संघर्ष सफलता का
उस घर के अलावा उनके पास और कोई संपत्ति नही थी। पिता जी के कैंसर की बीमारी थी इसलिए वे कुछ दिन बाहर कमा कर लाते और फिर कुछ दिन घर पर आराम करते थे। घर की सारी जिम्मेदारी माँ ने अपने कंधों पर उठा रखी थी। वो दिन भर मजदूरी करके अपने तीन बच्चों का लालन पालन करती थी।

राजस्थान के एक छोटे से गाँव गोपालपुरा के लाल ने किया कमाल। ये खबर प्रत्येक अखबार का हिस्सा बन रही थी, लेकिन उस कमाल के पीछे का संघर्ष किसी को भी पता नही था। इस छोटे से लड़के का संघर्ष बचपन से ही शुरू हो गया था जब उसका जन्म एक छोटे से कच्चे घर में हुआ जो भी बारिश के दिनों में चारों तरफ से टपकता था। उस घर के अलावा उनके पास और कोई संपत्ति नही थी। पिता जी के कैंसर की बीमारी थी इसलिए वे कुछ दिन बाहर कमा कर लाते और फिर कुछ दिन घर पर आराम करते थे। घर की सारी जिम्मेदारी माँ ने अपने कंधों पर उठा रखी थी। वो दिन भर मजदूरी करके अपने तीन बच्चों का लालन पालन करती थी। उसने सीनियर तक की पढ़ाई पास के सरकारी स्कूल से पूरी कर ली पर अब आगे की पढ़ाई में विघ्न आने शुरू हो गए। स्नातक की डिग्री के लिए जयपुर जाना था लेकिन वहाँ पर रहने के लिए पैसे नहीं थे। स्नातक में उनका प्रवेश राजस्थान महाविद्यालय में हो जाता है पर अब वहाँ पर खाने, पीने और रहने की समस्या उत्पन्न हो गई किन्तु आखिर में उसने हार नहीं मानी और एक कचोरी के ठेले पर ३० रुपये प्रतिदिन में नोकरी जॉइन करते हुए संघर्ष करने की ठान ली। सुबह-सुबह दुकानों पर कचोरी पहुँचाता और स्वयं भी खाने के रूप में कचोरी खाकर ही कॉलेज चला जाता है और अपनी पढ़ाई जारी रखता है। ऐसे करते करते पता नहीं कब स्नातक की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी और अपना बचपन भी समाप्त हो चुका था। अब उसके द्वारा पढ़ाई का यहीं पर अंत मान लिया जाता है व शुरू होती है परिवार की जिम्मेदारी, जिसे भी पूरी करना जरूरी हो गया था क्योंकि पिता जी का स्वास्थ्य भी धीरे-धीरे साथ छोड़ रहा था। अब सांगानेर में एक कागज फैक्ट्री में नौकरी की शुरूआत हो जाती है। लेकिन संयोग से किसी का मार्गदर्शन मिल जाता है और कुछ समय बाद पी टी ई टी की परीक्षा पास हो जाती है लेकिन फिर वही बी.एड. के लिए फीस की समस्या आ जाती है। लेकिन जब मामा जी को समस्या का पता चलता है तो वह तुरंत पैसे लेकर पहुँच जाते हैं और उन्हें बीएड करवा देते हैं। अब शुरू होता है प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों का दौर, प्रथम ही प्रयास में निराशा हाथ लगती है परन्तु वो वापस दुगुनी मेहनत से तैयारी करते हैं, सर्वप्रथम तृतीय श्रेणी फिर द्वितीय श्रेणी और फिर स्कूल व्याख्याता की परीक्षा अच्छी रैंक के साथ उत्तीर्ण करके अपने संघर्ष पर विराम लगाने का असफल प्रयास करते हैं। कुछ समय बीतने के बाद कॉलेज प्रोफेसर की परीक्षा भी पास कर लेते हैं लेकिन जब कॉलेज प्रोफेसर का साक्षात्कार देकर आते हैं तो उसके दूसरे दिन ही बजरी के ट्रैक्टर ट्रॉली द्वारा भयंकर एक्सीडेंट हो जाता है, फिर पन्द्रह दिन तक आई सी यू में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष चलता है लेकिन अंत में उस संघर्ष को भी जीत कर वो सकुशल बाहर आ जाते हैं, फिर दो महीने बाद उनका कॉलेज प्रोफेसर में २४ वीं रेंक के साथ अंतिम रूप से चयन हो जाता है। उस संघर्षशील लड़के का नाम है- डॉ. रामावतार जाट (सहायक आचार्य-हिंदी)
मुकेश कुमार
जयपुर, राजस्थान
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