आत्मा और शरीर
गई थी वस्त्र फैलाने, भाग कर झट से तू आई,
नहीं बर्दाश्त कर पाती हो, तुम ये धूप की ऊष्मा,
अभी तो अग्नि सम्मुख हो, धरा पर जल कर जाना है।
गई थी वस्त्र फैलाने, भाग कर झट से तू आई,
तपिश की धूरि से प्यारी अभी तुझको नहाना है
ठंड से बचने के खातिर, ओढ़ लेती हो दुशाला,
नीर गंगा में तुझको तो अभी डुबकी लगाना है
फंसी हो मोह माया में, भूलकर कर्म को अपने
यहां हर आदमी का बस लगा आना और जाना है
इसी इहलोक में रह जायेगी, तेरी सभी माया,
शीश यम जब खड़ा होगा, मिटा देगा तेरी काया
शालिनी सिंह सूर्य
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