कुंभ की परंपरा और प्रयागराज

कुंभ का आयोजन और परंपरागत मान्यतायें प्रयागराज को देश के प्रमुख नगरों की श्रेणी का सिरमौर बनाती है। यहां माघ मेला पारंपरिक रूप से कुंभ मेले के रूप में पहचाने जाने वाले चार मेलों में से एक है। प्राचीन काल से प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर माघ मेला के रूप में जाना जाने वाला वार्षिक मेला आयोजित करने की परंपरा रही है। प्रयागराज की पवित्रता, स्नान तीर्थ और वार्षिक मेले या उत्सव का प्रमाण प्राचीन पुराणों और महाकाव्य महाभारत आदि में मिलता है।

May 27, 2025 - 13:56
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कुंभ की परंपरा और प्रयागराज
The Tradition of Kumbh and Prayagraj

    हमारा देश.बहुरंगी विविधताओं,उत्सवों और परंपराओं का देश है। सभ्यता और संस्कृति को जोड़े रखने एवं संरक्षित रखने की परंपरा सदियों पुरानी है। ऐसे ही अनेक पर्वों, धार्मिक परंपराओं का उत्सव है महाकुंभ। कुंभ की यह परंपरा भारतवर्ष में वैदिक काल से चली आ रही है। कुम्भ पर्व एक अमृत स्नान और अमृतपान का पवित्र समय माना जाता है।-
यथा सुरानां अमृतं प्रवीलां जलं स्वधा।
सुधा यथा च नागानां तथा गंगा जलं नृणाम्।
    महाभारत के इस श्लोक से देव-दानव युद्ध तथा अमृत एवं गंगाजल के सामंजस्य को प्रतिष्ठित किया गया है-
    कुंभ का अर्थ है हमारी पांचों ज्ञानेंद्रियों,पांच कर्मेन्द्रिय, एक चित्त व एक मन को मिलाकर इन में समेकता स्थापित कर इन पर विजय पाने का अनुष्ठान। यही घट कुंभ है,जिससे शरीर और मन का कल्याण होता है। मन के अंदर समाहित बुरी शक्तियां एवं सात्विक भावनात्मक शक्तियां अर्थात विवेक एवं अविवेक देवासुर संग्राम की.तरह ही जीवन के लिए घातक होते हैं। इन पर मानसिक नियन्त्रण से ही शरीर में अमृत की उत्पत्ति होती है,यही तो कुंभ है।
    कुम्भ शब्द का शाब्दिक अर्थ है `कुम्भयति अमृतेन पूरयति सकल क्षुत् पिपासादि द्वन्द्वजातम् निर्वंतयति इति कुम्भः', अर्थात् जो अमृतमय जल से पूर्ण करता है, जो क्षुत् पिपासादि अअनेक विकारोें से मुक्त  करता है, उसे कुम्भ कहते हैं। यह पर्व मनुष्य की सांसारिक बाधाओं को दूर करता हुआ, उसके जीवन-घट को ज्ञान के अमृत से परिपूर्ण कर देता है। इसीलिये इसे कुम्भ नाम से अभिहित किया गया है। 
`कुम्भ-' कुत्सितं उम्भयति दूरयति जगाद्धितायेति
    अथर्ववेद के अनुसार ब्रह्मा ने मनुष्य को इंद्रियगत सुख देने वाले कुम्भ को प्रदान किया। ये कुम्भ पर्व हरिद्वार,प्रयागराज, नासिक आदि  स्थानों पर प्रतिष्ठित हैं। पृथ्वी को सुख,शांति, समृद्धि व ऐश्वर्य देने वाले  ऋषियों ने कुम्भ को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति का प्रमुख स्रोत माना है।कुम्भ पर्व के अवसर पर पतित पावनी भगवती भागीरथी (गंगा) के जल में स्नान करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ, सौ वाजपेय यज्ञ, एक लाख भूमि की परिक्रमा करने से जो पुण्य-फल प्राप्त होता है, वह एक बार ही कुम्भ-स्नान करने से प्राप्त होता है-
अश्वमेध सहस्राणि वाजपेय शतानि च।
लक्षप्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नानेन तत् फलम्।
    ये कुंभ पवित्र नदियों के संगम पर आयोजित किये जाते हैं,जहां मन तथा शरीर की शुद्धि के लिए स्नान कर पुण्य-फल प्राप्त करने की प्राचीन परंपरा है।इस वर्ष यह महाकुंभ प्रयागराज में आयोजित है,क्योंकि हमारी पौराणिक व.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी समय गंगा की पवित्र धारा में अमृत का सतत प्रवाह होता है और यही समय कुम्भ स्नान का संयोग भी उपलब्धकराता है। कुंभ पर्व एवं पवित्र स्नान के संबंध में एक कथा अत्यंत प्रचलित है कि जब एक बार ऋषि दुर्वसा ने देवराज इंद्र को दिव्यमाला प्रदान की तो इंद्र ने उसे अपने प्रिय हाथी ऐरावत के मस्तक पर रख दिया।ऐरावत ने उसे गिराकर अपने पैरों से कुचल दिया। इस अनैतिक कृत्य से नाराज होकर ऋषि ने उन्हे श्राप दे दिया जिसके कारण पूरे संसार में अकाल और अनावृष्टि का प्रकोप पड़ गया।