The Mysteries and Miracles of Jagannath Puri Temple : जगन्नाथ मंदिर के अनसुलझे रहस्य

The Jagannath Puri Temple is a significant religious and cultural landmark of Indian Sanatan tradition, renowned worldwide for its countless mysteries and miracles. From the incomplete wooden idols, the enigmatic Brahma potli, the grand Rath Yatra, the mystery of the temple’s shadowless architecture, the unique flag movements, to the miraculous Sudarshan Chakra—these phenomena remain puzzles even for modern science. The temple resonates with the deep faith and devotion of millions, making it a divine and spiritual experience for devotees. चार धाम में से एक होने के कारण यह संस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण था ही, बंदरगाह होने के कारण यहां से, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा, थाईलैंड आदि देशों से हमारा सामुद्रिक व्यापार भी हुआ करता था। इसीलिए व्यावसायिक दृष्टि से भी यह अत्यंत महत्वपूर्ण एवं संपन्न प्रदेश था। वर्तमान में यह स्थान जगन्नाथपुरी के नाम से प्रसिद्ध है और जगन्नाथ पुरी में होने वाली विश्व विख्यात, पवित्र रथ- यात्रा इसकी प्रसिद्धि का विशेष कारण है।

Jul 7, 2025 - 16:23
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The Mysteries and Miracles of Jagannath Puri Temple : जगन्नाथ मंदिर के अनसुलझे रहस्य
Jagannath Puri Temple

The Mysteries and Miracles of Jagannath Puri Temple : हमारे मंदिर हमारी भारतीय सभ्यता संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं। अनेक प्राचीन मंदिर भी हमारी सभ्यता जितने ही प्राचीन हैं। वैसे तो हजारों साल से अपने स्थान पर खड़े अनेकों मंदिर स्वयं में अनेकों ऐसे रहस्य छुपाए खड़े हैं जो वैज्ञानिक विश्लेषण का विषय हो सकते है किंतु पुरी के जगन्नाथ मंदिर के रहस्य तो वैज्ञानिकों के लिए भी अनबूझ पहेली बने हुए हैं।
सनातन संस्कृति में जगन्नाथ पुरी और जगन्नाथ मंदिर दोनों का ही विशेष महत्व है। सनातन के चार धामों में से एक जगन्नाथ धाम का प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर भी स्वयं में अनेकों आश्चर्यजनक रहस्य समाहित किए हुए है। यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है जिसमें भगवान कृष्ण, उनके बड़े भाई दाऊ बलराम और छोटी बहन सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित है। यहां प्रत्येक वर्ष विश्व के प्रत्येक भाग से लाखों व्यक्ति दर्शनार्थ आते हैं। इस मंदिर की अनेकों घटनाएं लोगों में बड़ी जिज्ञासा और कौतूहल का कारण है यद्यपि इन रहस्यों का उत्तर कभी मिला नहीं है।

 
सनातन के चार पवित्र धाम हैं- बद्रीनाथ धाम, द्वारकाधीश, रामेश्वर, और जगन्नाथ धाम। इन चारों ही धामों को चार युगों (सतयुग, द्वापर, त्रेता एवं कलयुग) का प्रतीक माना जाता है। यह चारों धाम कृष्ण से ही संबंधित है। मान्यतानुसार सर्वप्रथम श्री कृष्ण, बद्रीनाथ में जाते हैं और वहां स्नान करते हैं। फिर द्वारिका जाकर वस्त्र बदलते हैं और फिर पुरी में पधारकर वह भोजन करते हैं तथा रामेश्वर में भगवान विश्राम करते हैं। चारों धामों की यही प्रक्रिया मानी जाती है। जगन्नाथ धाम सप्तपुरी में से भी एक है इसलिए यह सनातन में विशिष्ट महत्व रखता है।


