टाइम टेबल

This story highlights the challenges faced by teachers and the principal in a rural school, focusing on the struggle to prepare a proper timetable. It portrays the balance between experience, discipline, and overall student development with humorous and realistic incidents.छोटी-छोटी बातों पर चुटकियाँ लेना उनकी आदत है। तमाम खामियों के बाद भी क्षेत्र का सबसे प्रतिष्ठित विद्यालय इसी को माना जाता है। हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी बात टाइम टेबल पर फँस जाती है। छात्रों ने इकट्ठे होकर प्रधानाचार्य से प्रार्थना की कि ‘श्रीमान जी मुझे विद्यालय आते हुए १९ दिन बीत चुके हैं परंतु हिंदी और विज्ञान के सिवाय अन्य किताबों का तो श्री गणेश भी नहीं हुआ है।

Oct 23, 2025 - 18:32
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टाइम टेबल
Time table

जब शिक्षा व्यापार बनी तो उन लोगों के मुँह में भी पानी आने लगा जो कभी भैंस चराते हुए भी विद्यालय के पीछे से नहीं गुजरे थे। संत महात्माओं की भी बाँछें खिल उठी। अगर ये पैसा इस क्षेत्र में लगा दिया तो आमदनी भी होगी और नाम भी। लोग सदियों तक याद करेंगें। जगह-जगह संत महात्माओं के नाम से विद्यालय खुलने लगे। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। जहाँ न तो सुशिक्षित अध्यापक पहुँच सकते हैं और न ही बाहर के छात्र। आज हम आपको ऐसे ही एक विद्यालय में ले चलते हैं। विद्यालय एक ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है जो मुख्य मार्ग से लगभग ९ किमी देहात क्षेत्र में है। निजी वाहनों के सिवा यातायात की कोई सुविधा नहीं है। इसी कारण विद्यालय में शहरी अध्यापक व विद्यार्थी दोनों का अभाव है। अतः प्रधानाचार्य व प्रबंधक को सिर खुजलाकर क्षेत्रीय अध्यापक ही रखने पड़ते हैं। इस विद्यालय की प्राथमिकता यह भी है जो १०- २० बच्चों का विद्यालय में एडमिशन कराएगा उसे बिना साक्षात्कार के ही शिक्षक पद पर नियुक्ति मिल जाएगी । विद्यालय में भौतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है परंतु उनका समुचित प्रयोग नहीं हो पाता है क्योंकि अधिकांश अध्यापक अप्रशिक्षित हैं,कुछ ट्यूशन बाज हैं, कुछ आलसी कुछ, लापरवाह तो कुछ विद्यालय प्रबंधन के खास आदमी हैं। उनमें से एक मुंशी तोताराम है जो ट्यूशन विभाग से सेवा निवृत होकर औपचारिक विद्यालय में आए हैं। उनकी अवस्था लगभग ७१ वर्ष की है। अतः सभी शिक्षक उनकी उम्र व अनुभव का सम्मान करते हैं। समय पालन उनकी  सबसे बड़ी विशेषता है।

