दिलीप कुमार और देव आनंद की एकमात्र 'इंसानियत'

949 में राज कपूर और दिलीप कुमार पहली बार एक साथ महबूब खान की 'अंदाज' में आए थे। नरगिस के आसपास रची जाने वाली प्रणयकथा वाली यह फिल्म अपने अफलातून संगीत (संगीतकार नौशाद और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी) और तीनों के उत्कृष्ट अभिनय के कारण आज भी क्लासिक फिल्मों में स्थान पाती है। सुपरहिट फिल्म 'अंदाज' को छोड़ कर दर्शकों को एक मान्यता यह प्रचलित है कि एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी एक साथ किसी फिल्म में आए नहीं। समकालीन बड़े एक्टरों में ऐसा हर पीढ़ी में देखने को मिला है। प्रतिद्विंद्वता और अहं के कारण वे आसानी से साथ परदे पर आते नहीं। अगर आएं तो निर्माता के लिए सोना-चांदी हो जाए।

Nov 8, 2023 - 15:36
Nov 8, 2023 - 15:42
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दिलीप कुमार और देव आनंद की एकमात्र 'इंसानियत'
The only 'humanity' of Dilip Kumar and Dev Anand

आज जिस तरह शाहरुख खान, आमिर खान और सलमान खान की त्रिमूर्ति हिंदी सिनेमा जगत पर 'राज' कर रही है, उसी तरह एक जमाने में राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद की 'त्रिमूर्ति' सिमेमाप्रेमियों के दिल पर छाई थी। तीनों विभाजन के पहले पंजाब के थे। राज और दिलीप पेशावर में पड़ोसी और सहपाठी थे। देव गुरुदासपुर के थे। तीनों 40 के दशक में एक दो साल के अंतर में ही सिनेमा में आए थे। राज कपूर ने खुद को चार्ली चेपलिन के विदूषक में ढ़ाला, तो दिलीप कुमार ने ट्रेजडी किंग के रूप में स्थान मजबूत किया तो देव ने ग्रेगरी पैक और केरी ग्रांट का हिंदी करण किया। 50 और 60 के दशक में तीनों का बाक्स आफिस पर दबदबा था।
1949 में राज कपूर और दिलीप कुमार पहली बार एक साथ महबूब खान की 'अंदाज' में आए थे। नरगिस के आसपास रची जाने वाली प्रणयकथा वाली यह फिल्म अपने अफलातून संगीत (संगीतकार नौशाद और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी) और तीनों के उत्कृष्ट अभिनय के कारण आज भी क्लासिक फिल्मों में स्थान पाती है। सुपरहिट फिल्म 'अंदाज' को छोड़ कर दर्शकों को एक मान्यता यह प्रचलित है कि एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी एक साथ किसी फिल्म में आए नहीं। समकालीन बड़े एक्टरों में ऐसा हर पीढ़ी में देखने को मिला है। प्रतिद्विंद्वता और अहं के कारण वे आसानी से साथ परदे पर आते नहीं। अगर आएं तो निर्माता के लिए सोना-चांदी हो जाए।
जबकि 1968 में किशोर कुमार और आईएस जौहर की मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'श्रीमानजी' में राज कपूर और देव आनंद इकट्ठा हुए थे। लेकिन यह मेहमान भूमिका थी, इसलिए खास ध्यान में नहीं आई (वैसे तो इस फिल्म में राजेंद्र कुमार और राजेश खन्ना भी मेहमान थे)। रही बात दिलीप कुमार और देव आनंद की तो ये दोनों भी 1955 में 'इंसानियत' नाम की एक फिल्म में एक साथ आए थे। इसमें दोनों की मुख्य भूमिका थी। दिलीप और देव के एक साथ काम करने वाली यह एकमात्र फिल्म है।
दिलीप कुमार जब जीवित थे, एक जगह उन्होंने कहा था, "मैं देव की अपेक्षा एक साल सीनियर हूं। हम तीनों 40 के मध्य में एक साथ आए थे। हमारे बीच अच्छा लगाव था। देव तो फैमिली फ्रेंड था। हम प्रतिद्वंद्वी थे, दुश्मन नहीं। मुझे (निर्माता) जैमिनी की फिल्म 'इंसानियत' में देव आनंद के साथ काम करना नसीब हुआ। एस.एस. वसन निर्देशित यह फिल्म कोश्च्यूम ड्रामा थी। देव इतना उदार था कि मारे साथ के दृश्यों के लिए अपनी तारीखें कैंसिल की थी। मैंने खुद देखा था कि वह जूनियर कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखा सके इसके लिए बारबार टेक देता था। वह कभी किसी की उपेक्षा नहीं करता था।"
हिंदी सिनेमा में दक्षिण के फिल्म निर्माताओं की उपस्थिति उस समय भी थी। एस.एस. वसन तमिल फिल्मों का एक प्रतिष्ठित नाम था। वह निर्माता, निर्देशक, लेखक और बिजनेसमैन थे। 1940 में उन्होंने 'जैमिनी स्टूडियो' नाम से एक फिल्म कंपनी बनाई थी। 1948 में वह पहले तमिल फिल्म निर्माता थे, जिन्होंने सुपरहिट 'चंद्रलेखा' को पूरे भारत में रिलीज किया था। 'राजतिलक', 'पैगाम', 'घराना' और औरत जैसी लोकप्रिय फिल्में उन्हीं के नाम हैं।
