नहीं,वह नहीं रोयेगी

रंजना ने मेज पर रखे पानी के गिलास से चम्मच भर पानी उनके मुंह में डाला, `बाबूजी, उठिये, मैं आ गई’ उन्होने आंखे खोल उसे देखा पर शायद दवाओं के असर से अर्द्ध सुप्तवस्था में थे, वापस आंखें बंद कर ली। रंजना ने खिड़की खोली, सुबह की धूप, हवा कमरे में आ गंध बुहार कर ले गई। उसने कुर्सी पर बैठ एक नजर कमरे पर डाली, दीवार पर मां-बाबूजी की श्वेतयाम तस्वीर लगी थी। मां की आंखों में स्त्रीसुलभ लज्जा थी।

May 29, 2025 - 16:32
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नहीं,वह नहीं रोयेगी
no she won't cry
रंजना को रात दस बजे बड़े भाई साहब का संदेश मिला था, और वह सवेरे ही पहली बस से तीस किलोमीटर का सफर तय कर वहां पहुंच गई थी। यह तो अच्छा हुआ कि उसका पति सुधांशु इन दिनों काम के सिलसिले में गुजरात गया हुआ था। वह अड्डे से पैदल ही घर की ओर चल पड़ी सामान के नाम पर एक पॉलिथिन के बैग में जरूरत भर की चीजे थी। वह ईश्वर को मनाती हुई चली जा रही थी कि सब ठीक हो। गली में प्रवेश करते ही घर की ओर नजर गई, वहां कुछ असामान्य नहीं दिखा, दरवाजे में प्रवेश करते ही टेलिविजन पर समाचार वाचक की आवाज सुनाई ही, उसने शांति की सांस ली, सब ठीक लग रहा था। लॉबी में बड़े भैया दीवान पर बैठे हाथ की अंगुलियों से नासापुट दबाते अनुलोम-विलोम कर रहे थे। उसे देखते ही हाथ रोक लिये।
`कीरत, ओ कीरत’ रसाई की तरफ चेहरा घुमा भाभी को आवाज दी, `रंजू आई है‘ और फिर से नाक पर अंगुली रख ली। भाभी बाहर आई,
`कैसे है बाबूजी?’ रंजना ने पूछा, `अस्पताल में है क्या?’
`नहीं, ठीक नहीं है’ भाभी ने आवाज दयनीय बना ली, `अस्पताल के डॉक्टर कहते है, अब घर पर ही सेवा करो’ आगे आवाज भर्रा गई। गजब की अभिनेत्री है कीरत भाभी। वह तुंरत उठ कर बाबूजी के कमरे में गई। दिल भर आया, इतने ऊंचे कद, गोरे रंग से सबको पहली नजर से प्रभावित करने वाले उसके बाबा, बाबूजी पलंग पर दिखाई ही नहीं पड़ रहे थे। अगर तबीयत इतनी खराब थी तो सब कैसे अपने कार्य सामान्य रूप से कर रहे हैं? कोई भी इस कमरे में क्यो नहीं है?
