जिनकी बड़ी ज़ुबान
ऊँट के मुँह में जीरा जैसे मिली मदद है सरकारी; डीजल- चाय,पेंसिल- बीड़ी पर जी ऐस टी दुई धारी
अपने रहे न दिल, दिमाग,
मन, आंख, बचे दो कान;
बस सुनने,सिर धुनने को
ही थोथे गौरव- गान।
बेलगाम हाँकेँ मुँहझौंसे
जिनकी बड़ी ज़ुबान।।
एक तो दूबर बैल, मूड़ पर
दुई आषाढ़ हैं भारी,
बरखा द्वहपट दे,मची है
बीज- खाद की मारामारी;
जर्जर छानी चुये,करे बारिश
चौमासे हलकान।।
अंगना काई- कीच,केंचुये,
बीछी- सांप बिलों से निकले;
दिन में बाड़ उरेरे सूअर,
रात में साही भुट्टे खखले;
कर्ज़ काढ़ के फॉर्म- फीस भर
बेटवा दे इम्तहान।।
ऊँट के मुँह में जीरा जैसे
मिली मदद है सरकारी;
डीजल- चाय,पेंसिल- बीड़ी
पर जी ऐस टी दुई धारी
बदले तरकश- तीर,शिकारी,
बदला नहीं मचान।।
जबरा मारे रोवैं न दे,
दैमारी ऐसी लाचारी;
प्यास चिरैया पानी ढूंढे
औघट घाटों मारी- मारी ;
उनके फूल चुनें क्या,
जिनका पता न मरे विहान ।।
किनकी जीभ चख रही अमरित,
किन पर तालाबंदी;
मुँह भर धूधुर भीड़ फांकती,
बिरले चढ़े बुलन्दी;
न्याय चले अजगरी चाल,
हैं भोंथर नियम- विधान।
देवेन्द्र कुमार पाठक
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