विद्यालय परिवार में १४ शिक्षक हैं परंतु घंटी लगाने वाला चपरासी कई वर्षों से नहीं है। अतः घंटी बजवाने की जिम्मेदारी वरिष्ठ अध्यापकों की ही होती है। प्रधानाचार्य भद्र व्यक्ति हैं वह अपनी सहनशीलता व ईमानदारी के कारण सबके प्रिय हैं। इसलिए वे अकारण  किसी की आलोचना नहीं करते। परंतु जोधा सिंह व गिरधारी मनमौजी स्वभाव के हैं। छोटी-छोटी बातों पर चुटकियाँ लेना उनकी आदत है। तमाम खामियों के बाद भी क्षेत्र का सबसे प्रतिष्ठित विद्यालय इसी को माना जाता है। हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी बात टाइम टेबल पर फँस जाती है। छात्रों ने इकट्ठे होकर प्रधानाचार्य से प्रार्थना की कि ‘श्रीमान जी मुझे विद्यालय आते हुए १९ दिन बीत चुके हैं परंतु हिंदी और विज्ञान के सिवाय अन्य किताबों का तो श्री गणेश भी नहीं हुआ है। जो अध्यापक कक्षा में घुस जाता है निकलने का नाम ही नहीं लेता,पक जाते हैं लैक्चर सुनते-सुनते ....। `चलो जाओ, हम आज ही तुम्हारे टाइम टेबल का प्रबंध करते हैं’ प्रधानाचार्य ने आश्वासन दिया। ‘अरे दीनानाथ !छुट्टी के बाद आज टाइम टेबल बना लिया जाए।’ ‘हाँ हाँ क्यों नहीं?  बिना टाइम टेबल के तो सब कुछ अधूरा है।दीनानाथ ने स्वीकृति दी। प्रधानाचार्य ने सभी शिक्षकों को बुलाकर मीटिंग की परंतु माधव मिश्र ने बाजार जाने का, रामरतन ने डीजल लाने का तो तौलेराम ने अपनी भैंस को प्यासा बताकर अपने घर की राह पर ली। संयोगवश  उस दिन पूर्णमासी थी अतः मुंशी तोताराम भी गंगा स्नान के अवकाश पर थे । सायं ४:०० तक माथा पच्ची के बाद टाइम टेबल को अंतिम रूप दिया गया।

सुबह को मुंशी तोताराम की नजर सबसे पहले इसी पर पड़ी। देखते ही मुंशी जी भन्ना उठे। ‘हमारी अनुपस्थिति में टाइम टेबल? तुम लोग कल के बच्चे हो। भला हमसे अच्छी अंग्रेजी और संस्कृत कौन पढ़ा सकता है? छप्पन बरसें हो गई है पढ़ाते हुए,इतनी उम्र के तो तुम्हारे पिताजी भी नहीं होंगे। धूप में ही बाल सफेद नहीं किये हैं हमने,जरा जरा से छोकरों को इतने महत्वपूर्ण विषय दे दिए बंटाधार हो जाएगा विद्यालय का यदि यही रहा तो। दो मिनट की कमेंट्री के बाद जैसे तैसे प्रधानाचार्य ने उनका दिमाग ठंडा किया। परंतु इतना भाषण सुनकर जोधा सिंह की भौंहें तन गईं। जीवन में ट्यूशन के सिवा कुछ देखा भी है सिर्फ रट्टू तोता बनाना ही सब कुछ नहीं होता, विद्यालय का अर्थ है छात्र का सर्वांगीण विकास... अनुशासन....। लेकिन कुछ भी हो यह समय सारणी दुबारा ही बनेगी। तोताराम ने झल्लाकर कहा। चलिए हम आपकी ही बात मान लेते हैं,बुजुर्ग हमेशा अनुभव की बात बताते हैं समय सारणी द्वारा बना लेते हैं। प्रधानाचार्य ने संतोष जताते हुए कहा। टाइम टेबल दोबारा बना परंतु यह कार्य आनन-फानन में हुआ इसलिए फिर अधिकांश विषय विशेषज्ञों को नहीं मिले। परंतु तोताराम के डर से किसी ने आपत्ति नहीं उठाई। ठाकुर जोधा सिंह विद्यालय के वरिष्ठ अध्यापक हैं तथा कार्यालय का कार्यभार भी वही सँभालते हैं इसलिए अक्सर उनके घंटे छूट जाते हैं तो अन्य लोगों में कानाफूसी शुरू हो जाती है। तौलेराम- `देखा सियासत का खेल सभी विषय बड़ी कक्षाओं के ले लिए हैं । सभी बच्चे शांत बैठते हैं वाह! क्या आनंद है? कहानी सुनाते जाओ बच्चों के दिमाग में एक-एक शब्द उतरता जाए। यदि मुझे पढ़ाने को मिलें तो सारा इतिहास एक महीने में ही रटा दूँ। परंतु क्या करूँ? हमें तो प्राइमरी में ही नाक पोंछने से निजात कहाँ।