प्रजा व्याकुल हो गई। जब समुद्र मंथन के द्वारा देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई तो उनकी कृपा से भारी वृष्टि हुई। इस समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत को पीने से वंचित असुरों ने उस अमृत-कुम्भ को नागलोक में छिपा दिया।तब गरुड ने उसका उद्धार किया और उसे क्षीरसागर में स्थित विष्णु के पास ले जाने के क्रम में अमृत की जो बूंदें जिन स्थानों पर गिरी वे सभी स्थान कुंभ पर्व के तीर्थस्थल बन गए। और अमृत प्रवाहिनी नदियों में पवित्र स्नान की परंपरा बन गई।
यह कुंभ पर्व भारतीय जनमानस की पर्व और उत्सवों की चेतना और विशालता का प्रतीक है। विशेषकर भारतीय संस्कृति की जीवन्तता का प्रमाण प्रत्येक १२ वर्ष में यहाँ आयोजित होता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे बसा प्रयागराज भारत का पवित्र और लोकप्रिय तीर्थस्थल है। इस पवित्र नगर का प्रमाण भारत के धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है। वेद, पुराण, रामायण और महाभारत में इस स्थान को `प्रयाग' कहा गया है। गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का यहाँ संगम होता है, इसलिए हिन्दुओं एवं सनातन धर्म के लिए इस नगर का विशेष महत्त्व है।
    प्रयागराज शिक्षा,संस्कार, संस्कृति का प्रतिनिथि नगर है, जिस पर हम गर्व कर सकते हैं। इसकी लोकप्रयता इसी बात से सिद्ध होती है कि यहां देश विदेश के प्रसिद्ध शिक्षाविद, राजनेता मेधावी छात्रों ने यहां अध्ययन कर इसे गौरवान्वित किया है। धर्म, समाज और साहित्य यहां के परिवेश में साँसें लेता है। सबसे प्रमुख गंगा यमुना और सरस्वती का संगम इसके महत्व को प्रतिपादित करता है। विशेष रुप से कुंभ का आयोजन और परंपरागत मान्यतायें प्रयागराज को देश के प्रमुख नगरों की श्रेणी का सिरमौर बनाती है। यहां माघ मेला पारंपरिक रूप से कुंभ मेले के रूप में पहचाने जाने वाले चार मेलों में से एक है। प्राचीन काल से प्रयागराज के  त्रिवेणी संगम पर माघ मेला के रूप में जाना जाने वाला वार्षिक मेला आयोजित करने की परंपरा रही है। प्रयागराज की पवित्रता, स्नान तीर्थ और वार्षिक मेले या उत्सव का प्रमाण प्राचीन पुराणों और महाकाव्य महाभारत  आदि में मिलता है। इस उत्सव का प्रमाण मुगल काल के मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिखे गए पुस्तकों में भी मिलता है। प्राचीन इलाहाबाद  और अब प्रयागराज में कुंभ मेले का सबसे पहला प्रमाण १९वीं शताब्दी के  बाद औपनिवेशिक युग के दस्तावेजों में मिलता है। यहां निवास करने वाले मूल या स्थानीय मग ब्राह्मणों ने इसे परंपरागत रूप प्रदान किया। उनकी मान्यताओं के अनुसार प्राचीनतम मत्स्य पुराण बहुत प्राचीन और प्रामाणिक माना जाता है। प्रयाग प्रजापति का क्षेत्र है जहाँ गंगा और यमुना बहती हैं। साठ सहस्त्र वीर गंगा की और स्वयं सूर्य जमुना की रक्षा करते हैं। यहाँ जो वट है उसकी रक्षा स्वयं शूलपाणि करते हैं। पाँच कुंड हैं जिनमें से होकर जाह्नवी बहती है। माघ महीने में यहाँ सब तीर्थ आकर वास करते हैं। इससे उस महीने में इस तीर्थवास का बहुत फल है।
    वास्तव में.विश्व बन्धुत्व की भावना का सुंदर संयोजन यहां पर आयोजित होने वाले कुम्भ मेलों में परिलक्षित होती है।भारत की इन्द्रधनुषी संस्कृति, परंपरागत मान्यताएं भी इसकी एकता और अखंडता की परिचायक हैं।विशेष रूप से कुंभ मेले का आयोजन बहुत ही प्रचलित और लोकप्रिय रहा है। बहुत सी पुरानी फिल्म में भी कुंभ को.लेकर अनेक घटनाओं और कहानियों का सृजन किया गया है।यह बात रोचक भी है कि कुंभ के मेले में बिछड़े दो भाई फिल्म के अंत में.मिल जाते हैं। वैसे ही विविधता में एकता के परिचायक के रुप में भी प्रयाग के कुंभ मेलों का अत्यधिक महत्व है।


पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर 

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