जगन्नाथ पुरी समुद्र के किनारे बसा हुआ उड़ीसा का एक प्रसिद्ध स्थान है। प्राचीन काल में उड़ीसा को उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था। इसके अतिरिक्त इसके और भी अनेकों नाम थे। इस स्थान को कभी ‘श्री क्षेत्र' तो कभी ‘पुरुषोत्तम क्षेत्र', कभी ‘शंख क्षेत्र', कभी ‘नीलांचल', ‘नीलगिरी' और ‘जगन्नाथ पुरी' आदि नामों से भी जाना जाता रहा है। यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही भारत का सांस्कृतिक और व्यावसायिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। चार धाम में से एक होने के कारण यह संस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण था ही, बंदरगाह होने के कारण यहां से, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा, थाईलैंड आदि देशों से हमारा सामुद्रिक व्यापार भी हुआ करता था। इसीलिए व्यावसायिक दृष्टि से भी यह अत्यंत महत्वपूर्ण एवं संपन्न प्रदेश था। वर्तमान में यह स्थान जगन्नाथपुरी के नाम से प्रसिद्ध है और जगन्नाथ पुरी में होने वाली विश्व विख्यात, पवित्र रथ-यात्रा इसकी प्रसिद्धि का विशेष कारण है। जगन्नाथ रथ यात्रा भारत ही नहीं अपितु विश्व भर में प्रसिद्ध है और यह किसी भी धार्मिक सांस्कृतिक समारोह में होने वाली विश्व की सबसे बड़ी यात्रा है। जिसमें प्रत्येक वर्ष लाखों देसी विदेशी श्रद्धालुजन भाग लेते हैं जिसका प्रसारण सभी टीवी चैनलों पर लाइव किया जाता है। यह यात्रा पुरी के अतिरिक्त देश के अनेक विभिन्न क्षेत्र में भी मंदिरों से निकली जाती है। आषाढ़ मास में संपन्न होने वाली इस यात्रा का भव्य उत्सव दर्शनीय है। इस समय भगवान श्री कृष्ण रथ में बैठकर अपने भाई और बहन के साथ अपनी मौसी गुंडिचा के घर की यात्रा करते हैं। सभी भक्तों में भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने की होड लगी रहती है। मान्यता है कि इस यात्रा में भाग लेने वाले सभी लोगों के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। रथ यात्रा खींचने में कोई भेदभाव नहीं है कोई भी इस भक्त रथ को खींच सकता है, बस अवसर मिलने की बात है।


जगन्नाथ मंदिर अनेक रहस्यों से भरा है। सामान्यतः मंदिरों में मूर्तियां पत्थर से बनी होती है जिनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है किंतु इस मंदिर की मूर्तियां काष्ठ की बनी है और अधूरी है। यद्यपि सनातन धर्म में खंडित मूर्तियों का पूजन अमान्य है किंतु आश्चर्यजनक रूप से यहां तीनों भाई बहनों, भगवान कृष्ण, बलराम और बहन सुभद्रा की अधूरी मूर्तियां ही प्रतिष्ठित की गई है। 
शास्त्रानुसार इन अधूरी मूर्तियों की भी एक रोचक कहानी है। माना जाता है कि जब देवशिल्पी विश्वकर्मा बूढ़े बढ़ई के रूप में भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां बनाने को राजी हुए तो उन्होंने राजा इंद्रद्युम्न के समक्ष शर्त रखी कि वह भगवान की मूर्तियों को एकांत में दरवाजा बंद करके बनाएंगे और जब तक वह मूर्तियां बनाने का कार्य संपन्न नहीं कर लेते तब तक किसी का भी व्यक्ति का भीतर प्रवेश वर्जित है। यदि इसी बीच किसी ने दरवाजा खोल दिया तो वह मूर्ति निर्माण का कार्य बीच में ही छोड़ देंगे। इस प्रकार विश्वकर्मा जी बंद दरवाजे के भीतर मूर्ति निर्माण के कार्य में लग गए और बाहर बैठे राजा निरंतर मूर्ति बनाने की आवाज सुनते रहते। एक दिन राजा को भीतर से छैनी हथौड़े की आवाज नहीं सुनाई थी तो उन्हें चिंता हो गई। उन्हें लगा कि कहीं बूढ़े बढ़ई बीमार तो नहीं हो गए और इसी चिंता में, शंका वश राजा ने दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खुलते ही शर्त के अनुसार विश्वकर्मा मूर्तियों का काम अधूरा छोड़ लुप्त हो गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व बहन सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी ही रह गई। राजा बहुत दुखी हुए और रोने लगे तो प्रभु ने उन्हें दर्शन देकर राजा को वचन दिया कि राजन आप दुखी ना हो! मैं इसी आकार में पृथ्वी लोक में विराजूंगा। तत्पश्चात राजा ने इसे हरि इच्छा मानकर, इन्हीं अधूरी मूर्तियों को १०८ घड़े के जल से अभिषेक कराकर मूर्तियों की स्थापना कर दी। यह दिन ज्येष्ठ की पूर्णिमा का माना जाता है। मूर्तियों के विषय में यही परंपरा आजतक चली आ रही है।
इस मंदिर का सबसे भव्य उत्सव कोलीबोरो होता है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ का जन्मोत्सव मनाया जाता है जिसमें उनके पुराने शरीर (मूर्ति) का दूसरी नई मूर्तियां में स्थानांतरण होता है। यह अनुष्ठान १२ से १५ वर्षों में होता है। अधिमास वर्ष के समय, ज्येष्ठ मास (जून, जुलाई) को इस अनुष्ठान के लिए शुभ माना जाता है।