जूनियर वाले क्या कम हैं पूरे दिन झगड़ा निपटाते रहो,खोपड़ी खा लेते हैं छोटे-छोटे बच्चे। राय बहादुर ने स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा। प्राइमरी से बढ़कर नरक कहाँ हो सकता है? इन्हें तो डंडा भी नहीं मार सकते। राय बहादुर बोले। आप ने तो मेरे मुँह की बात छीन ली है। जो मिस्टर गिरधारी सिंह है सारे पापड़ तो उन्हीं के बेले हुए हैं। भला कोई उनसे क्या कह सकता है?  जाने कौन सा मोहिनी मंत्र जानते हैं कि बच्चों से लेकर प्रबंधक तक उनके पीछे लट्टू हैं । जब तक यह हैं  हम लोगों को चैन कहाँ ?। अरे नहीं, बातों के सिवा कुछ जानते भी हैं यदि प्राइमरी में आ जाएँ तो सारी अकल ठिकाने आ जाएगी। राय बहादुर ने मुँह सिकोड़कर कहा। जब मुंशी तोताराम ने तौलेराम व राय बहादुर को सत्संग करते सुना तो वे भी घंटा छोड़कर अध्याय जोड़ने आ गए। अरे कब तक ऐसे जिएँगे ?क्या कभी सीधी उंगलियों से घी निकाला है बच्चे। 'तो फिर हमें क्या करना है ?' राय बहादुर ने चौंकते हुए कहा। क्या करना है ? टाइम टेबल दोबारा बनवाना है। तोताराम ने कहा।' गिरधारी सिंह दुबारा बनने देगा क्या ? सभी विषय अपनी मर्जी के लिए रखे हैं वह आसानी से नहीं बदलेगा।' तौलेराम ने दबी आवाज में कहा। अगली सुबह तोताराम का क्रुद्ध चेहरा गिरधारी ने देखा तो पेट पर साँप लोट गया फिर भी व्यंग्य  करते हुए जोधा सिंह से बोले कि न जाने आज तोताराम की चोंच क्यों लाल है? सारा मामला टाइम टेबल का होगा। मैं तो उनके मन की बात जानता हूँ । जोधा सिंह ने कहा। 'महीने की १० तारीख हो गई है वेतन नहीं मिल पाया शायद पैसों की बात हो। 'प्रधानाचार्य ने अनुमान लगाया। आने दो कुछ भी हो हम समझा देंगे । प्रबंधक ने आश्वासन देते हुए तोताराम से पूछ ही लिया ‘कहिए मास्टर साहब, अब कोई तकलीफ तो नहीं है?  तकलीफ! तकलीफ के लिए आराम भी कौन सा है यहाँ? हमारी तो दम  घुट रही है दम । तोताराम में कड़क कर कहा। क्यों ? क्यों ? क्या हुआ? प्रबंधक ने अनजान बनकर पूछा।

जब से टाइम टेबल बना है नींद हराम हो गई है । सुबह जल्दी आना देर से घर जाना उस पर भी न जाने क्या-क्या. .. .. .। तोताराम झुँझलाकर कर बोले। 'कोई बात नहीं हम टाइम टेबल फिर से बनवा देते हैं।'प्रबंधक ने कहा। आप लोग अपनी पसंद के विषय ले लीजिए। प्रबंधक ने कहा। 'पसंद के विषय ! वह भी आपके विद्यालय में कभी मिले हैं। ४ वर्षें  हो गई हैं 'क' से कबूतर और 'ख' से खरगोश पढ़ाते  हुए। बुद्धि जड़ हो गई है रटाते रटाते। इस बार हम भी सीनियर कक्षाओं में पढ़ाएँगे । तौलेराम ने तोताराम की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा। तोताराम,तौलेराम व रायबहादुर को सीनियर कक्षाएँ देकर टाइम टेबल बना लिया गया। कुछ समय बाद माधव मिश्रा की भैंस बीमार हुई और राम रतन धानों की निराई करने हेतु कुछ  दिन की छुट्टी पर चले गए तो प्रधानाचार्य ने उनके विषय तोताराम को सौंप दिए। पहले ही दिन कक्षा १० के छात्रों ने तोताराम के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी। जैसे बच्चों ने पूछा -'गुरुजी सीता जी के नाना का क्या नाम था?' अरे कुछ भी हो हमारे तो पुरखों ने भी नहीं देखे होंगे। तोताराम बोले। गुरुजी -'सिंहासन में 'ह' बनता है 'घ' क्यों नहीं? बनता होगा तुम्हें जो बनवा रहा हूँ  चुपचाप उतार लो। तोताराम ने डाँट कर कहा। गुरुजी -'सप्ताह के पिछले दिन कहाँ चले गए? 'दिन चले गए भाड़ में परंतु तुम्हें इन बातों से क्या करना है? सूअर कहीं के।' तोताराम झल्ला गए। तब तक अगला प्रश्न आया मुंशी जी -'पानी हमेशा बूँदों में ही क्यों बरसता है धार क्यों नहीं गिरती? अरे भगवान! बरसता तो पानी ही है बूँदों में बरसे या धार में। नालायकों।