दिलीप कुमार ने ट्रेजिक भूमिकाओं से बाहर निकलने के लिए 1954 में कोयंबटूर के पक्सीराजा स्टूडियो की 'मलाइकम' की हिंदी रिमेक 'आजाद' में काम किया था। इसकी शूटिंग कोयंबटूर के आसपास हुई थी। इस फिल्म की सफलता से जैमिनी वाले एस.एस. वसन का ध्यान दिलीप कुमार पर गया था। उन्होंने ताबड़तोड़ दिलीप कुमार को 'इंसानियत' के लिए साइन कर लिया था। वसन खुद भी तमिल से बाहर निकल कर हिंदी में जाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने फिल्म 'इंसानियत' में पूरी टीम मुंबई की बनाई थी। 
दिलीप कुमार के साथ उन्होंने (बाद में प्रेमनाथ के साथ विवाह करने वाली) बीना राय और देव आनंद को लिया था। शुरुआत में वसन भारत भूषण को लेना चाहते थे। भारत भूषण लंबे समय तक हीरो नहीं रह सके, पर उस समय वह बड़े स्टार थे और उनकी बहुत डिमांड रहती थी। उन्होंने फिल्म का स्क्रीनप्ले पढ़ा, बाद में लगा कि इसमें तो दिलीप कुमार को बड़ा भाई बनाया है, इसलिए उन्होंने वह भूमिका करने से मना कर दिया। इसके बाद वसन ने बड़े स्टार देव आनंद को मुंह मांगा पैसा दे कर फिल्म में लिया।
जबकि देव आनंद को भी फिल्म के सेट पर लगा था कि दिलीप कुमार खुद ही फिल्म में छाए रहेंगे। एक जगह उन्होंने कहा था, "मुझे 'इंसानियत' करने में बहुत कष्ट हुआ था। दिलीप कुमार के साथ की मेरी एकमात्र फिल्म में मूंछें चिपकाई थीं।' 'जिस तरह 'अंदाज' के बाद राज और दिलीप ने साथ काम न करने का वचन लिया था, उसी तरह देव आनंद ने भी तय कर लिया था कि वह फिर कभी दिलीप कुमार के साथ परदे पर नहीं खड़े होंगे। इतना ही नहीं, यह भी निश्चय कर लिया था कि 'इंसानियत' के बाद कभी धोती-कुर्ता भी नहीं पहनेंगे।
फिल्म खास नहीं चली थी। आज देखा जाए तो उसके पात्र कार्टून जैसे विचित्र लगेंगे। राजा की कहानी थी, इसलिए उसकी वेशभूषा 'रजवाड़ी' थी। 'इंसानियत' वैसे तो ऐक्शन फिल्म थी, जिसमें एक जुल्मी राजा से गांव वालों को बचाने के लिए दो दोस्त (दिलीप और देव) जान पर खेल कर लड़ते हैं और साथ ही प्रेम कथा भी थी, जिसमें गांव की गोरी (बीना राय) एक बहादुर (देव) को चाहती है और दूसरा बहादुर (दिलीप) व्यक्तिगत रूप से उसे चाहता है।
दिलीप कुमार ने स्वीकार किया था कि फिल्म 'इंसानियत' करने के बाद उनमें अन्य तरह की फिल्में करने का विश्वास आया था और सच में इसी के बाद वैविध्यपूर्ण भूमिकाएं करना शुरू किया था। 
दूसरी बात यह कि वसन साहब दिलीप कुमार के ऐसे फैन और फ्रेंड बन गए थे कि कुछ ही सालों में सुपरहिट 'पैगाम' दी थी। दोस्ती ऐसी कि दिलीप कुमार की उस समय की मंगेतर मधुबाला (दोनों विवाह करने वाले थे) को मद्रास में खून की उल्टियां हुईं तो वसन ने उनका ख्याल रखा था। मधुबाला ने बाद में कहा था, "वसन दंपति ने मां-बाप की तरह मेरा ख्याल रखा था और मुझे स्वस्थ किया था।"
मधुबाला का स्नेह ऐसा था कि उस समय वह मुंबई में केवल दो बार बिना बुरके के दिखाई दी थीं। जैमिनी स्टूडियो की 'बहुत दिन हुए' और 'इंसानियत' के प्रीमियर में। पहली फिल्म में तो उनकी मामूली भूमिका थी, पर दूसरी फिल्म में उनके परदे और दिल का हीरो दिलीप कुमार था। वह पहली बार सार्वजनिक रूप से दिलीप कुमार के साथ फिल्म 'इंसानियत' के प्रीमियर में आई थीं। दोनों हाथ में हाथ डाल कर मुंबई के रोक्सी सिनेमा में आए थे। यह समाचार फिल्मी मैगजीनों के लिए गरमागरम गासिप था। ऐसा लगता था कि उनके रोमांस की अफवाह को घर वालों का समर्थन मिल गया है और अब उन्होंने शादी के बंधन मे बंधने का इरादा बना लिया है।
मधुबाला के लिए वह सब से बड़ी खुशी का दिन था और यह खुशी उनकी तस्वीरों में दिख भी रही थी। पर यह खुशी लंबी नहीं चली। उनके पिता की सख्ती कहें या चाहकों की भीड़, मधुबाला ने बाहर निकलना और किसी से भी मिलना बंद कर दिया था। बाद में पता चला कि हृदय की बीमारी का शिकार हो गई थीं। मधुबाला अंर दिलीप कुमार का रोमांच 9 साल चला था। 1969 में हृदय की बीमारी की वजह से मधुबाला की मौत हो गई थी।

वीरेंद्र बहादुर सिंह 

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