इस मंदिर को लेकर और भी अनेक रहस्य है जिनका उत्तर वैज्ञानिकों के पास भी नहीं है। यह मंदिर समुद्र के किनारे बना है और यहां एक सिंह द्वार है। जहां से श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करते हैं। सिद्धांतानुसार समुद्र में निरंतर उठने वाली लहरों का शोर समुद्र के किनारे अवश्य ही सुनाई देता है। किंतु आश्चर्य है कि जब तक लोग इस द्वार से बाहर हैं उन्हें समुद्र की लहरों की ध्वनि पूर्णतया सुनाई देती है परंतु जैसे ही मंदिर के भीतर एक कदम भी रखते हैं तो लहरों की आवाज आनी बंद हो जाती है और फिर दर्शन के बाद जैसे ही भक्त एक भी पांव बाहर धरते हैं समुद्र का शोर उन्हें सुनाई देने लगता है। यह भी आश्चर्यजनक रहस्य है जिसका कारण आज तक पता नहीं चल पाया है।
एक किंवदंती है कि जब भगवान कृष्ण ने देह त्याग किया तो उनका संपूर्ण शरीर तो पांच तत्वों में विलीन हो गया किंतु उनका हृदय किसी जीवित हृदय की भांति ही सुरक्षित रहा और वह सजीव हृदय के समान ही धड़कता रहा। मान्यतानुसार वह आज भी सुरक्षित है तथा भगवान कृष्ण की काष्ठ की मूर्ति में आज भी किसी जीवित व्यक्ति के हृदय की भांति ही धड़कता रहता है। 


यद्यपि इस विषय में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। प्रत्येक १२ वर्ष बाद जब जगन्नाथ पुरी के मंदिर में इन तीनों मूर्तियां को बदला जाता है तो उस समय घटित होने वाली कुछ बातें अतिविशिष्ट हैं। जो इस अवसर को रहस्यमय, चमत्कारिक एवं अद्भुत बना देती है। जब यहां मूर्ति बदलने की प्रक्रिया संपन्न की जाती है तो उस समय संपूर्ण शहर की बिजली काट दी जाती है, अर्थात ब्लैक आउट हो जाता है। बिजली काटने से पूर्व ही मंदिर की सुरक्षा सी.आर.पी.एफ. के सुपुर्द कर दी जाती है। नितांत अंधेरे में जब हाथ को हाथ नहीं सूझता, मंदिर में किसी का भी प्रवेश पूर्णतया वर्जित होता है तब कड़ी सुरक्षा के बीच मंदिर में एक पुजारी जिसे मूर्तियां बदलनी होती है, को विशेष प्रक्रिया के दौरान, उसकी आंखों पर पट्टी बांधकर मंदिर के भीतर प्रवेश करवाया जाता है ताकि वह कुछ देख ना सके। यही नहीं पुजारी के हाथों में दस्ताने भी पहना दिए जाते हैं। इसके बाद ही पांडा भीतर जाकर मूर्ति बदलने की प्रक्रिया संपन्न करता है जिसमें मूर्ति के भीतर का ब्रह्म पदार्थ नहीं बदलता उसे ज्यों का त्यों पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में रख दिया जाता है, इसे ब्रह्म पोटली भी कहते हैं। जब से मंदिर बना है तब से यह ब्रह्म पदार्थ निरंतर चला आ रहा है ब्रह्म पोटली कभी नहीं बदलती। इस ब्रह्म पदार्थ का रहस्य आजतक मूर्तियां बदलने वाले पुजारी भी नहीं जान पाए हैं। यह परंपरा सैकड़ों सालों से यूं ही चली आ रही है। इस ब्रह्म पदार्थ को आज तक किसी ने नहीं देखा और यही इस मंदिर और उसकी मूर्तियां से जुड़ा सबसे बड़ा रहस्य है। मान्यता है कि यदि कोई इसे देख लेगा तो वह तत्काल ही ब्रह्मलीन हो जाएगा। 