जो रोज पाव भर घी खाए वही तुम्हें पढ़ाने आए। गड़े मुर्दे उखाड़ते हो। हे भगवान !अच्छी आफत मोल ली  है इससे अच्छे तो प्राइमरी में ही थे। गाजर मूली कुछ भी पढ़ाओ चाहे 'ख' से खरगोश पढ़ाओ या खरबूजा। सिर पर नहीं चढ़ते हैं। एक बार डाँट दो तो भीगी बिल्ली बन जाते हैं। लेकिन यह दुष्ट. .. .. .. .। प्रबंधक भ्रमण करते हैं और उनकी भेंट तोताराम व राय बहादुर से होती है। कहिए मास्टर साहब अब  सब ठीक-ठाक चल रहा है। कुछ भी ठीक-ठाक नहीं यहाँ तो अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग है। कोई किसी की नहीं सुनता। मनमानी हो रही है। देखना एक दिन जोधा सिंह पूरा विद्यालय हड़प जाएंगे यदि यही रहा तो। तोताराम बोले। देखिए तो आपकी यह अवस्था उस पर सीनियर और जूनियर  के दोनों विषय काफी टेढ़ी खीर है मुंशी जी के लिए। तौले राम ने कहा। हम तो टाइम टेबल फिर से बनवाएँगे । जोधा सिंह व गिरधारी ने बच्चों को सिर पर चढ़ा रखा है। यदि आपकी अनुमति हो तो यह शुभ  कार्य आज ही हो जाए। तोताराम ने खुश होकर कहा। हाँ हाँ क्यों नहीं आप चाहे वैसा करें। प्रबंधक ने कहा। टाइम टेबल फिर बनाया गया। एक सप्ताह बाद माधव मिश्रा व  राम रतन विद्यालय में वापस आ जाते हैं तो फिर टाइम टेबल बदलने की आवश्यकता पड़ती है इस बार आंशिक संशोधन से ही काम चला लिया जाता है। परंतु बोर्ड परीक्षा से एक माह पहले ही रेखा मैडम का विवाह हो जाता है। सीमा दीदी एम.ए. की परीक्षा की तैयारी में जुट जाती हैं। गिरधारी सिंह आपसी खींचतान के चलते विद्यालय छोड़ देते हैं। दीनानाथ ने कंप्यूटर सेंटर खोल लिया है। अतः नए सिरे से  टाइम टेबल बनाने की आवश्यकता पड़ती है। जोधा सिंह प्रस्ताव रखते हैं की प्रधानाचार्य जी एक बार टाइम टेबल फिर बना लिया जाए। छः बार तो बन चुका है सात फेरे भी पूरे हो जाएँ । छोड़ो भी अब, एक महीना ही तो शेष है कोर्स भी हो चुका होगा। प्रधानाचार्य ने टालमटोल करते हुए कहा। प्रबंधक जी ने निरीक्षण किया तो पता चला कि अभी तक किसी भी विषय में पाँचवाँ पाठ पूरा नहीं हुआ है। कारण जाना तो ज्ञात हुआ कि नया शिक्षक पहले पाठ से ही पढ़ाना प्रारंभ करता था। प्रबंधक ने आपातकालीन मीटिंग आयोजित की परंतु निष्कर्ष यही निकला कि अभिभावकों को समझा देंगे और अगले वर्ष व्यवस्था सुचारू रूप से चलाएंगे।

सत्य प्रकाश सिंह 
शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश

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