रंजना ने मेज पर रखे पानी के गिलास से चम्मच भर पानी उनके मुंह में डाला, `बाबूजी, उठिये, मैं आ गई’ उन्होने आंखे खोल उसे देखा पर शायद दवाओं के असर से अर्द्ध सुप्तवस्था में थे, वापस आंखें बंद कर ली। रंजना ने खिड़की खोली, सुबह की धूप, हवा कमरे में आ गंध बुहार कर ले गई। उसने कुर्सी पर बैठ एक नजर कमरे पर डाली, दीवार पर मां-बाबूजी की श्वेतयाम तस्वीर लगी थी। मां की आंखों में स्त्रीसुलभ लज्जा थी। कैसे इतने वर्षों तक एक दूसरे के साथ रहते-रहते सिर्फ तस्वीरों में कैद रह जाते हैं। बाबूजी को हारमोनियम से बहुत प्यार था, अकसर शाम को आंगन में ले बैठ जाते और `राम चन्द्र कह गये सिया से .....’ गाने लगते और मां प्रशंसा मिश्रित नाराजगी दिखाती,
`यूं तो नहीं कि बच्चों को किताब पढ़ाये, यह ले कर बैठ जाते हैं, बेच दूंगी एक दिन कबाड़ी को’ पर रंजना ने मां को उसी हारमोनियम को अपनी साड़ी के पल्लू से साफ करते भी देखा है। जिन्दगी भर हम वह वस्तुएं एकत्रित करते रहते हैं जो बाद में एक दम उपेक्षित पड़ी रहती है। क्या इन बेजान वस्तुओं को भी अपने कद्रदानों की बेबसी पर दुख होता होगा? पिछले बरस भैया ने हारमोनियम कबाड़ी को दे दिया था, लेकिन बाबूजी सिर्फ निर्निमेष निगाहो से देखते रहे थे।
`बुआ’, रिंकी की आवाज से वह चौंकी ‘खाना खा लो, तब तक मैं यहां बैठी हूं’ मुंह से च्यूंगम का गुब्बारा फुलाती पौत्री ने लापरवाही से कहा, `वैसे भी दादू अभी कहीं नहीं जाने वाले, आप जो आ गई हो’
रंजना निःशब्द बाहर चली गई। डाइनिंग टेबल पर बड़े-बड़े डोगों से खुश्बू की लपटे उठ रही थी।
`आओ रंजू, खाना खा लो, तुम्हारी भाभी लौकी के कोफ्ते बहुत अच्छे बनाती है’ उसे याद आया, घर में होली, दिवाली या जन्मदिन पर कीरत भाभी यही कोफ्ते बनाती थी, लेकिन आज तो कोई त्यौहार न था।
वह दो चार कौर निगल कर लौट आई कमरे में।
`जाओं रिंकी, तुम भी खा लो’
`मेरा व्रत है बुआ’
`व्रत काहे का?’ हर वक्त च्यूंगम चबाने वाली का भी व्रत हो सकता है भला?
`दादू के लिये’
उफ! रंजना को थोड़ी देर पहले जो गुस्सा रिंकी पर आया था, वह उड़ गया। वह भी न जाने क्या-क्या सोच लेती हे, पर अगले ही पल भाभी की बात सुन स्तब्ध रह गई,
`वो क्या है न, इसके कॉलेज का ट्रिप है, मसूरी देहरादून पन्द्रह दिन बाद,’ पुत्री को स्नेह को निहारती वे भूल गई कि क्या कहना है क्या नहीं, `इसने व्रत किया है कि ईश्वर दादू को जल्दी मुक्ति दे ताकि यह जा सके,’ फिर जीभ दांत से काट बात बदली, `ठीक कर दे, दस हजार रूपये जो जमा करवा चुकी है न’
रंजना घर में बने मंदिर से गीता उठा लाई, बाबूजी नित्यकर्म गीता का पाठ नियमित रूप से करते थे, उसे भी याद हो गया था,
`कौन किसी को मारे आप,
कौन किसी को दे संताप’
