People's poet Baba Nagarjuna : जनकवि बाबा `नागार्जुन’

Baba Nagarjun, known as the people's poet, gave voice to the struggles of common people through his revolutionary, progressive, and deeply political Hindi poetry. A fearless wanderer and thinker, his work spans across genres and generations. जो अनुभूतियां औरों की संवेदना को अछूता छोड़ जाती हैं, वे नागार्जुन की संवेदना का स्पर्श पाकर, महान कविता का रूप धारण कर लेती हैं, इसीलिए अपने असंख्य पाठकों के लिए नागार्जुन तीव्र और पारदर्शी संवेदनाओं के कवि रहे, जो अपने परिवेश और काल के कठिन सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों से पूरी तरह परिचित हैं, चाहे वे मुद्दे स्थानीय हों, राष्ट्रीय हों या वैश्विक हों। उनकी कविताओं में एक-एक पात्र से उनका आत्मीय रिश्ता है।

Jul 7, 2025 - 13:56
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People's poet Baba Nagarjuna : जनकवि बाबा `नागार्जुन’
People's poet Baba Nagarjuna

People's poet Baba Nagarjuna : अथक अन्वेषी सच की तलाश में निरंतर जुटे बाबा नागार्जुन छायावादोत्तर काल के अकेले कवि हैं, जिनकी रचनाएँ ग्रामीण चौपाल से लेकर विद्वानों की बैठक तक में समान रूप से आदर पाती हैं। अपने श्रीलंका प्रवास में बौद्ध धर्मावलंबी होने के पश्चात् सन् १९३६ में उनका `नागार्जुन' नामकरण हुआ। `नागार्जुन' के अलावा वे संस्कृत में `चाणक्य', लेखकों, मित्रों एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं में `नागाबाबा' के नाम से जाने जाते हैं। नागार्जुन ने `यात्री' उपनाम से मैथिली भाषा में रचनाएं लिखी। शिष्ट गंभीर हास्य, धारदार सूक्ष्म चुटीले व्यंग्य, जनहित के लिए प्रतिबद्धता उनकी कविता की मुख्य विशेषता है। काव्यात्मक साहस और अछूते विषयों पर लिखी उनकी कविता गहरी ऐन्द्रियता और सूक्ष्म सौन्दर्य दृष्टि से युक्त श्रेष्ठ कविता है।


संघर्षशील योद्धा कवि- `नागार्जुन'
नागार्जुन के जन्म के सन्दर्भ में विभिन्न मत विद्यमान हैं, किन्तु अब पूर्णरूपेण स्वीकृत हो चुका है कि नागार्जुन का जन्म ११ जून, सन् १९११ ज्येष्ठ मास को उनके ननिहाल `सतलखा' गाँव जिला मधुबनी में हुआ था। लगातार चार संतानों के काल-कवलित हो जाने के कारण पिता गोकुल मिश्र ने देवधर जिला, संथाल परगना, पहुँचकर वैद्यनाथ धाम में भगवान शिव का पूजन-अर्चन करते हुए, दीर्घजीवी पुत्र की कामना की। महीने भर के अनुष्ठान के बाद कालांतर में जो संतान पैदा हुई, उसका नाम `वैद्यनाथ' मिश्र रखा गया। बुआ ने उन्हें `ठक्कन' नाम दिया। उनकी सोच थी कि यह बालक भी और बालकों की तरह चंद दिनों के बाद माँ-बाप को ठगकर चला जाएगा।