यद्यपि मूर्ति बदलने की परंपरा का निर्वाह करने वाले कुछ पुजारियों से जब उनके अनुभव के विषय में पूछा गया तो उन्होंने इतना ही कहा कि जब वह पुरानी मूर्तियों में से ब्रह्मा पदार्थ लेकर नयी मूर्ति में डालते हैं तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे उनके हाथों में खरगोश जैसा कुछ उछल रहा है। यद्यपि दस्तानों के कारण उन्हें पूर्णतया अनुभव नहीं हो पता है। लगता है जैसे उसमें कुछ हरकत है या कुछ जान है, पर इस ब्रह्म पदार्थ को किसी ने भी ठीक से देखा समझा नहीं है। इसी ब्रह्म पदार्थ को भगवान कृष्ण का हृदय कहा जाता है और यही इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य है।


जगन्नाथ मंदिर के पास मोक्ष घाट है जहां शवदाह किया जाता है। मान्यतानुसार यहां संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंदिर के बाहर तक शव जलने की गंध आती रहती है किंतु जैसे ही एक भी कदम मंदिर में रखते हैं तो गंध गायब हो जाती है और मंदिर से बाहर आते ही चिता के जलने की गंध फिर से आने लगती है। एक ही क्षेत्र में मंदिर के भीतर वह गंध कहां गायब हो जाती है यह आज तक एक रहस्य बना हुआ है।


साधारणता विश्व के सभी मंदिरों के ऊपर पक्षी बैठते भी हैं और उड़ते भी हैं परंतु जगन्नाथ मंदिर के ऊपर ना कोई पक्षी बैठता है ना मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी उड़ता है। यह भी एक कौतूहल का विषय है जिसका रहस्य आज तक किसी को समझ नहीं आया। इस क्षेत्र के ऊपर से कोई विमान भी नहीं उड़ता ताकि किसी भी प्रकार की हानि की आशंका न रहे। सरकार ने इसे नो फ्लाई जोन घोषित किया हुआ है।


जगन्नाथ मंदिर बहुत बड़े क्षेत्रफल लगभग चार लाख वर्ग फुट में फैला हुआ है। जिसकी ऊंचाई २१४ फीट है लेकिन फिर भी दिन भर चाहे कितनी भी धूप चढ़ आए मंदिर की परछाई कभी नहीं बनती। इस मंदिर के पास खड़े होकर यदि इसे देखें तो इसका शिखर दिखाई नहीं पड़ता। धूप किधर से भी हो पड़ती मंदिर की छाया कभी नहीं बनती। पता नहीं कौन सी वास्तुकला, कौन से इंजीनियरिंग ज्ञान से यह मंदिर बना है जो इसकी परछाई नहीं बनती? इस रहस्य को आज तक कोई वैज्ञानिक भी नहीं जान पाया। 


भारत के किसी भी मंदिर में ध्वज को रोज बदलने की परंपरा नहीं है परंतु इस मंदिर का ध्वज प्रतिदिन बदला जाता है। जिसे उल्टे हाथ के सहारे से ऊपर उल्टा चढ़ते हुए बदला जाता है ताकि ध्वज देखने में सीधा दिखाई दे। आश्चर्य की बात यह है कि इतनी ऊंचाई के बावजूद भी मंदिर के सबसे ऊपर वाले शिखर को छोड़कर मंदिर पर ध्वज बदलने के लिए चढ़ाई में किसी रस्सी का इस्तेमाल नहीं होता और जगन्नाथ जी की कृपा से आज तक कोई दुर्घटना भी नहीं घटी है। मंदिर का ध्वज बहुत सुंदर है जिस पर शिव का चंद्रमा बना हुआ है। मान्यता है कि यदि किसी दिन मंदिर का ध्वजा नहीं बदला गया तो मंदिर अगले १८ वर्षों के लिए बंद हो जाएगा। भगवान जगन्नाथ दर्शन नहीं देंगे।


