जिन्दगी

"कुछ नहीं , वे घर गये हैं ।" कहकर रीना ने बात ढकनी चाही ताकि किसी को कुछ पता न चले ।     रीना घर के अन्दर चली गयी । वह फफक कर रो पड़ी थी । बेटे राहुल ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा,"मत रो माँ ,मैं हूँ ना !" रीना अपने दस साल के बेटे को गले से लगा कर फिर से रो पड़ी ।   

Nov 15, 2023 - 17:58
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जिन्दगी
life

आज सुबह से ही उसके घर से झगड़े की आवाज आ रही थी । लोगों ने यह सोचा कि शायद ऐसे ही मामूली घरेलू झगड़ा होगा ।करीब एक साल से उनके घर से ज्यादातर लड़ाई झगड़े की आवाज़ आती ही रहती थी। अचानक लोगों ने देखा कि पति महोदय अपनी अटैची लेकर बाहर जा रहे हैं और पत्नी तथा करीब दस ग्यारह साल का बच्चा उन्हें रोकने का भरसक प्रयत्न कर रहे है पर वह नहीं रूका और चला गया । मायूस से माँ बेटे उसे बस देखते रहे ।        

  शहरीकरण का इतना भयंकर रुप हो गया है कि लोग अब एक दूसरे के बीच में बोलते तक नहीं ,पहले दस लोग खड़े हो जाते थे किसी भी मामले में नतीजन लोग कुछ भी कदम उठाने से पहले डरते थे । अब घर तो घर ,सड़क पर भी कोई किसी को मारपीट रहा हो मजाल क्या कि कोई बीच बचाव कर दे । संवेदना कहीं गायब होती जा रही है ,बच रही है बस वेदना ।
          " रीना क्या बात है ?" अब एक पड़ोसन बाहर निकलीं ।       

"कुछ नहीं , वे घर गये हैं ।" कहकर रीना ने बात ढकनी चाही ताकि किसी को कुछ पता न चले । 
   रीना घर के अन्दर चली गयी । वह फफक कर रो पड़ी थी । बेटे राहुल ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा,"मत रो माँ ,मैं हूँ ना !" रीना अपने दस साल के बेटे को गले से लगा कर फिर से रो पड़ी ।   

"हाँ बेटा, अब तो तुम ही मेरे सब कुछ हो । तुम भी मुझे मत छोड़ देना बेटा ।" वह बेटे को गले से  चिपटा लेती है। दरअसल रीना की कहानी शुरू होती है जब वह तेरह चौदह साल की एक छोटी-सी लड़की थी। हंसमुख स्वभाव की मस्तमौली लड़की । नवीं का पेपर खत्म हुआ था सो दिनभर सहेलियों के साथ खेलती रहती थी । वह बहुत ही सुन्दर थी ,बिलकुल गोरी चिट्टी, तीखे नैन-नक्श तथा साथ में लम्बी कद काठी । उसकी ओर सभी की निगाहें बरबस ही उठ जाती थीं पर रीना अपने बचपने में ही खोयी हुई थी। घर में दो भाई तथा दो बहनों में सबसे छोटी होने के कारण उसका घर में प्यार दुलार भी सबसे ज्यादा ही था।           

 उन्हीं दिनों उसके घर में करीब चौबीस साल का एक किराएदार आया । वह ज्यादातर बाहर ही कोई काम करता था । कुछ दिनों के लिए ही कमरे पर ठहरता था। रीना ने उसकी तरफ कभी भी ध्यान नहीं दिया था वह उसके बड़े भाइयों का हमउम्र जो था।       

अचानक रीना को लगा कि किसी की आँखें उसका पीछा कर रही है , पर वह इस बात पर बहुत ध्यान नहीं देती थी ।  फिर एक दिन उसी लड़के ने रीना को अकेला देख कर कहा  "सुनो ,मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ ।"

"क्या ?' रीना ने सहमते हुए पूछा । "मैं तुम्हें चाहता हूँ ।" उसका सीधा सा जवाब था या उसे अपनी तरफ खींचने का जाल। यह सुनकर रीना को बहुत गुस्सा आया ,पर रीना बगैर कुछ उत्तर दिये वहाँ से हट गयी।दुबारा फिर उसने रीना से बात करनी चाही तो उसने उसे अपने भाइयों की धमकी भी दी थी ।