नागार्जुन को अपनी माँ की याद आभास मात्र ही है- `वह गौर श्याम थी। उसे दमा का रोग था। ज्यादातर वह लेटी ही रहती थी। बस, यही याद है। कपार छोटा, आँखें न छोटी न बड़ी। नाक नुकीली नहीं थी।' बचपन में माँ के स्नेह से वंचित ठक्कन को विरासत में परिवार की दरिद्रता एवं पिता का दुर्व्यवहार मिला। नागार्जुन ने अपनी कविता `रवि-ठाकुर' में इसे स्पष्टतः स्वीकार किया है-
`पैदा हुआ था मैं -                                                                                                                                                                                         दीन-हीन अपठित किसी कृषक-कुल में
आ रहा हूँ पीता अभाव का आसव ठेठ बचपन से
कवि! मैं रूपक हूँ दबी हुई दूब का
हरा हुआ नहीं कि चरने को दौड़ते!!
जीवन गुज़रता प्रतिपल संघर्ष में!!'                                                                                                                                                             यायावर कवि- ‘नागार्जुन'
भौगोलिक ही नहीं, आध्यात्मिक, बौद्धिक, राजनीतिक यात्राएं नागार्जुन के व्यक्तित्व का अटूट अंग रहीं। १९३४ से १९४१ तक साधुओं का जीवन जीते हुए वे बिहार से पंजाब, राजस्थान, हिमाचल, गुजरात और देश के दूसरे भागों में घूमते रहे। अपने लंका-प्रवास के पश्चात् वे तत्कालीन बिहार सरकार द्वारा प्रायोजित अनुसंधानकर्ताओं के एक दल के साथ ल्हासा (तिब्बत) गए। यहीं से वे राहुल सांकृत्यायन के निकट सम्पर्क में आए। १९४१ के किसान आंदोलन के तुरंत बाद वे हिमालय और पश्चिमी तिब्बत के जंगली इलाकों में भ्रमण के लिए निकल पड़े। १९७१ में वे तत्कालीन सोवियत संघ की यात्रा पर गए। सोच और स्वभाव से कबीर एवं देश-दुनिया के खट्टे मीठे अनुभवों को बटोरने वाले यायावर की तरह जीवन-यापन करने वाले बाबा वैद्यनाथ का ५ नवंबर, १९९८ को निधन हो गया।

सृजनशील मेधा के धनी कवि- `नागार्जुन'
जब हम नागार्जुन के रचना संसार पर दृष्टिपात करते हैं, तो उनकी असाधारण सृजनशीलता और मेधा के समक्ष नतमस्तक हो जाते हैं। उन्होंने साहित्य की विविध विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई-
उनकी पहली कविता १९३५ में लाहौर के विश्वबंधु साप्ताहिक में प्रकाशित हुई और पहला संकलन युगधारा १९५३ में। इसके पश्चात् सतरंगे पंखों वाली (१९५९), प्यासी पथरायी आँखे (१९६२), तालाब की मछलियाँ (१९७५). तुमने कहा था (१९८०), खिचड़ी विप्लव देखा हमने (१९८०), हज़ार हज़ार बाँहों वाली (१९८१), पुरानी जूतियों का कोरस (१९८३), रत्नगर्भा (१९८४), ऐसे भी हम क्या, ऐसे भी तुम क्या (१९८५), आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने (१९८६) और इस गुब्बारे की छाया में (१९८९)। इसके अतिरिक्त दो प्रबंध काव्य भस्मासुर (१९७१) और भूमिजा (१९९३) भी प्रकाशित हुए।

कविता के अतिरिक्त नागार्जुन ने उपन्यास भी लिखे, जो मिथिला क्षेत्र और उसकी भाषा पर केन्द्रित हैं। उनके द्वारा लिखित बारह उपन्यासों में रतिनाथ की चाची (१९४८), बलचनमा (१९५२), बाबा बटेसरनाथ (१९५४), वरुण के बेटे (१९५७) और दुखमोचन (१९५७) पारो, नवतुरिया और चित्रा चर्चित रहे हैं। `अयोध्या का राजा' और `बम भोलेनाथ’ जैसे उनके निबंध संग्रह, निराला और प्रेमचंद पर उनके विनिबंध, प्रभूत बाल साहित्य, `गीत गोविन्द', `मेघदूत', विद्यापति की रचनाओं और बाङ्‌ला तथा गुजराती की कुछ पुस्तकों के हिन्दी अनुवाद इस बहुमुखी प्रतिभा के दूसरों पक्षों को उजागर करते हैं। उनकी अन्य कृतियों में संस्कृत में लिखित `धर्मलोक शतकम' (सिंहली लिपि में प्रकाशित एक लम्बी संस्कृत कविता), `देश दशकम' आदि हैं। इसके अलावा उन्होंने १९३५ में दीपक (मासिक) तथा १९४२-४३ में विश्वबंधु (साप्ताहिक) पत्रिका का संपादन भी किया।


