उनको पसंद है। उनका डमरू उनके कंठ में बिराजमान है जिसकी आवाज वे आवश्यकतानुसार ऊपर या नीचे करते रहते हैं। छोटी सी बात को सौ बार दुहराते हैं। बड़ी सी बात को जीभ के नीचे दबा कर गायब कर देते हैं। अब वे समाचार नहीं सुनाते, प्रचार सुनाते हैं। वे मदारी हैं, जादूगर हैं। हैरी हुडनी की तरह पलक झपकते मंच से ही हाथी को गायब कर देते हैं। अब वे संत नहीं महंत हो चुके हैं। उनकी वाणी का बखान शेष और शारदा भी नहीं कर सकते।
फेकू मदारी जिन्दाबाद!जिन्दाबाद!!
कृष्ण कलाधर
झारखण्ड
What's Your Reaction?