 "अगर आपने फिर ऐसा कहा तो मैं अपने भाई  से आपकी शिकायत करूँगी। अब कभी मुझसे इस तरह
की बातें मत करना।"  "ठीक है, मैं तो बस इतना ही कहना चाहता हूँ की तुम बहुत ही सुन्दर हो और मुझे अच्छी लगती हो। तुमको नहीं अच्छा लगता है तो मैं अब नहीं कहूँगा। " कहते हुए दीपक वहाँ से हट गया।        

रीना डर सी गयी थी उससे कभी इस तरह किसी ने भी बात नहीं की थी । उसे क्रोध के साथ ही साथ डर भी लग रहा था की उसके भाई और पापा सुनेंगे तो उसे क्या कहेंगे। किन्तु उस आदमी ने यानी दीपक ने रीना का अभी पीछा नहीं छोड़ा । धीरे-धीरे अब रीना को भी उसकी बातें अच्छी लगने लगीं । अब वे दोनों चुपके चुपके एक दूसरे से बातें भी करने लगे । अलग अलग जाति का होने के कारण उनके घरवाले उनका विवाह नहीं करायेंगे इस बात से भी वे अच्छी तरह से अवगत थे।    

 "रीना मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ परन्तु तुम्हारे पापा व भाई तुम्हारी शादी मुझसे नहीं कराएंगे। एक तो हमारी जाति अलग-अलग है दूसरा मैं तुमसे बहुत बड़ा भी हूँ।" दीपक ने अपने चेहरे पर उदासी का बनावटी चादर डालते हुए कहा। 
 फिर क्या होगा ? रीना ने कहा। चौदह पन्द्रह साल की उम्र बहुत ही ना-समझ होती है।उसके मन में दीपक के प्रति आकर्षण जरूर था परन्तु जीवन के यथार्थ स्वरूप से वह सर्वथा अपरिचित थी। दीपक ने रीना के आगे फिर एक जाल फेंका, "चलो हम लोग दूसरे शहर चलते हैं । वहाँ पर मेरी बहुत ही अच्छी नौकरी लग रही है । मैं तुम्हें बहुत ही खुश रखूँगा ।तुम केवल मुझ पर भरोसा रखो ।"         

 रीना ने सहमति में सिर हिला दिया । हाईस्कूल में पढ़ने वाली यह छोटी सी लड़की भागने को तो तैयार थी किन्तु अपने भविष्य पढ़ने की योग्यता उसमें नहीं थी। वह पूरी तरह दीपक के जाल में फंस चुकी थी। हाईस्कूल की परीक्षाएं नजदीक थी किन्तु रीना को परीक्षा से ज्यादा वह आदमी यानि की दीपक अच्छा लगने लगा था ।                

परीक्षा आरम्भ होने से पहले ही वह दीपक के साथ चली गयी । घर वालों ने पहले तो उसे बहुत खोजा फिर थक हारकर बैठ गये । घर की इज्जत और न उछले इसलिए पुलिस केस भी नहीं किया। अड़ोस-पड़ोस में भी कह दिया कि  उसकी नानी बीमार हैं उनके ही देख भाल के लिए वह वहां गयी है वहीं से अपनी पढ़ाई भी पूरी करेगी। 
      इधर दीपक रीना के साथ बिना विवाह किये ही रहने लगा । वह कभी उसे अपने घर भी नहीं ले गया जब भी रीना उससे घर ले चलने या विवाह की बात करती वह हमेशा ही टाल देता था। उसे लगता था की रीना के घर वाले उन दोनों को बुलाकर उनकी शादी भी करेंगे और ढेर सारा दान दहेज भी देंगे। आखिर रीना इतने अमीर 
परिवार से जो थी। परन्तु रीना के घरवाले जानकर भी अनजान बने रहे। उन्होंने उसे मन ही मन मृत घोषित कर दिया था।     

