Buddha: The union of compassion and wisdom : बुद्ध: करुणा और प्रज्ञा का संगम
This article explores the life of Tathagata Buddha, his renunciation, the Four Noble Truths, and the Eightfold Path, offering deep insight into his timeless teachings as a way of awakened living, not just a celebration. शब्द केवल ध्वनि नहीं होते; वे चेतना के विस्तार हैं। सम्यक वाक् वह कला है, जिसमें सत्य, मधुरता, और कल्याण का संगम होता है। ऐसे वचन जो न किसी को आहत करें, न असत्य का जाल बुनें, न कलह को भड़काएँ। बुद्ध कहते हैं-वाणी वह दीपक है जो अंधकार भी फैला सकता है और आलोक भी; बुद्धिमान वही है जो वाणी से पुल बनाता है, दीवार नहीं।

Buddha: The union of compassion and wisdom : मानव इतिहास के प्रवाह में कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी उदित होते हैं जो युगों की सीमाओं को लाँघकर चिरंतन बन जाते हैं। तथागत बुद्ध ऐसे ही एक महामानव हैं, जिन्होंने करुणा और प्रज्ञा के अद्वितीय समन्वय से न केवल अपने समय की चेतना को आलोकित किया, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए जीवन का एक नया मार्ग प्रशस्त किया।
बुद्ध का जीवन, शिक्षा और धम्म किसी एक दिवस या उत्सव का विषय नहीं है; वह सतत जागरण का आह्वान है- भीतर और बाहर, दोनों स्तरों पर।
बुद्ध का जीवन: ऐश्वर्य से निर्वाण तक की यात्रा लुंबिनी की धरती पर जन्मे सिद्धार्थ गौतम का बाल्यकाल कपिलवस्तु के राजमहल में संपन्नता से अभिसिंचित था। किंतु सांसारिक भोग-विलास उनकी आत्मा को तृप्त न कर सका। वृद्धावस्था, बीमारी और मृत्यु के दर्शन ने उन्हें संसार के क्षणभंगुर सत्य से साक्षात्कार कराया।
२९ वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ ने राजमहल, पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल का त्याग कर महाभिनिष्क्रमण किया। यह पलायन नहीं, बल्कि विश्व-पीड़ा के समाधान हेतु महान अभियान का प्रारंभ था।
छह वर्षों की कठोर तपस्या के पश्चात, बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्होंने सम्बोधि प्राप्त किया। यह केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं थी; यह मानव चेतना में संभव सर्वोच्च उपलब्धि थी।चार आर्य सत्य: दुख से मुक्ति का वैज्ञानिक आधार
बुद्ध ने अपने ज्ञान के आलोक में चार आर्य सत्य प्रतिपादित किए:
१. दुःख- जीवन दुःखमय है।
२. दुःख समुदय- दुःख के कारण हैं।
३. दुःख निरोध- दुःख के निवारण हैं।
४. दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा- दुःख निवारण का मार्ग अष्टांगिक मार्ग है।
अष्टांगिक मार्ग: जाग्रत जीवन की पदचाप
१. सम्यक दृष्टि-
संसार की यथार्थता को देख पाने की वह दृष्टि, जो मोह और भ्रांति के आवरण को चीर देती है। यह जानना कि जीवन दुख से भरा है, पर वह दुख अपरिहार्य नहीं- कि परिवर्तन शाश्वत है और बंधन अज्ञान का परिणाम। सम्यक दृष्टि वह अंतर्दृष्टि है जो जीवन को वस्तुतः जैसा है, वैसा देखने का सामर्थ्य देती है- बिना विकृति, बिना भ्रांति।
२. सम्यक संकल्प —
केवल जानना पर्याप्त नहीं; जानने के साथ संकल्प का भी उतना ही गहरा संबंध है। सम्यक संकल्प वह आंतरिक प्रतिज्ञा है- कि मैं हिंसा का त्याग करूँगा, द्वेष को जलाकर भस्म करूँगा, और संसार के प्रति अपार करुणा तथा शांति का भाव रखूँगा। यह जागरूकता से उत्पन्न वह कोमल शक्ति है, जो जीवन को प्रेमपूर्ण दिशा में मोड़ती है।
३. सम्यक वाक्—
शब्द केवल ध्वनि नहीं होते; वे चेतना के विस्तार हैं। सम्यक वाक् वह कला है, जिसमें सत्य, मधुरता, और कल्याण का संगम होता है। ऐसे वचन जो न किसी को आहत करें, न असत्य का जाल बुनें, न कलह को भड़काएँ। बुद्ध कहते हैं- वाणी वह दीपक है जो अंधकार भी फैला सकता है और आलोक भी; बुद्धिमान वही है जो वाणी से पुल बनाता है, दीवार नहीं।
४. सम्यक कर्म—
कर्म केवल बाहरी गतिविधि नहीं, वह आंतरिक चेतना का प्रकटीकरण है। सम्यक कर्म वह आचरण है जो किसी प्राणी को कष्ट नहीं देता, जो सत्य और न्याय के संकल्प को जीवन में मूर्त करता है। यह जीवन के प्रत्येक क्षण को संयम, प्रेम और विवेक से स्पर्श करने की साधना है।
सत्यजीत सत्यार्थी
बोकारो (झारखण्ड)
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