रंजना की अभ्यस्त जिव्हा पाठ कर रही थी, पर दिमाग में पिछला सब चल रहा था। बाबूजी कचहरी से मुंशी के पद से सेवानिवृत हुए थे, उस समय जो कुछ मिला, झाड़ बुहार कर यह मकान बनवा लिया था। तीन पुत्र, और एक पुत्री, यही परिवार इसमें रहता था। रंजना का विवाह एक पढे-लिखे युवक से कर दिया, लेकिन तीनो पुत्रों ने प्रेम विवाह किये। बड़े भैया ने जब सिख लड़की से विवाह किया तो मां बाबूजी कुछ समय नाराज रहे, फिर सब सामान्य हो गया। मंझले ने बंगाली और सबसे छोटे प्रवासी पुत्र ने कनाडा की मूल निवासिन लिज से विवाह किया तो उनके माथे पर शिकन तक न आई। घोर सनातनी ब्राह्मण परिवार के रसोईघर से उठती गोश्त और मछली की दुर्गंध से सारा मोहल्ला गंधा जाता। मेज पर खाली प्लेटों में चिंचोडी गई हड्डियो के अवशेष न दिखाई दे, इसलिए मां बाबूजी के कमरे का दरवाजा बंद ही रखा जाता था। उन दोनो की दुनिया इस दस बाई बारह के कमरें में सिमट कर रही गई थी। मां जब तक जीवित थी, बाबूजी पूजा-पाठ, सैर अखबार सबमें रूचि रखते थे, मां भी उनकी हर जरूरत का पूरा ध्यान रखती थी। उनकी मृत्यु के बाद बाबूजी का तो जैसे जीवन रूक गया, खामोश निगाओं से खिडकी से बाहर देखते रहते, जो खाना सामने आता खा लेते न नमक ज्यादा, न चीनी कम की शिकायत करते। उसे अब याद आता है कि माँ क्यो हमेंशा यह कहती थी,
`ईश्वर मुझ से पहले इन्हे उठा ले’ स्त्री तो किसी तरह अपना दुख काम काज में भुला देती है, रो लेती है, लेकिन पुरूष यह दोनो कार्य नहीं कर सकता। धीरे-धीरे दोनो भाईयों व उनके परिवार ने बाबूजी की उपेक्षा करनी शुरू कर दी। अब उन्हे घर के पालतु कुत्ते रॉकी को घुमाने का कार्य सौंप दिया गया था, जो उनके वजन से अधिक होने के कारण उसकी जंजीर पकड़ लगभग दौड़ते हुए हांफ जाते थे। कभी-कभी मिताली भाभी अपनी सांवली पुत्र भी उनके हवाले कर देती और जिस पिता ने बचपन में कभी अपनी संतान को गोद में नही लिया था, वही अब अपनी पौत्री को निर्बल बाहों में झुलाते थे। रंजना का मन खट्टा हो गया। जब आत्मनिर्भर बाबूजी की उपेक्षा हो रही थी तो अब कितनी बेकद्री होगी।
`चले जायें बाबूजी भी मां के पास, वह नही देख सकती उनकी लाचारी, वह नही रोयेगी, बिल्कुल नहीं।’ बाबूजी के कराहने की आवाज से वह उठी और चम्मच में पानी ले उनके सूखे होठो को तर कर दिया, समय देखा डेढ़ बज रहा था। सारा परिवार उसे पिता सौंप निश्चित हो सो रहा था। पर मंझले भैया ने आकर उसे थोड़ा आराम करने को कहा। वह अनिच्छा से पास वाले कमरे में जाकर सो गई। अभी आंख लगी ही थी कि एक दबे शोर से वह उठ गई, बाबूजी के कमरे में देखा, बाबूजी जमीन पर थे।
`मैं तो पास ही था, जाने कैसे गिर गये?’ भैया की नींद में डूबी  आवाज और लाल आंखे कुछ और ही कह रही थी। बड़े भैया ने बाबूजी की नाक पर उल्टी हथेली रखी, सिर हिलाया, नब्ज टटोली और आंखो पर हाथ रख सुबक पड़े।
`अब पलंग पर मत चढाओ' बड़ी भाभी बोली `मुंह में गंगाजल और तुलसी दल रख दो’ मिताली भाभी ने सलाह दी।
रंजना दरवाजे के पास बुत बनी खड़ी थी, क्या सचमुच बाबूजी चले गये? दोनो भाइयों ने जल्दी से दरी बिछा बाबूजी को लिटा दिया, चादर से छाती तक ढक दिया। रंजना ने सोचा था कि वह नहीं रोयेगी, दीवार का सहारा लिये बैठी सामने अपने जनक, पिता को देखती रही, 
`जाओ बाबूजी, मां के पास ही आपको चैन मिलेगा’ कुछ देर बाद रंजना के अलावा सारा परिवार पास वाले कमरे में चला गया। जहां सबको काम बांटा जा रहा था।
`छोटे तुम संस्कार का प्रबन्ध करो’ शायद जेब में हाथ डाला होगा, `बाबूजी के बैंक एकाउंट में तुम्हारा भी नाम है न, अभी तुम खर्च करो फिर निकलवा लेना’