 धीरे धीरे समय आगे बढ़ा , समय तो अनवरत चलता ही रहता है वह भला कब किसकी राह देखता है ।उनके एक बेटा भी हो गया वह भी अब बड़ा होने लगा पढ़ने जाने लगा । पर रीना के मायके वालों ने उसे तो अपने लिए मृत मान लिया था। उन्होंने उसे अपनाने से साफ मना कर दिया। मायके वालों की याद तो उसे बहुत आती थी पर दीपक के साथ बारह-तेरह साल रहते हो रहा था तो अब वह इधर से भी निश्चिंत थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि दीपक उसे इस तरह मंझधार मेें छोड़ कर जा भी सकता है

  दीपक की अच्छी नौकरी लग गयी थी , पैसा भी अच्छा आने लगा तो उसके घरवाले भी उसे अपनी ओर खींचने लगे । अगर  पैसा हो तो कोई लड़के की उम्र भी नहीं देखता। वह तो अभी बत्तीस-तैंतीस साल का ही तो
हुआ था । अब रिश्ते भी आने लगे क्योंकि उसने रीना वाली बात किसी रिश्तेदार को बताई ही नहीं थी । वह  रीना को कभी भी अपने घर  नहीं ले गया था । केवल उसके माँ-बाप और भाई-भाभी को ही इस बात की जान कारी थी ।उन्होंने उसे फिर से अपनी ओर खींचने की कोशिश शुरू कर दी । उसके लिए एक अच्छा रिश्ता मिल रहा था और वहाँ से काफी मोटी रकम भी मिल रही थी।

दहेज़ के लालच ने उसकी आँख पर ऐसा पर्दा डाल दिया कि उसने रीना और उसके बच्चे को छोड़कर दूसरी शादी करने का फैसला कर लिया । इधर रीना के पास तो अपनी शादी का भी कोई सबूत नहीं था। रीना को न तो उसके अपने मायके वाले ही अपनाने को तैयार हुए और न ही वह इतनी पढ़ी लिखी थी कि वह कोई नौकरी ही कर सके । पुलिस और कोर्ट कचहरी तो पैसों का खेल है । गरीब इंसान पहले पेट पाल ले यही बहुत होता है,उसके पास इतना पैसा कहाँ ? वह अपने बेटे के साथ बिलकुल अकेली पड़ गयी थी।         

उसकी बातें सुनकर आँखों में आँसू आ गये । नारी जीवन की यह एक विकटकथा है । पुरुषों के समाज में नारी का स्थान गौण है। वह पुरुषों के सामने कई बार हार जाती है । किन्तु अगर पहले जरा भी समझदारी दिखाती तो ऐसी परिस्थिति में वह कभी नहीं पड़ती । वह अपनी पढ़ाई पूरी करती । अपने पैरों पर खड़ी होती। किसी भी अनजान व्यक्ति के हाथों में अपना जीवन ही सौंप देना बिलकुल ही गलत था । आखिर गलत हुआ भी ।बच्चा तो दोनों का था पर जिम्मेदारी डाल दी गयी माँ पर क्योंकि बिना विवाह की सन्तान के लिए यह समाज दोषी केवल माँ को ही बनाता है । पिता तो पाक पवित्र होता है , एक को छोड़कर दस शादियाँ भी कर ले तो उसे सब कुछ माफ होता है ।
         रीना की सारी बातें सुनकर उसके दयनीय स्थिति पर एक शिक्षिका द्रवित हो गयीं । 24-25 साल की एक महिला अपने बच्चे के साथ कैसे अकेले रहेगी ? वह क्या करेगी ? कई सवाल सामने थे । वे आगे बढ़ीं और रीना को ढाढस बंधाते हुए वे उससे बोलीं-
 "रीना पहले तो यह कमरा छोड़कर मेरे पास आ जाओ ,मैं तुम्हें अपने मकान में एक कमरा दे दूँगी ।"
 "दूसरी बात मैं तुम्हें किसी कम्पनी में लगवा दूँगी कम से कम अपना और अपने बच्चे का खर्च तो निकाल लोगी, बाकी तो मैं हूँ ही तुम्हारे साथ । मेरी दो बेटियां हैं अब एक और सही ।" रीना के चेहरे पर एक हल्की -सी सुकून की रेखा तिर सी गयी। मानों ईश्वर ही उसका सहारा बनकर मैडम के रूप में उसके सामने खड़े हों।
   
    डॉ.सरला सिंह स्निग्धा 
     दिल्ली 

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