मार्मिक संवेदनाओं के कवि- `नागार्जुन'
जो अनुभूतियां औरों की संवेदना को अछूता छोड़ जाती हैं, वे नागार्जुन की संवेदना का स्पर्श पाकर, महान कविता का रूप धारण कर लेती हैं, इसीलिए अपने असंख्य पाठकों के लिए नागार्जुन तीव्र और पारदर्शी संवेदनाओं के कवि रहे, जो अपने परिवेश और काल वेâ कठिन सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों से पूरी तरह परिचित हैं, चाहे वे मुद्दे स्थानीय हों, राष्ट्रीय हों या वैश्विक हों। उनकी कविताओं में एक-एक पात्र से उनका आत्मीय रिश्ता है। वह अपने पात्रों के कष्ट और अभाव से दुखी होते हैं, उन्हें कष्ट पहुँचानेवालों को वह चुनौती देते हैं। नागार्जुन की कविता में जानवर तक संवेदना जगाते हैं। नागार्जुन ने `अकाल और उसके बाद' कविता में जानवर और आदमी के जीवन की तादम्यता को बहुत ही मार्मिकता के साथ अंकित किया है। 


प्रगतिशील और जनवादी कवि- ‘नागार्जुन'
जनता के दुःख दर्द को आम भाषा में बयान करने वाले कवि नागार्जुन की कविता में गरीबी, भुखमरी, बीमारी, अकाल, बाढ़ जैसे सामाजिक यथार्थ का सूक्ष्म चित्रण मिलता है। मानवता के प्रति गहरी चिन्ता और निष्ठा नागार्जुन को तरह-तरह की अभिव्यक्तियों और मिज़ाजों का कवि बना देती है। शैलेन्द्र चौहान के अनुसार ‘नागार्जुन सही अर्थों में भारतीय मिट्टी से बने आधुनिक कवि हैं।’ वास्तव में वे प्रगतिशील-जनवादी कवियों में अकेले ऐसे कवि हैं, जिनका कृतित्व जनवादी कविता को जीवन की समग्रता का काव्य बनाता है। प्रो. मैनेजर पांडेय भी उन्हें `जनकवि' कहते हैं- `सचमुच, नागार्जुन हिन्दी की जनवादी काव्यधारा के सबसे सच्चे, सबसे सशक्त, सबसे प्रतिबद्ध, सबसे प्रखर, सबसे जीवंत तथा सबसे अधिक जनवादी जनकवि हैं। उनके काव्य में जनवादी कविता के सभी रूप और आयाम अभिव्यक्त हुए हैं।'


राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध कवि- ‘नागार्जुन'
स्पष्टवादिता और राजनीतिक कार्यकलापों के कारण कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा। जब श्रीलंका में वे बौद्ध दर्शन का अध्ययन रहे थे, तभी उन्हें भारत के स्वाधीनता आंदोलन ने अपनी ओर खींचा। नागार्जुन के पत्र के जवाब में स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने उन्हें लिखा `वहां अतीत के बिल में घुसे बैठे हो, वर्तमान संघर्ष के खुले मैदान में आओ।' पत्र पढ़ते ही वे श्रीलंका से बौद्ध दर्शन की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर किसान आंदोलन में शरीक होने के लिए भारत चले आए, परिणामस्वरूप १९३९ में उन्होंने छपरा और हजारीबाग जेल में १० माह बिताए। १९४१ में लौटने पर वे दूसरे किसान नेताओं के साथ भागलपुर केन्द्रीय कारागार गए। १९४८ में गाँधी जी की हत्या पर लिखी कविताओं के कारण उन्हें पुनः जेल जाना पड़ा और उनकी कविताएं प्रतिबंधित कर दी गईं। और १९७४ में जय प्रकाश नारायण के आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें फिर जेल यात्रा करनी पड़ी।