`क्यू उनका कार्ड तो आप ही रखते हो’
`सुनो, बाजार कौन जा रहा है?’ मिताली भाभी की आवाज थी,’मेरे लिये सफेद दुपट्टा लाना है, प्योर का'
`अब मैं कफन हांडी के साथ तुम्हारे लिये दुपट्टा खरीदने जाऊ?’ और एक दबी हंसी कमरे में फैल गई।
`मेरे पास कोई अच्छा दुपट्टा है ही नही, सब रिश्तेदार औरते देखना कितने मंहगे और डिजाइनर सूट पहन कर आयेगी।’
`दोपहर को चूल्हा नही जलेगा‘ बड़ी भाभी का स्वर था, ’बीकानेर वाला से खाना मंगवा लो, बारी-बारी से पिछले कमरे में जा कर खाना खा लेना’
`हां, मेरी शुगर बढ़ जाती है’ बड़े भैया बोले, `रंजना को याद आया इन्ही भैया की सेहत नहीं बनती थी तो मां-बाबूजी ने पूरी नवरात्री निर्जला व्रत रखे थे।’
रिंकी का स्वर खुशी के भरा था।
`हाय मां, मेरा व्रत कितनी जल्दी फला है’।
`छोटे,’ भैया को याद आया, `बंटी नाई को भी कहते आना।’
`भाई साहब’, मंझले भैया रो पड़े, `अब आजकल कौन सिर मुंडवाता है? हंसते है सब’।
`नवजोत तुम नहीं बैठना उसके आगे’ कीरत भाभी ने पुत्र को कहा
`पापा’ नवजोत ने फोन शायद पिता की ओर बढ़ाया ’बड़े मामाजी है’।
फोन पकड़ कर भैया जोर से रो पड़े, `हां जी चले गये हमें छोड कर, कीरत ने बहुत सेवा की, पर रोक नहीं सके‘ फोन बंद करते ही स्वर सामान्य हो गया।
`अब किसी का फोन रिसीव न करो, बार-बार रोया नही जाता’ फिर जोर से घोषणा की, `छोटे ने फ्लाइट की टिकट बुक करा ली है।’
`इंतजार करना है?’ बड़ी भाभी को चिंता हुई, `मैं ज्यादा देर बैठ नही सकती’
`और वह लिज,’ मिताली भाभी का स्वर था, `उसे तो यहां के रीति रिवाज पसन्द नहीं है, कमरे में आराम करेगी, खाना पूरा खायेगी, पर पानी हजम नहीं होगा’।
फिर से सब की दबी हंसी फैल गई। `मिताली’ बड़े भैया ने आदेश दिये, `जाओ चाय बनालो, लोगों के आने से पहले ब्रेड मक्खन खालो’ फिर याद आया, `रंजना को भी पिलाओ, रात से रो रही है।’
`नहीं बुआ बिल्कुल नहीं रो रही,' रिंकी ने बताया, `कहीं सदमा तो नहीं बैठ गया है?' `मिताली, तुम ध्यान से सुनो' बड़ी भाभी ने समझाया, `जब रिश्तेदार औरते आ जाये तो रंजना को बार-बार गले लगाना और पानी पिलाती रहना अब आगे तो इसका आना-जाना भी बंद हो जायेगा' कुछ देर बाद सब खा-पीकर कमरे में आ कर बैठ गये। मौहल्ले के दो-चार लोग भी आ चुके थे, अचानक बाबूजी के कराहने की आवाज से सब चौंक उठे’।
एक बार त्ाो भैया डर कर पीछे हटे, फिर पड़ोस के बनवारी जी ने आगे बढ़ सीने पर हाथ-कान रख धड़कन जांची और मुस्कुरा दिये।
`शर्मा जी तो ठीक है'।
`किसने देखा था?' बड़े भैया दहाडे़, फिर याद आया कि उन्होंने ही तो देखा था, जल्दी से पानी का चम्मच होंठों से लगाया, बाबूजी के होंठ हिले। पड़ौसियों की मदद से उन्हे ऊपर लिटाया गया।
दोनो भाभीयों ने एक-दूसरे को देखा, चेहरे पर निराशा के भाव थे।
`शिट यार’ रिंकी पैर पटकती दूसरे कमरे में चली गई।
`आप भी न तमाशे करते हो बाबूजी’ मंझले भैया हाथ में थैला और सामान की सूची लिये खड़े थे, `सारी रात सोने नहीं दिया, ब्रेड खाकर दो कप चाय पी ली, अब क्या खाक नींद आयेगी?‘
रंजना बाबूजी का हाथ पकड़ फूट-फूट कर रो पड़ी....
आशा पाराशर
जोधपुर

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