तर्क की रोशनी

Set in a small Indian village named Pratapgarh, this inspiring story follows Neelam, an educated young woman who challenges blind faith and brings scientific awareness to her community. Through her courage and reasoning, the villagers move from superstition to science, proving that true progress begins with knowledge and logic.

Oct 23, 2025 - 17:36
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तर्क की रोशनी
light of reason

यह कहानी एक छोटे से गाँव की है, जहाँ लोग लंबे समय से अंधविश्वासों के जाल में जकड़े हुए थे। गाँव का नाम 'प्रतापगढ़' था, और यह घने जंगलों से घिरा हुआ था, जिससे गाँव के लोग बाहरी दुनिया से कटे-कटे रहते थे। गाँव के एक प्रभावशाली व्यक्ति, पंडित जी, का मानना था कि हर छोटी-बड़ी घटना देवी-देवताओं की इच्छा से ही होती है। खेती में दिक्कत हो या कोई बीमारी, लोग मदद के लिए पंडित जी की शरण में जाते थे। उन्होंने यह धारणा फैला रखी थी कि गाँव के तालाब में एक जलपरी रहती है, जो गाँव की खुशहाली का प्रतीक है।
एक दिन, नीलम नाम की एक शिक्षित लड़की अपने दादा-दादी के पास प्रतापगढ़ आई। उसके माँ-बाप शहर में रहते थे, लेकिन नीलम ने गाँव में कुछ समय बिताने का विचार किया। यहाँ आकर उसने देखा कि लोग अंधविश्वासों में इस कदर डूबे हैं कि उनका जीवन प्रभावित हो रहा है। नीलम ने सोचा कि इन अंधविश्वासों को तोड़ना जरूरी है। उसने गाँव वालों को समझाने की कोशिश की कि जलपरी जैसी कोई बात नहीं होती और समस्याओं का हल विज्ञान में है। पहले तो लोग उसकी बातों को अनसुना करते रहे और पंडित जी पर ही विश्वास करते रहे।
लेकिन नीलम हार मानने वाली नहीं थी। उसने गाँव के कुछ युवाओं को अपने साथ मिलाया और उन्हें तार्किक सोच के लिए प्रेरित किया। नीलम ने उन्हें यह बताया कि तालाब में उठते बुलबुले असल में प्राकृतिक गैस की वजह से होते हैं, जो जलपरी का भ्रम पैदा करते हैं। उसने गाँव में विज्ञान के सरल प्रयोगों का एक प्रदर्शन आयोजित किया, जिसमें तालाब के बुलबुलों का वैज्ञानिक कारण बताया गया।

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नीलम की बातें आखिरकार गाँव वालों की समझ में आने लगीं। उन्हें एहसास हुआ कि वे कितने सालों से पंडित जी के अंधविश्वास के जाल में फंसे हुए थे। उन्होंने नीलम के प्रयासों की दिल से सराहना की और उसे गाँव के प्राथमिक विद्यालय में विज्ञान पढ़ाने का प्रस्ताव दिया, ताकि नई पीढ़ी तर्क और विज्ञान का महत्व समझ सके। नीलम की इस पहल से गाँव वालों की सोच में बदलाव आया और उन्होंने यह समझ लिया कि हर घटना के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण होता है। धीरे-धीरे पंडित जी का प्रभाव कम होने लगा और प्रतापगढ़ एक नई दिशा में आगे बढ़ने के लिए तैयार हो गया।
‘नीलम की अटूट मेहनत और समर्पण ने प्रतापगढ़ में गहरी जड़ें जमा चुके अंधविश्वास की दीवारों को दरकाना शुरू कर दिया। गाँव के लोग, जो कभी पुरानी धारणाओं में जकड़े थे, अब तर्क और विज्ञान की ओर हाथ बढ़ाने लगे। धीरे-धीरे, गांव की फिजा बदलने लगी, चर्चा के केंद्र में अब वैज्ञानिक सोच और प्रगति के नए आयाम थे। नीलम ने साहस और संघर्ष से यह दिखा दिया कि बदलाव मुमकिन है, बस दृढ़ निश्चय और सही दिशा की जरूरत होती है।'

अंजना गोमास्ता
रायपुर, छत्तीसगढ़

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