जगन्नाथ मंदिर पर अष्टधातु से निर्मित एक सुदर्शन चक्र लगा है जिसे नील चक्र भी कहा जाता है और अद्भुत बात यह है कि इसे चाहे जिस दिशा से जहां से भी देखा जाए यह हमें सीधा ही दिखाई देता है। इस चक्र का मुंह हमेशा देखने वाले को अपनी ओर ही नजर आता है। यह चमत्कारिक बात पुरी के सभी मंदिरों के लिए सत्य है। जगन्नाथ पुरी में जहां भी सुदर्शन चक्र लगेगा उसकी स्थिति भी यही रहेगी। उन सब का मुंह देखने वाले को अपनी ओर ही नजर आता है। ऐसा क्यों है, यह रहस्य आज तक अनसुलझा है। अन्य स्थानों पर भी लोगों ने इस चक्र को स्थापित करने की बहुत कोशिश की परन्तु पुरी के अतिरिक्त ऐसा और कहीं भी संभव नहीं हो पाया।


जगन्नाथ मंदिर की प्रसिद्ध रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई है। ८००००० लड्डू एक साथ बनाने के कारण इस रसोई का नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस में भी दर्ज है। १ एकड़ और ३२ कमरों में फैली इस रसोई में ५०० रसोईए तथा ३०० सहायक प्रतिदिन महाप्रसाद बनाते हैं। यहां खाना पुरातन परंपरा अनुसार लकड़ी से चूल्हे पर बनता है जिस पर सात मिट्टी की हांडी एक के ऊपर एक रखकर प्रसाद पकाया जाता है। जिसे अटका कहते हैं। परंतु आश्चर्यजनक बात यह है कि सर्वप्रथम सबसे ऊपर वाली अर्थात सातवीं हांडी का प्रसाद पक कर तैयार होता है। उसके बाद छटी उसके बाद पांचवी उल्टे क्रम के हिसाब से पहली हांडी का खाना सबसे बाद में पकता है। ऐसा क्यों है? इसका कारण आज तक वैज्ञानिक भी समझ नहीं पाए क्योंकि नियमानुसार तो खाना सर्वप्रथम पहले बर्तन में बनकर तैयार होना चाहिए।


जगन्नाथ मंदिर का झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में बहता है अर्थात हवा पूर्व की है तो झंडा पश्चिम की ओर लहराता है और पश्चिम की है तो पूर्व की ओर। इसका कारण भी आज तक कोई नहीं जान पाया। सामान्यतः कोई भी वस्तु हवा के बहने की दिशा में ही चलायमान होती है किंतु यहां ऐसा नहीं है। सवेरे हवा समुद्र से शहर (मंदिर) की ओर चलती है और बाद में शहर से समुद्र की ओर परंतु मंदिर का झंडा सदैव विपरीत दिशा में ही लहराता है ऐसा क्यों है यह प्रश्न आज तक अनुत्तरित है। जगन्नाथ मंदिर के इन रहस्यों के समक्ष विज्ञान भी नतमस्तक है।


इस प्रकार जगन्नाथ मंदिर में अनेकों ऐसे अनसुलझे रहस्य है जिनका उत्तर विज्ञान के पास भी नहीं है। यद्यपि उनकी व्याख्या भक्तगण, वैष्णव परंपरा एवं भगवत कृपा को आधार बनाकर अपने मतानुसार करते रहते हैं। जिसमें उनकी भगवान जगन्नाथ की प्रति अपार श्रद्धा आस्था और विश्वास स्पष्ट झलकता है किंतु यह तो सत्य ही है कि जगन्नाथ मंदिर में होने वाली अनेक ऐसी घटनाएं हैं जिन्हें केवल दैवीय चमत्कार की संज्ञा ही दी जा सकती है। जो विज्ञान से परे केवल आस्था और विश्वास का विषय है। या यूं कहें कि ईश्वर विज्ञान से परे हैं, ऊपर है। नित्य प्रति होने वाली यह चमत्कारी घटनाएं मंदिर को रहस्यमय और व्यक्ति के मन को भागवतमय बनाती है। मंदिर की इन अद्भुत घटनाओं के पीछे परम शक्ति का आभास तो स्पष्ट ही दृष्टिगत होता है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ आज भी इस मंदिर में निवास करते हैं और मंदिर के रहस्य इस विश्वास को बल देते हैं। इस क्षेत्र में एक विचित्र भावपूर्ण और सकारात्मक ऊर्जा का आभास होता है। मंदिर में आकर भक्त, श्रद्धा और भक्ति से भाव विभोर हो उठता है और सहज ही मन और शीश भागवत चरणों में नत हो जाते हैं। जय जगन्नाथ!!

सीमा तोमर
 दिल्ली

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