आधुनिक युग का निराला कबीर कवि- `नागार्जुन'
संभवतः कबीर के बाद व्यंग्य का इतना बड़ा कवि दूसरा नहीं। भारत में ब्रिटेन की रानी का स्वागत देखकर नागार्जुन लिखते हैं-
`आओ रानी, हम ढोएँगे पालकी,
यही हुई है राय जवाहरलाल की
रफू करेंगे फटे-पुराने जाल की
यही हुई है राय जवाहरलाल की।'
फक्कड़पन और घुमक्कड़ी प्रवृति के कवि नागार्जुन न किसी से डरते है, न पथ से डिगते हैं-
`जनता मुझसे पूछ रही है, क्या बतलाऊँ?
जनकवि हूँ मैं साफ कहूंगा, क्यों हकलाऊँ?
नेहरू को तो मरे हुए सौ साल हो गये
अब जो हैं वो शासन के जंजाल हो गये
गृह मंत्री के सीने पर बैठा अकाल है
भारत-भूमि में प्रजातंत्र का बुरा हाल है!'
काँग्रेस द्वारा गांधीजी के नाम के दुरूपयोग पर नागार्जुन कड़े प्रश्न उठाते हैं -
`गांधी जी का नाम बेचकर, बतलाओ कब तक खाओगे?
यम को भी दुर्गंध लगेगी, नरक भला कैसे जाओगे?'
देश की स्वतंत्रता के बाद भी जब देश की परिस्थितियां बेहतर नहीं होती, तो देश की दशा पर नागार्जुन की कलम सिसक उठती है -
`अंदर संकट, बाहर संकट, संकट चारों ओर
जीभ कटी है, भारतमाता मचा न पाती शोर
देखो धँसी-धँसी ये आँखें, पिचके-पिचके गाल
कौन कहेगा, आज़ादी के बीते तेरह साल?'
वास्तव में उनमें हमें निराला और कबीर दोनों की छवि दिखाई देती है।


हिन्दी साहित्य का क्लासिक कवि- `नागार्जुन'
उन्होंने छंदबद्ध और छंदमुक्त दोनों प्रकार की कविताएँ रचीं। जैसी सिद्धि उन्हें छंदबद्ध कविता में मिली है, वैसी ही मुक्त छंद में। उनकी काव्य-भाषा में एक ओर संस्कृत काव्य परंपरा की प्रतिध्वनि है, तो दूसरी ओर उनकी लोकभाषा में बोलचाल की भाषा की रवानी और जीवंतता। उनकी कविता बोली-ठोली से लेकर परम अभिजात रूपों तक भाषा के तमाम रंग-रूप सहज ही समेटे हुए है। नाटकीयता में तो उनकी कविता अद्वितीय ही है। इसी कारण उनकी `अकाल और उसके बाद', `बादल को घिरते देखा है', `कालिदास सच सच बतलाना' कविताएं आधुनिक हिंदी साहित्य की क्लासिस कविता हो गई हैं।


यशस्वी कवि- ‘नागार्जुन'
अपनी प्रतिभा के पारितोषिक के रूप में उन्हें प्रथम पुरस्कार अपने मैथिली कविता संग्रह `पत्रहीन नग्न गाछ' के लिए १९६९ में मिला। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल की सरकारों एवं अन्य संस्थाओं से क्रमशः उन्हें राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान (१९९३), भारत भारती पुरस्कार (१९८८), मैथिली शरण गुप्त सम्मान (१९८८), और प्रथम राहुल पुरस्कार (१९९२) मिले। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, हिन्दी के यशस्वी कवि श्री नागार्जुन को साहित्य अकादेमी ने अपना सर्वोच्च सम्मान महत्तर सदस्यता प्रदान की। निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि विषय की विविधता और प्रस्तुति की सहजता नागार्जुन के रचना संसार को नया आयाम देती है। उनकी खोजी आँखें कोई भी महत्वपूर्ण और सुंदर वस्तु पहचानने में शायद ही कभी चूकी हों। नागार्जुन ने अपने पाण्डित्य, अभिनव प्रयोग, गंभीर सर्जनात्मकता और विज्ञ आँखों में निरंतर कौंधनेवाली मेधा एवं हास से साहित्य-प्रेमियों के दिलो-दिमाग में स्थायी जगह बना ली है। कठिनाइयों, संघर्षो और अदम्य आत्मिक साहसिकता से भरे उनका जीवन और लेखन युगों युगों तक आगामी पीढ़ी में नवीन ऊर्जा भरती रहेगी।

डॉ. मधु गुप्ता
कर्नाटका

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